नई दिल्ली (Commission ban) : भले ही देश के पांच राज्यों में होने वाले चुनाव (Election) के दौरान प्रत्याशियों द्वारा व्यक्तिगत तौर से चुनाव प्रचार (Election Campaign) करने की शुरूआत कर दी हो या फिर चुनाव में जीत के साथ ही सरकार बनाने के भी दावे किए जा रहे हो लेकिन बावजूद इसके कमल वाला झंडा, बिल्ला और नेताओं के फोटों वाले बैनर आदि नहीं बिक रहे है। कारण यह है कि चुनाव आयोग ने रैली, पदयात्रा तथा अन्य शोरगूल वाली गतिविधियों पर रोक लगा रखी है।
उम्मीद पर पानी फिरा
जिन दुकानों या प्रचार सामग्री निर्माण करने वालों ने चुनावों को देखते हुए हर राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियों को तैयार या बेचने के लिए रख लिया था उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है क्योंकि चुनावी रैलियों व पदयात्रा जैसे आयोजनों पर रोक होने के कारण राजनीतिक दलों के लिए इनका कोई फायदा ही नहीं है। ऐसे में दुकानों व गोडाउनों में ही प्रचार सामग्री पड़ी हुई है।
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पहले से भांप लेते है –
प्रचार सामग्री का निर्माण करने वाले राजनीतिक दलों का तापमान पहले से ही भांप लेते है। इतना ही नहीं बेचने वालों को भी इतना अनुभव हो जाता है कि उन्हें यह पता रहता है कि किस राजनीतिक दल को सबसे अधिक प्रचार सामग्री की आवश्यकता पड़ेगी। इसलिए वे राजनीतिक दलों की मांग के अनुसार ही प्रचार सामग्री का निर्माण या बेचने के लिए सामग्री एकत्र करके रखते है परंतु फिलहाल निर्माणकर्ताओं व दुकानदारों के तापमान पर आयोग ने ग्रहण लगा रखा है।
जो मजा प्रचार करने में आता रहा है –
चुनाव आयोग के निर्देश पर राजनीतिक दलों द्वारा बगैर प्रचार प्रसार ही प्रचार किया जा रहा है। हालांकि प्रत्याशियों द्वारा व्यक्तिगत तौर पर कुछ एक कार्यकर्ताओं के साथ मतदाताओं के घरों में जाकर अपने पक्ष में वोट देने की मांग की जा रही है परंतु जो मजा झंडे, बैनर हाथों में लेकर हो हल्ला करते हुए कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार करने में आता रहा है वह मजा इस बार के चुनाव में बिल्कुल भी नहीं है। वैसे राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं की यदि माने तो प्रचार प्रसार के लिए सुबह से ही तैयारी हो जाती थी और सिर पर पार्टी की टोपी हाथों में झंडे…हो हल्ला…नारेबाजी करने में आनंद आता था, परंतु अब वह आनंद नहीं आ रहा है।
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