समूचे देश मे देवी अहिल्या की नगरी को शर्मसार करती घटनाओं के बाद पसरी ” शर्मिंदगी ” की सफाई अब शहर को समर्पित। अब शहर के बाशिंदे मिलकर उस शर्मिंदगी को बुहारकर साफ करें जिसके कारण इंदौर शर्मसार है। कलम ने अपने हिस्से का काम कर दिया। अब इस शहर को ज्यादा ‘ ज्ञान ‘ की जरूरत नहीं। सब ज्ञानी है। अब जरूरत मैदानी सक्रियता की है। इस मामले में इंदौर को स्वयम ही पहल करना होगी। पुलिस, प्रशासन और राजनीति के भरोसे अब ये शहर नही छोड़ा जा सकता। ये सब अपना काम कर ही रहे हैं। ईमानदारी से या बेईमानी से…ये उनका ईमान जाने?
जरूरत नागरिक समाज के जागरण की है। ऐसा समाज जागरण, जो इस शहर में नाईट लाइफ के नाम से पसरती जा रही उस गंदगी के खिलाफ है जिसे नाईट कल्चर नाम दिया जा रहा है। बीते सात दिन में इस शहर ने ये साफ कर दिया कि वो इस तरह के रतजगे के खिलाफ है, जो ड्रग की नशाखोरी ओर शराबखोरी के साथ साथ पब बार जैसी कुसंस्कृती को प्रश्रय दे रहा है। जहां लड़कियां शराब के नशे में धुत्त सड़क पर बेहयाई पर उतर जाए और लड़के वीडियो बनाते रहे या नशे में मदहोश लड़कियों का फायदा उठाने की जुगत में लगे रहे।
देखते ही देखते आपके इंदौर में ये सब होने लगा और आप है कि आंख मुंदे रहे। आप इंदौरी जो ठहरे। हर नए को अपनाने, स्वागत करने में आगे। लेकिन आपको भी ये थोड़े पता था कि स्मार्ट होने की होड़ में शहर के हाल बेहाल हो जाएंगे और नोबत इंदौर के मुंह छुपाने की जेआ जाएगी?
अब पानी नाक से ऊपर, शहर की नाक कटने तक कि नोबत तक आ गया। ऐसे में भी अगर आप हम सब इसके खिलाफ उठ खड़े नही होते तो फिर दोष केवल तंत्र को मत देना। ‘तंत्र’ तो तभी सक्रिय होता है जब ‘लोक’ जागृत होता है। अन्यथा तंत्र भी लोक की तरह उदासीन ओर निरपेक्ष हो जाता है। जैसे लोक को अपने काम से काम, बाकी जाए भाड़ में…ठीक वेसे ही तंत्र के हाल हो जाते है कि अपने को क्या…इस सब कुकृत्य चलते रहने की एक नियमित बंदी आ रही है और ड्यूटी भी हो ही रही है। सरकार का तो काम ही वाहवाही लूटने का है। वो फिर पलटकर नही देखती कि इंदौर में नाईट लाइफ का फैसला लागू करवाने के बाद क्या गुण दोष उभरकर सामने आए हैं?
सरकार के संगी साथी यानी सांसद, विधायक, पार्षद, निगम-मंडल-आयोग के नेता। ये सब जानकर भी मौन रह जाते है कि ये तो सीएम साहब का फैसला है…इसके खिलाफ कैसे बोलूं? संगी साथी भूल जाते है कि उन्हें सीएम के नही, जनता के वोटों ने यहाँ तक पहुचाया है। लेकिन अब दल और उसके प्रति निष्ठाएं ही अहम है। संगठन की गाइडलाइंस के आगे कुछ नही। वो मतदाता भी नही ओर न वो शहर, जिसके जरिये राजनीति चल रही है। एकमुश्त… एकजैसे…एकदल को थोकबंद मिलते वोट…राजनीति को मदान्ध के साथ साथ आत्ममुग्ध भी कर देते है। फिलवक्त सत्तारूढ़ दल के साथ ऐसा ही है। विपक्ष की बात बेमानी है। वो तो अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता और सबसे बड़े मूवमेंट्स पर ही एकजुट नही है। आपके लिए क्या ख़ाक एकजुट होकर लड़ेगा?
ओर फिर इन सबकी आपको जरूरत ही क्या? इस इंदौर ने तो अपने हिस्से की सौगात…खैरात में कभी ली ही नही है। यहां के समाज मे देश मे कई कई बार उदाहरण पेश किए है कि कैसे अपने दम पर शहर से जुड़ी जरूरतों को जुटाया जाता है। फिर चाहे वो नर्मदा जल को इंदौर की धरती पर लाने का भागीरथी आंदोलन हो या फिर दलगत राजनीति से परे मिल मजदूर मूवमेंट्स। हमने तो अपने दम ही शहर में तबसामुदायिक शिक्षा का ढांचा खड़ा कर दिया, जब ये शिक्षा के नाम की तीन-चार सितारा दुकानें इंदौर में नही आई थी।
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स्वास्थ के मामले में भी हमने सरकारों का मुंह नही ताका। यहां तक कि आयुर्वेद औषधालय तक समाज स्तर पर स्थापित किया। आंख के दवाखाने। दांत के दवाखाने। जच्चा बच्चा खाने। आदि। यही नही, हमने तो हवाई अड्डा भी अपने दम पर बना लिया। ऐसे थे हमारे होलकर राजा जो शहर के चार कोनो में चार तालाब तब बना देते है जब इस शहर का इतना विस्तार भी नही हुआ था। एक 7 मंजिला अस्पताल भी। व्यापारियों के सामाजिक और परमार्थिक कार्य के तो कहने ही क्या..!! शहर के बाज़ार भी किसी सरकार या नेता के दम पर नही, व्यापारियों के दम पर आज दमक रहे हैं।
शहर की इस दमक-चमक को धुंधला नही होने देना है। नाईट लाइफ और नाईट कल्चर के खिलाफ आप मैदानी सक्रियता बढ़ाइए। बैठके कीजिये। निष्कर्ष निकालिए। जिम्मेदारों तक पहुँचाये। हमें भी दे। हम आपकी शहरहित की इस पहल को उचित स्थान देंगे। अभिभावक की भूमिका अपनाए। बाहर से आये बच्चों से सम्पर्क-संवाद और समन्वय स्थापित कीजिये। गलत दिखे तो शालीनता के साथ रोकिए। टोकिये। समझाइए। पब बार ड्रग ओर शराब पर नजर रखिये। इस गंदगी को पैसे खाकर प्रश्रय देने वाले नेता, अफसर, कर्मचारियों को उज़ागर कीजिये। आखिर ये मेरे, आपके ओर हम सबके इंदौर का मामला है। उसी इंदौर का जो अपनी मेहमाननवाजी, खान पान, आबोहवा ओर शालीन सँस्कृति व संवेदनशीलता के लिए देशभर में पहचाना जाता है।