राष्ट्रीय शोक में ब्रिज का भूमिपूजन निरस्त किया, कार्यकर्ता की ह्रदय विदारक मौत पर मातम की जगह कार्यक्रम

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नितिनमोहन शर्मा

देश जिनकी दासता में 200 बरस रहा, उस महारानी एलिजाबेथ के निधन पर मध्यप्रदेश सरकार इंदौर के एक ब्रिज का भूमिपूजन ये कहकर निरस्त कर देती है कि देश मे अभी राष्ट्रीय शोक है। उसी सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान अपने ही दल के एक जमीनी नेता की अकल्पनीय मौत की सूचना सुनकर भी कार्यक्रम करते है। वो भी एक ऐसी पुस्तक का लोकार्पण जो महीनो पहले ही हो गया था। फीता कटता है। ताली बजती है। भाषण होते है। लेकिन मरने वाले का नाम तक जुबां पर नही आता।

मंचासीन अन्य नेता और सामने बैठा सभागृह भी मौत की खबर से वाकिफ़ होने के बाद कार्यक्रम करता रहा। न बड़े नेताओं ने न सामने बेठे पार्टी के नेताओ ओर कार्यकर्ताओं में से कोई एक नए इस सम्बंध में आवाज नही उठाई की उमेश शर्मा जैसे नेता की असामयिक, अकल्पनीय ओर ह्रदयविदारक मृत्यु के बाद भी कार्यक्रम क्यो जारी है? मुख्यमंत्री की मौजूदगी में हुए इस वाकये ने पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओ को हिलाकर रख दिया है। जीवनभर जिस दल के लिए सर्वस्व समर्पित किया, उस दल ने ओर उसके मुखिया ने भी मौत पर मातम की जगह पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम कर लिया।

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क्या ये पुस्तक का लोकार्पण इतना जरूरी था कि राष्ट्रीय शोक में भी इसका करना जरूरी था? क्या कार्यक्रम में कोई बाहर से अतिथि आये हुए थे जिनके कारण कार्यक्रम टल नही सकता था? क्या उमेश शर्मा की मृत्यु की सूचना के बाद कार्यक्रम निरस्त नही होना था? खजराना ब्रिज का भूमिपूजन तो राष्ट्रीय शोक कहकर ही तो निरस्त किया गया था तो फिर उमेश शर्मा की मौत ब्रिज के भूमिपूजन से भी गई बीती थी? कार्यक्रम शुरू हो भी गया था तो खबर लगने के बाद उमेश जी का जिक्र करते हुए उसे रोका नही जा सकता था?

क्या कार्यक्रम में हुए भाषणों में भी दिवंगत आत्मा के विषय मे दो शब्द बोलने पर रोक लगी हुई थी? जब खबर आ गई थी ओर सबने विचार विमर्श भी एक कोने में जाकर किया तो फर्ज नही बनता था कि ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर का सभागृह श्रद्धांजलि में तब्दील होता? ऐसा क्या था इस पुस्तक में की इसे मौत के मातम के बीच लोकार्पित किया गया? क्या ये पुस्तक पहली बार लांच हो रही थी? कौन वो नेता थे जिनके राजनीतिक स्वास्थ के लिए इस पुस्तक का लोकार्पण बेहद जरूरी था?

ये सारे सवाल भाजपा में कल से मुखर है। पूरी पार्टी गुस्से में है। सिर्फ उन्हें छोड़कर जिनके लिए उमेश शर्मा की मौत से ज्यादा इस पुस्तक के जरिये अपनी राजनीति की दुकान सजानी थी। पार्टी विथ ए डिफरेन्स कही जाने वाली भाजपा क्या ऐसी थी? कार्यकर्त्ताओं को देव दुर्लभ बताने वाली भाजपा का कार्यकर्ता के लिए मृत्यु बाद श्रधांजलि भी दुर्लभ हो गई? कल की घटना के बाद भाजपाई हलकों में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्यारी कहला रही है। जमीनी नेता और कार्यकर्ता गुस्से से भरे हुए है।

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ये सत्ता से जुड़े नेताओ को समझ नही आ रहा न दिख रहा है कि उमेश शर्मा की मौत और शीर्ष नेताओं के व्यवहार ने उनको कितना अंदर तक तोड़ दिया है। अब वे किस मुंह से अपने परिवार में पार्टी की रीति नीति का बखान कर काम करेंगे? कैसे प्रतिद्वंद्वी दल के सामने खम ठोककर कहँगे की हमारी भाजपा सबसे अलग राजनीतिक पार्टी है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान, लोकसभा की पूर्व स्पीकर ओर शहर की 8 बार की सांसद सुमित्रा महाजन, मौजूदा सांसद शंकर लालवानी, मेयर पुष्यमित्र भार्गव, पूर्व मेयर कृष्ण मुरारी मोघे, मालिनी गौड़, प्राधिकरण अध्यक्ष जयपाल सिंह चावड़ा, पूर्व विधायक सुदर्शन गुप्ता सभी तो थे मंच पर जब विधायक रमेश मेंदोला ने आकर सीएम के कान में खबर की कि उमेश नही रहे।

फिर चूक गए चोहान

सीएम ओर पूर्व लोकसभा स्पीकर का चेहरा बता रहा था कि खबर ने उन्हें अंदर तक हिला दिया। सबने कुछ देर विचार विमर्श भी किया। सभागार में बेठे नेता कार्यकर्ता और आमंत्रित लोगो भी उम्मीद थी कि कार्यक्रम रुक जाएगा या अनोपचारिक होगा। या फिर उमेश जी को श्रद्धा सुमन समर्पित होंगे। लेकिन इसमें से एक काम भी नही हुआ। कार्यक्रम हुआ। पूरा हुआ। किताब के कवर का फीता भी कटा ओर भाषण भी हुआ। बाद में भले ही सीएम अस्पताल गए और उमेश शर्मा की पार्थिव देह पर पुष्प चढ़ये ओर पुत्र को दुलारा लेकिन जो उनके जैसे संवेदनशील व्यक्तित्व को ब्रिलियंट कन्वेंशन में जो करना था, उससे वो चूक गए।

मोदी भी धिक्कारेगे

जिस नरेंद्र मोदी के जरिये आप राजनीति की दुकान सजाने का मंसूबा पाले हुए थे, वो मोदी भी तुमहारी इस निष्ठुरता ओर क्रूरता पर तुम्हे धिक्कारेगे। कौन नेता थे इस पुस्तक कार्यक्रम के पीछे जो सीएम को राष्ट्रीय शोक में भी भोपाल से इंदौर आना पड़ा? ऐसा क्या दबाव था कि मृत्यु के समाचार के बाद भी आयोजन हुआ? ऐसी क्या मजबूरी थी कि सभागृह में उमेश शर्मा का एक बार भी नाम नही लिया गया?

मोदी भी जब आपके इस कृत्य को सुनेंगे तो धिक्कारेगे आपको। ये अपनी अपनी भाजपा को लेकर जो इंदौर में अराजकता चल रही है कल का आयोजन का ऐसे ही किसी अपने की भाजपा को चमकाने का था जो सीएम राष्ट्रीय शोक में इंदौर चले आये? क्या इंदौर ऐसा पहला शहर था जहां मोदीजी के लिए लिखी ये किताब ब्रेक हो रही थी? जबकि ये तो जमानेभर में बट चुकी है। स्टोर पर उपलब्ध है।

फिर ऐसी क्या मजबूरी? संगठन का ही तो काम था। केन्सल हो सकता था न? सीएम फिर इंदौर आ जाते लेकिम इंदौर में ऐसे कोन नेता हो गए जिन्हें सीएम भी मना नही कर सकते? या ऐसे कौन से नेता सीएम ने शहर के खड़े कर दिए जिनके लिए सीएम राष्ट्रीय शोक ओर अपने नेता की मौत के बाद भी कार्यक्रम करते रहे? ये सवाल न कांग्रेस पूछेगी न जनता। इन सवालों का सामना भाजपा को भाजपा से ही करना होगा।

खबर मिलते ही कैलाश थम गए

इससे अच्छे तो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय रहे। वे भी पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में बतौर अथिति आमंत्रित थे। उनका भाषण भी होना था। लेकिन उन्हें जैसे ही खबर मिली उन्होने कार्यक्रम से दूरी बना ली। न केवल स्वयम बल्कि विधायक पुत्र आकाश विजयवर्गीय भी ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर नही गए। बाद में विजयवर्गीय ही सीएम को लेकर रॉबर्ट नर्सिंग होम पहुंचे जहां शर्मा की पार्थिव देह थी। विजयवर्गीय ने सीएम को उमेश शर्मा के पिता भाई से भी मिलवाया ओर दिव्यांग पुत्र से भी।

क्षमावाणी कार्यक्रम में ही मिल गई थी खबर

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उमेश शर्मा की मौत की खबर ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर में आने के आधा पौन घण्टा पहले ही मिल गई थी। सीएम उस वक्त इतवरिया बाजार स्थित कांच मन्दिर पर थे। वे यहां समाज के सामुहिक क्षमा वाणी आयोजन में आये हुए थे। तब ही उन्हें विधायक रमेश मेंदोला ने आकर कान में ये खबर सुनाई। खबर सुनते ही सीएम का चेहरा रुआंसा हो गया। वे एकदम से दुःखी हो गए।

उसके बाद वे इतने असहज हो गए कि कार्यक्रम में फिर रुके नही। वाहन में बैठते वक्त भी उनका चेहरा पीड़ा से भरा हुआ था। उस दोरान के फोटो भी सीएम के दुःख को साफ उज़ागर कर रहे है। बावजूद इसके ऐसी क्या मजबूरी रही सीएम को जो उनको एक सामान्य से कार्यक्रम में उमेश शर्मा की मौत की खबर होने के बाद भी जाना पड़ा? ये सवाल भाजपा में पीछा नही छोड़ेगा?

आयोजक ही निरस्त कर देते

मोदी की पुस्तक का आयोजन नगर अध्यक्ष गौरव रणदिवे की अगुवाई में हुआ था। अगुवाकर बने थे कृष्णमुरारी मोघे। राजेश अग्रवाल, चंदू मखीजा, दिव्या गुप्ता, अजय सेंगर, एक्लव्य सिंह गोड़, जे पी मूलचंदानी, रचना गुप्ता, धीरज खंडेलवाल, योगेश मेहता भी आयोजक थे। कुल मिलाकर ये घर का ही अयोजन था जो टाला जा सकता था। बावजूद इसके इन सब नेताओ ने लोकार्पण करना जरूरी समझा। अब ये भाजपाई हलकों को समझ नही आ रहा कि ये अचानक ऐसा कौन सा ग्रुप बन गया जिसके लिए मौत के मातम से ज्यादा आयोजन जरूरी था?