इस संक्रमण से बचने के लिए कहां ढूंढेंगे ‘रेमडेसिविर’

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– लवीन राव ओव्हाल

शहर का सबसे हॉट टॉपिक अभी रेमडेसिविर इंजेक्शन है। खासकर उनके लिए जिन्होंने किसी अपने को संक्रमण की चपेट में तड़पते नहीं देखा है। इंजेक्शन के लिए कड़ी धूप में दवा बाजार के बाहर कतार में खड़े लोगों का दर्द नहीं देखा। वहां खड़े भूखे-प्यासे लोगों को अपनी जान की परवाह ही नहीं है। उन्हें चिंता है तो बस अपने परिवार की। यहां के तो ठीक, बाहर के लोग भी जान बचाने के लिए अब इंदौर का मुंह ताक रहे हैं।

कोई खंडवा से पत्नी का इलाज करवाने आया आया है तो कोई बड़वानी से यहां आकर पिता की जान बचाना चाहता है। जेब में कीमत से चार गुना नोट भरकर लाए, लेकिन इंजेक्शन फिर भी नहीं मिला। हालांकि बंद एसी हॉल में शहर के पालनहार बड़े-बड़े फैसले ले रहे हैं। बाशिंदों को फैसलों पर अमल करना भी पड़ेगा क्योंकि हालत बिगड़ रहे हैं। हालत इसलिए बिगड़ रहे हैं क्योंकि हुक्मरानों की सोच संक्रमित हो गई है। ये ऐसा संक्रमण है जिसे ‘रेमडेसिविर’ की सख्त जरूरत है।

अब हम लॉकडाउन का इंजेक्शन लगवाएंगे लेकिन दमोह में चुनाव होंगे। दिहड़ियों को कोरोना के साथ पेट की आग के लिए भी रेमडेसिविर ढूंढना पड़ेगा। आगे हालत और बिगड़ते जाएंगे क्योंकि जब हालात सुधरे थे जिम्मेदार सरकार बना रहे थे। कसूरवार इसलिए भी है क्योंकि जून-जुलाई में कोरोना शांत हो गया था, तब ये अस्पताल में बिस्तर, सुविधाएं, स्टॉफ बढ़ाने के बजाय बड़े-बड़े आयोजन करवा रहे थे। किसी ने इस बारे में नहीं सोचा कि आफत फिर दस्तक दे सकती है।

अब महामारी से जूझते हुए निकले सालभर बाद भी गोले बनाए जा रहे हैं। लोगों को मॉस्क पहनना सीखाने निकल पड़े और नहीं सीखने पर सरेआम सड़क पर कुटाई हो रही हैं। मुंह खोलो तो ऑफिस तोड़े जा रहे हैं। यदि इस शालिन ‘आग्रह’ से फुर्सत मिले तो चले आना एमवायएच के पीछे। रोजाना नीली बत्ती लगे सफेद ताबूतों में वहां आपकी लापरवाही के सबूत पड़े मिले जाएंगे। जिनके अपने उन्हें अब भी मृतकों की सूची में शामिल होने का इंतजार कर रहे हैं।

अस्पतालों में अब ऑक्सीजन की जद्दोजहद शुरू हो गई है। वह दिन भी आ गया है जब प्राण वायु के लिए तरसना पड़ रहा है। अस्पताल अपने मरीजों को दूसरे अस्पताल भेजने तक के लिए तैयार हो गए हैं। गंभीर मरीजों को जेब में नोटों की गड्डी लेकर ढूंढने पर भी अस्पताल में जगह नहीं मिल रही है। लेकिन फिर भी आंकड़े नहीं बढ़ेंगे, क्योंकि साख नहीं बिगडऩी चाहिए। आपकी लापरवाही का दंश झेल रही जनता अब 60 घंटे घर बैठकर फिर पिछले साल को याद करेगी। हम खुद को तो कोरोना से लडऩे के लिए तैयार कर लेंगे लेकिन, सिस्टम के संक्रमण रोकने के लिए रेमडेसिविर कहां से ढूंढकर लाएंगे।