नई दिल्ली ब्यूरो: भाजपा के खिलाफ जीत दर्ज करने के लिए विपक्ष को अपने हर किले की मजबूत किलेबंदी करने की जरूरत है। दक्षिण के किले में भाजपा की सेंध भी नहीं लग पाए, इसके लिए हैदराबाद का किला सबसे मजबूत करना होगा। हैदराबाद के किले की मजबूती के चंद्रशेखर राव के बिना पूरी नहीं हो सकती है। विपक्ष इस बात को भली भांति जानता है। विपक्ष अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए केसीआर को मनाने में जुटा हुआ है। विपक्ष ने इस काम के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव को लगाया है। अखिलेश यादव ने हैदराबाद पहुंचकर केसीआर से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद उन्होंने एक बाद स्पष्ट कर दिया कि भाजपा को हराना ही सभी दलों का लक्ष्य है।
दरअसल दक्षिण में आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के रास्ते भाजपा अपना नया गढ़ बनाना चाहती है। भाजपा उत्तर भारत खासकर हिंदी भाषी राज्यों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पर पहुंच चुकी है। अब इस शिखर से उपर जाने का रास्ता नहीं है, पर नीचे आने का रास्ता खुला हुआ है। ऐसे में भाजपा को हिंदी भाषी राज्यों में नुकसान होता साफ दिख रहा है। इस नुकसान की भारपाई भाजपा दक्षिण भारत के राज्यों से करना चाहती है। कर्नाटक से भाजपा को उम्मीदें थी। लेकिन विधानसभा चुनाव में मुंह के बल गिरने के बाद कर्नाटक में भी भाजपा को अपना नुकसान ही नजर आ रहा है। भाजपा को दक्षिण में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से ही उम्मीद बनी हुई है। लेकिन भाजपा के लिए दोनों राज्यों में कठिन चुनौती है। तेलंगाना में केसीआर का मजबूत किला है।
जिसे चुनौती देना न तो भाजपा के वश में है और न ही कांग्रेस के। हैदराबाद का रास्ता बंद होने से भाजपा के लिए दक्षिण का द्वार ही बंद हो जाएगा। विपक्ष भी इस बात को भली भांति जानता है। केसीआर की मजबूती को देखते हुए विपक्ष किसी भी तरह से भारत राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) को अपने साथ जोड़ना चाहता है। इसके लिए सपा को जिम्मेदारी सौंपी गई है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसी सिलसिले में हैदराबाद की यात्रा की है। हालांकि बीआरएस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बीआरएस यह जानता है कि किसानों के लिए किए गए उनके कामों की लोकप्रियता तेलंगाना से बाहर निकलकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तक गूंजने लगी है। इतना ही नहीं तेलंगाना में किए गए मंदिरों के जीर्णोद्धार की गूंज भी देश में सुनाई देने लगी है। ऐसे में देश की राजनीति में बीआरएस का प्रभाव बढ़ना स्वाभाविक है। विपक्ष भी इस बात को भली भांति जानता है। यही वजह है कि विपक्ष केसीआर को अपने साथ लाने के लिए पूरी ताकत लगा रहा है।