उज्जैन के महाकाल मंदिर में रंगपंचमी के उपलक्ष्य पर निभाई जाएगी बेहद अनूठी परंपरा, हजारों की संख्या में श्रद्धालु होंगे शामिल

Simran Vaidya
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महाकाल के दरबार में रंगपंचमी पर अनूठी है परंपरा। हम सभी भक़्तजन ये जानते हैं ही कि उज्जैन में बाबा महाकाल की नगरी बेहद निराली है। ऐसा माना जाता है कि यहां कण-कण में भगवान शिव का वास है और मोक्षदायिनी मां शिप्रा में स्नान करने से श्रद्धालु समस्त पापों से विमुक्त हो जाता है। इस नगरी में वैसे तो हर पर्व बड़ी ही धूमधाम साथ मनाए जाते हैं, लेकिन यह नगरी उत्सव मनाने के साथ ही परंपराओं का निर्वहन करने में भी पीछे नहीं है। आगामी चैत्र कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि 12 मार्च रविवार को बाबा महाकाल के दरबार से ऐसे ही मन्नतों के ध्वज निकालने की परंपरा का निर्वहन होने वाला है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होकर इस परंपरा का निर्वहन करेंगे।

ध्वज लेकर विजय पताका के साथ निकलते हैं श्रद्धालु

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महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी जी ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर में रंगपंचमी के पर्व पर मन्नतों के ध्वज निकालने की परंपरा अति प्राचीन है। यह ध्वज पूरे शहर में भव्य चल समारोह के रूप में निकाले जाते हैं, जिसका पूजन जिला प्रशासन और सरकार की तरफ से किया जाता है। पुजारी ने बताया कि राजाधिराज भगवान महाकाल के दरबार में श्रद्धालु से लेकर सरकार तक झोली फैलाए आते हैं। जब भी कोई मन्नत मांगी जाती है तो अनेक श्रद्धालु मन्नत पूरी होने पर रंगपंचमी पर ध्वज फहराने की मनोकामना भी मांगते हैं। इसी के चलते रंगपंचमी के अवसर पर महाकालेश्वर मंदिर से मन्नतों के ध्वज निकलते हैं और भगवान के प्रति कृतज्ञता प्रदान करते हैं। इस प्रकार मन्नत पूरी होने के बाद विजय पताका के रूप में ध्वज निकाले जाते हैं। इस ध्वज की विधि पूजा भगवान महाकाल के सेनापति वीरभद्र के सामने होती है।

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शास्त्र के साथ शस्त्र का भी होता है प्रदर्शन…

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महाकालेश्वर मंदिर के ध्वज चल समारोह में पंडे पुजारियों द्वारा धार्मिक परंपराओं का निर्वहन किया जाता है। इस अवसर पर निकलने वाले चल समारोह में शस्त्र का भी प्रदर्शन होता है। लाठी, तलवार आदि शस्त्र की कलाओं का ढोल धमाकों के दौरान प्रदर्शन किया जाता है।

रंगपंचमी के पर्व पर उज्जैन में मन्नतों के ध्वज निकाले जाएंगे

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रंगपंचमी के पर्व पर उज्जैन में मन्नतों के ध्वज निकाले जाएंगे। साथ ही राजाधिराज बाबा महाकाल टेसू के फूल और केसर के जल से स्नान करेंगे। रंगपंचमी का पहला रंग भी भगवान महाकाल को चढ़ेगा। रंगपंचमी का पहला रंग भी भगवान महाकाल को चढ़ता है। इसके बाद देशभर में रंगपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन महाकालेश्वर मंदिर में एक और परंपरा का पालन होता है। भगवान महाकाल की पूजा अर्चना के बाद विजय पताका फहराकर मनोकामना का ध्वज निकाला जाता है।