सुंदर हो तुम

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यूंही कह दो ना आज,
कि सुंदर हो तुम।
उलझी हुई सी भागती दौड़ती भी,
पसंद हो मुझे।
हर वक़्त सजी संवरी
गुड़िया सी मत बनो।
खोल दो जुल्फों को अपनी,
या बांध लो जुड़ा कस कर
फिर भी पसंद हो तुम।
यूंही कह दो ना आज,
कि जैसी भी हो,
जो भी हो,
बहुत सुंदर हो तुम।

मुझे तुम्हारी दबी सी मुस्कान नहीं,
वो ठहाका मारकर,
बेशर्म हंसी ही है पसंद।
मत ओढ़ो खुद को
इतनी परतों और लिबासों में
कह दो ना बस आज ये,
कि उन्मुक्त हो जाओ इन सभी से
लहरा लो अपना आंचल,
इस मुक्ताकाश तले।
यूंही कह दो ना आज,
कि जैसी भी हो,
जो भी हो,
बहुत सुंदर हो तुम।

कवियित्री
सुरभि नोगजा
भोपाल