यशवंत क्लब (Yashwant Club) एक प्रतिष्ठित राजा-रजवाड़ों का क्लब है, जो अपनी प्राचीनता और समृद्ध विरासत के लिए प्रसिद्ध है। इस क्लब का मुख्य उद्देश्य सदस्यों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देना है। यहां के सदस्य राजवाड़े, नेताओं, उद्योगपतियों, और सामाजिक प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिलते हैं।
मैनेजिंग कमेटी द्वारा संचालित यह क्लब अपने सदस्यों को विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेल, और मनोरंजन की सुविधा प्रदान करता है। हाल ही में मेनेजिंग कमेटी के दो साल पुरे हो चुके है। मैनेजिंग कमेटी के चुनाव 19 जून को घोषित हो चुके हैं। इस चुनाव की आहट, जो सामान्यतः जनवरी माह में होती थी, इस बार मई आधा गुजर जाने के बाद भी शांत है। इसका मुख्य कारण है कि इस चुनाव में सत्ताधारी कमेटी की मजबूती। जबकि विपक्ष के मुख्य चेहरे प्रत्यक्ष तौर पर चुनाव से दूर हैं।
‘सचदेवा पर आधारित है चुनाव’
मैनेजिंग कमेटी में सचिव संजय गोरानी और अन्य सदस्यों की स्थिति मजबूत है। लेकिन क्लब के छह बार अध्यक्ष रह चुके टोनी सचदेवा फिर से इसमें दिलचस्पी लेने लगे हैं। लेकिन क्लब में उनके खिलाफ विरोध है। इसके साथ ही, सचदेवा-गोरानी गुट के भीतर भी विवाद है, जिसमें गुट की इच्छा है कि सचदेवा पद छोड़ें और उनकी जगह पर संतोष वागले को बैठाया जाए। यदि सचदेवा इस निर्धारित मार्ग पर नहीं चलते हैं, तो गुटों के बीच बात बिगड़ सकती है और इसका परिणाम यह हो सकता है कि एक नया विपक्षी पैनल बन जाये।
पम्मी चुप क्यों?
पम्मी छाबड़ा का चुपचाप रहना चुनावी माहौल में एक रहस्य बना हुआ है। वे हर चुनाव में अपने पैनल को संदर्भ में लेकर आते हैं, लेकिन इस बार उनका चुपचापी बरकरार रहना आश्चर्यजनक है। पता चलता है कि वे इस बार चुनाव में स्वयं उतरने की नहीं सोच रहे हैं। इस चुनाव में उनकी पैनल की सबसे बड़ी कमजोरी उच्चतम पद पर सचिव के लिए उचित उम्मीदवार की अभाव है। क्लब में सचिव का पद महत्वपूर्ण होता है, तभी चेयरमैन और सचिव की जोड़ी को सदस्यों का समर्थन प्राप्त होता है।
इस दौरान, एन. कुकरेजा को चेयरमैन के लिए तैयार पाया जा रहा है, जबकि अजय बागड़िया का भी नाम चर्चा में है। लेकिन सचिव पद के लिए उचित उम्मीदवार की कमी इस विवाद को और भी रोचक बना रही है।
‘दो पद के लिए नए प्रत्याशी’
चुनावी महौल में एक और दिलचस्प मोड़ आया है, जहां दो अहम पदों के लिए नए प्रत्याशियों की उम्मीद है। पिछले बार सह सचिव पद पर चयनित अतुल सेठ इस बार चुनाव में भाग नहीं ले रहे हैं, जिससे एक नया प्रत्याशी इस पद के लिए चुनाव में उतरेगा। साथ ही, कार्यकारिणी सदस्य रुपल पारिख भी अब चुनाव नहीं लड़ सकती, क्योंकि वे लगातार दो बार इस पद पर रह चुकी हैं। इससे एक और पद के लिए नए प्रत्याशी की आवश्यकता है।
इस बार के चुनाव में चेयरमैन पद, सहसचिव पद, और एक कार्यकारिणी सदस्य के पद पर विवाद बना हुआ है, जिससे स्थिति असमंजस में है।