इंदौर. वर्तमान समय में पढ़ाई और अन्य काम के लिए स्मार्टफोन और कंप्यूटर का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है। वही हमारी लाइफ स्टाइल सेडेंटरी होने के चलते हैं बच्चें खेलकूद पर ध्यान देने के बजाय घंटो तक स्क्रीन के सामने बैठ कर पढ़ाई और अन्य एक्टिविटी करते हैं। इस वजह से आंखों का नंबर बढ़ने का भी समस्या सामने आ रही है। पहले 10 में से एक बच्चा आंखों से संबंधित समस्या का शिकार हुआ करता था जो कि अब 10 में से 3 बच्चों में ऐसी समस्याएं देखी जाती है। स्क्रीन के सामने हमेशा कार्य और पढ़ाई के दौरान 20 मिनट होने पर 20 से 30 सेकंड का ब्रेक लेना चाहिए। वर्तमान समय में आंखों से संबंधित समस्या में सबसे ज्यादा समस्याएं इसी वजह से सामने आ रही है।वही हमारे खानपान में भी अब आंखों के लिए जरूरी विटामिन से भरपूर फल फ्रूट भी कम हो गए हैं इस वजह से भी बच्चों में आंखों से संबंधित समस्या देखने को सामने आती है। वही कई बार जेनेटिक रूप से भी यह समस्या बच्चों में देखी जाती। इसी के साथ आंखों से संबंधित समस्याए उम्र के साथ बढ़ती है यह बात डॉ महावीर दत्तानी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही वह शहर के प्रतिष्ठित राजस आई हॉस्पिटल में ऑप्थोमोलॉजिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सवाल. आंखों के लिए किस प्रकार के फल फ्रूट और भोजन लेना चाहिए
जवाब. आंखों के लिए विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन ई जरूरी होते हैं। विटामिन सी कॉर्निया के लिए उपयुक्त माना जाता है वही विटामिन ए रेटिना के लिए अच्छा माना जाता है। वहीं अन्य विटामिन में पाई जाने वाली कई चीजें आंखों को अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाती है लेकिन आजकल लोगों में फास्ट फूड प्रचलन बढ़ गया है जिससे फलों का सेवन कम हो गया है जो कि सही नहीं है। कई फल आंखों के लिए जरूरी विटामिंस का अच्छा सोर्स है जिसमें पपाया, बेरी, ऑरेंज, मैंगो और अन्य प्रकार के फल शामिल हैं।
सवाल. मायोपिया और हाइपरमेट्रोपिया क्या है इन समस्याओं में कौन से लेंस लगाए जाते हैं
जवाब. निकट दृष्टि दोष को चिकित्सीय भाषा में मायोपिया कहा जाता हैं, इसमें दूर की चीजों को स्पष्ट रूप से देखने में परेशानी आती है। मायोपिया में आंख की पुतली (आई बॉल) का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब रेटिना पर बनने के बजाय थोड़ा आगे बनता है। ऐसा होने से दूर की वस्तुएं धुंधली और अस्पष्ट दिखाई देती हैं
जिस वजह से माइनस के चश्मे लगाए जाते हैं वही दूर दृष्टि दोष को हाइपरमेट्रोपिया के नाम से भी जाना जाता है। यह एक प्रकार की अपवर्तक त्रुटि या नेत्र शक्ति है। यहाँ कोई दूर की वस्तुओं के साथ-साथ पास की वस्तुओं को भी स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता है। इस समस्या से निजात पाने के लिए प्लस लेंस का इस्तेमाल किया जाता है। इसी के साथ एस्टिगमेटिज्म की समस्या कॉर्निया की कमजोरी के चलते सामने आती है इसमें डिग्री वाले लेंस लगाए जाते हैं इस वजह से आंखों से संबंधित समस्या में कमी आती है।
सवाल. लेसिक लेजर सर्जरी क्या है यह कितनी फायदेमंद होती है
जवाब. आंखों से संबंधित समस्या से छुटकारा पाने के लिए लेसिक लेजर सर्जरी की जाती है। वहीं कई मरीज इसके लिए जो फिट नहीं होते उनकी आंखों के अंदर लेंस फिट किया जाता है। लेसिक सर्जरी में लेजर की मदद से कॉर्निया का शेप चेंज कर दिया जाता है। इसमें किसी प्रकार के इंजेक्शन और पट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है वही इस सर्जरी के बाद पेशेंट बहुत जल्दी रिकवरी कर लेते हैं। लेसिक सर्जरी आमतौर पर 19 साल के बाद ही की जाती है क्योंकि कई बार बच्चों में नंबर स्टेबल नहीं रहते इस वजह से एक उम्र के बाद ही यह सर्जरी की जाती है।
सवाल. ग्लोकोमा क्या है यह किस तरह से आंखों को नुकसान पहुंचाता है
जवाब. ग्लोकोमा को अक्सर “दृष्टि का मौन चोर” कहा जाता है, क्योंकि इसके अधिकांश प्रकारों में आम तौर पर कोई दर्द नहीं होता है और ध्यान देने योग्य दृष्टि हानि होने तक कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होता है । इसमें हमारी आंख की नस जिसे ऑप्टिक नर्व कहा जाता है यह आंख के पीछे से निकलकर ब्रेन तक जाती है और आंख और ब्रेन को जोड़ने का कार्य करती है। इसके कमजोर होने पर आंखों का सिग्नल ब्रेन तक नहीं पहुंचता है जिस वजह से दिखाई देना बंद हो जाता है। अगर इसके खराब होने की बात की जाए तो आंख का प्रेशर बढ़ना या किसी चीज द्वारा नस को दबाना शामिल है। लेकिन सबसे ज्यादा कॉमन ग्लोकोमा होता है जिसमें आंख के ऊपर प्रेशर आने की वजह से यह समस्या सामने आती है। यह समस्या बहुत कॉमन रूप से पाई जाती है। लेकिन आमतौर पर लोगों को इसके बारे में पता नहीं होता है यह धीरे-धीरे अपना काम करती रहती है जिसमें आखिरी स्टेज पर पूरी तरह से आंखों की रोशनी चली जाती है।
सवाल. आपने-अपनी मेडिकल फील्ड की पढ़ाई किस क्षेत्र में और कहां से पूरी की है
जवाब. मैंने अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई राजीव गांधी मेडिकल कॉलेज मुंबई से पूरी की। उसके बाद मैंने आई स्पेशलाइजेशन में एमएस इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज से किया। मैंने आई स्पेशलाइजेशन में कई फेलोशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी हिस्सा लिया है। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने सूरत के आई क्यू हॉस्पिटल, गुरु नानक ट्रस्ट हॉस्पिटल गुजरात और देश के कई अन्य प्रतिष्ठित हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दी है। वहीं वर्तमान में मैं इंदौर के राजंस हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहा हूं।