इंदौर। नशे की लत में कई फैक्टर काम करते हैं इसकी आदत होने कारण कोई एक नहीं होता है। नशा हमारे ब्रेन में न्यूरोकेमिकल रूप से गड़बड़ तो करता ही है इसके अलावा दूसरी चीजें भी उसका कारण बनती है जिसमें मानसिक तनाव, पारिवारिक समस्याएं, आर्थिक समस्याएं और भी कई समस्याएं होतो हैं जो नशे की लत का कारण बनती है। सिर्फ दवाई देकर नशे की समस्या से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है इसके लिए प्रॉपर रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम होना जरूरी है। अक्सर यह देखा गया है कि जिस घर में पारिवारिक विवाद और नशे का सेवन होता है वहां के लोगों में नशा करने की समस्या ज्यादा पाई जाती है। यह बात डॉक्टर पवन राठी मनोचिकित्सक ने कही। वह बिचोली मरदाना पर डॉक्टर की टीम के साथ स्वाध्याय रिहैब सेंटर संचालित कर रहे हैं जहां पर अब तक लगभग 5 हज़ार मरीजों को नशा मुक्ति से दूर करने का कार्य किया गया है।
सवाल. स्वाध्याय रिहैब सेंटर की शुरुआत कब और कैसे हुई और कौन से डॉक्टर आपके साथ इस सेवा में जुड़े है
जवाब. स्वाध्याय रिहैब सेंटर की शुरुआत हम चार डॉक्टर ने मिलकर लगभग 5 साल पहले की थी। नशा मुक्ति सेंटर को संचालित करने वाले 4 डॉक्टर हैं जिसमें मैं डॉक्टर निखिल ओझा, डॉक्टर आशुतोष सिंह, डॉक्टर राहुल माथुर शामिल है। वहीं डॉक्टर बाहुल ने हाल ही में ज्वाइन किया है। वही डॉक्टर रमण शर्मा विजिटिंग साइकेट्रिस्ट के रूप में अपनी सेवाएं देते हैं।
सवाल. नशे की लत छुड़वाने के लिए किस तरह का प्रोसीजर फॉलो किया जाता है शुरुआत में किस तरह की समस्या देखने को सामने आती है
जवाब. नशा करने वाले व्यक्ति को सबसे पहले सेंटर पर एडमिट करवाया जाता है जिसमें आमतौर पर इसका 2 फेस में ट्रीटमेंट किया जाता है। जिसमे डिटॉक्स मैनेजमेंट के शुरुआती दिनों में आमतौर पर नशा छोड़ने पर व्यक्ति के शरीर में विड्रोल फीचर देखने को मिलते हैं। जिसमें हाथ पैर कांपना, बेचैनी बढ़ना, भूख नहीं लगना, घबराहट होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं कई बार लोगों में सीरियस केस भी होते हैं जिसमें मिर्गी के दौरे भी सामने आते हैं। उस दौरान विड्रॉल फीचर को मैनेज करने के लिए मेडिसिन और काउंसलिंग की मदद ली जाती है। कई लोगों को शुरुआत में नशा छोड़ने पर विड्रोल फीचर 5 से 7 दिन में सेट हो जाते हैं वहीं कई लोगों को इसमें 15 दिन तक का समय लग जाता है जिसमें इस तरह की समस्याएं उनके शरीर में देखने को सामने आती है।
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जवाब. एडमिट होने के बाद पेशेंट किस तरह से बर्ताव करते हैं
सवाल. कई बार पेशेंट एक हफ्ते के बाद कहता है कि अब मैं ठीक हो गया हूं मुझे जाने दिया जाए। मुझे किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं है उस दौरान हम घरवालों से लिया हुआ फीडबैक उसके साथ साझा करते हैं। और बताते हैं कि आप किस तरह से नशे की गिरफ्त में थे किस तरह से दिन भर आप नशा करते थे और इन आदतों के चलते आपकी लाइफ कितनी अफेक्ट होती थी। उन्हें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि आप इस बीमारी के शिकार हैं। कुछ समय बाद वह इस चीज को एक्सेप्ट कर लेते है जिस वजह से फिर वह सेंटर पर सारे नियम फॉलो करते है और नशे की लत से छुटकारा पाने की कोशिश करते है।
सवाल. किस प्रकार से पेशेंट की दिनचर्या होती है क्या उन्हें बीच-बीच में घर जाने दिया जाता हैं
जवाब. रिहैब सेंटर में एडमिट होने के बाद पेशेंट की दिनचर्या को हम शेड्यूल करते हैं जिसमें सुबह 5 बजे इन्हें उठा दिया जाता हैं। उठने के बाद नहाने और फ्रेश होने के पश्चात नाश्ता करना, व्यायाम करना, प्रार्थना करना शामिल है। इसके बाद इन मरीजों की काउंसलिंग के सेशन शुरू हो जाते हैं। नशा मुक्ति में मेन काउंसलिंग अल्कोहल एनोनिमस होती है जिसमें 12 स्टेप होती है व्यक्ति को इन एक एक स्टेप को फॉलो कर आगे बढ़ना होता है। इसमें पेशेंट को अपने बारे में लिखना और बताना होता है जिसमे अल्कोहल की आदत के बारे में शुरू से लिखते और बताते हैं और अपने शरीर और जिंदगी में बदलाव को भी उसमें दर्शाते हैं।
पेशेंट को 3 से 4 महीने तक एडमिट किया जाता है पहले 1 महीने तक किसी से मुलाकात नहीं करवाते हैं वहीं एक महीने बाद फैमिली से मीटिंग करवाई जाती हैं। वही फिर हर सप्ताह फैमिली के एक मेंबर को मिलना अलाउ करते हैं। इसी के साथ रिकवरी बेहतर होने पर पेशेंट को को पैरोल पर घर भी भेजते हैं। और इससे ज्यादा बेहतर रिकवरी होने पर कई पेशेंट को रोज सेशन फॉलो करने के बाद शाम को घर भेज दिया जाता है।वही खाने में इन मरीजों को हाई प्रोटीन डाइट दी जाती है जिसमें सोयाबीन, पनीर, वेजिटेबल, फ्रूट, सैलेड्स शामिल है।
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सवाल. रिहैब सेंटर पर अभी सबसे ज्यादा किस नशे के शिकार लोग आते है
जवाब. अभी वर्तमान में हमारे पास 50 से ज्यादा पेशेंट भर्ती है जिसमें सभी डॉक्टर समय समय पर आकर अपने पेशेंट का ट्रीटमेंट करते हैं उसी के साथ सेंटर पर एक ड्यूटी डॉक्टर रहते हैं और नर्सिंग स्टाफ भी रहता है। जो समय-समय पर उनका ट्रीटमेंट देखते हैं। रिहैब सेंटर में बेसिक जरूरत की सारी मशीनें और उपकरण अवेलेबल रहते हैं इसमें इमरजेंसी में इनका सहारा लिया जाता है। हमारे सेंटर पर फीमेल पेशेंट भी रहती है जिनके लिए अलग से व्यवस्था करवाई जाती है।
अगर बात पेशेंट की करी जाए तो सबसे ज्यादा अल्कोहल के पेशेंट होते हैं वहीं दूसरे नंबर पर ब्राउन शुगर के पेशेंट बढ़ते जा रहे हैं जो कि एक चिंता का विषय है। पहले ब्राउन शुगर के पेशेंट बड़े शहरों में हुआ करते थे जो कि आज इंदौर में काफी मात्रा में बढ़ रहे हैं। हमारे पास एमपी के हर जिले से और कहीं बाहर से भी पेशेंट आते हैं।
पेशेंट के मनोरंजन के लिए हमारे सेंटर पर सारे बड़े फेस्टिवल सेलिब्रेट किया जाते हैं वहीं जो पेशेंट ठीक होकर गए हैं उन्हें इनवाइट किया जाता है और वह दूसरे पेशेंट की काउंसलिंग भी करते हैं। इसी के साथ हम कई अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाते हैं जिसमें शहर और आसपास के गांव देहात में जाकर कैंप लगाते हैं। शहर में और भी नशा मुक्ति अभियान के तहत सेंटर संचालित किए जा रहे हैं लेकिन वहां पर आमतौर पर सिर्फ पेशेंट की काउंसलिंग की जाती है हमारे यहां पर मेडिकल ट्रीटमेंट भी दिया जाता है।