क्यों करेगा कोई किसी की मदद..?

Mohit
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राजेश ज्वेल

सिर्फ विरोध के लिए विरोध की राजनीति ने देश का बेड़ा गर्क कर रखा है..नतीज़तन तथ्य और तार्किकता को हाशिए पर पटक फिजूल की बकवास ज्यादा होती है… नेताओं के प्रति दो कौड़ी की सहानुभूति ना होने के बावजूद मेरा स्पष्ट मानना है कि कोरोना आपदा के वक्त तमाम संगठनों के साथ राजनेताओं ने जो मदद की उसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए… अभी स्वास्थ्य अफसर और मंत्री के ड्राइवर द्वारा इंजेक्शन की कालाबाजारी का मामला सुर्खियों में है… जबकि हकीकत यह है कि इन ड्राइवरों ने यह कतई नहीं कहा कि मंत्री या उनके परिजन ने इंजेक्शन ब्लैक करने के लिए सौंपे… यह सामान्य बुद्धि की बात है कि ड्राइवर ने ये इंजेक्शन मदद के रूप में हासिल कर अधिक कीमत पर बाजार में बेच दिए तो इसमें मंत्री या परिजन दोषी कैसे हुए..?

अभी कई लोगों ने ऑक्सीजन सिलेंडर, इंजेक्शन से लेकर कई तरह की मदद कोरोना पीडि़तों को पहुंचाई… अब यह तो संभव नहीं कि कोई विधायक, मंत्री या समाजसेवी खुद सारे पीड़ितों तक पहुँचे और अपनी आंख के सामने ऑक्सीजन-इंजेक्शन लगवाए..उसे तो अप्रोच करने वाले पर ही भरोसा करना पड़ेगा ..मेरा स्पष्ट मानना है कि सांसद, विधायक, मंत्री लाख भ्रष्ट हों मगर इतने गए-गुजरे नहीं हैं कि आपदा की इस घड़ी में इंजेक्शन- दवाइयों की सीधे कालाबाजारी करवाएंगे..उल्टा इन लोगों ने अपने स्त्रोतों और जुगाड़ से मदद की सामग्रियों को हांसिल कर पीडि़तों तक पहुंचाया…भले ही इसकी आड़ में वे अपनी राजनीति चमका रहे हो मगर कम से कम किसी मरते मरीज की मदद तो की गई ..इंदौर सहित देश भर के हजारों-हजार परिवार इन मददगारों के आजीवन ऋणी रहेंगे…

मुझे पुख़्ता जानकारी है कि इंदौर में विधायकों या मंत्री के जरिए जो इंजेक्शन उपलब्ध करवाए वे होलसेल कीमत पर ही पीड़ितों के लिए दिए.. मेरे सहित कई मीडिया के लोगों ने भी अपने स्तर पर इसी तरह मदद की.. अब इसमें से कुछ लोग अगर इस का दुरुपयोग करें तो इसमें मददगार कैसे दोषी हो गया ? दिल्ली में भी इस तरह के आरोप नेताओं पर लगे और हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी लगा दी…विसंगति देखिए कि मीडिया या राजनीति के एक बड़े वर्ग ने भी इस दौरान खुद अपने या परिजनों-मित्रों के लिए ऐसी मदद हासिल की और फिर किसी कालाबाजारी के पकड़े जाने पर मंत्री को दोषी बता इस्तीफा मांगने वालों की कतार में शामिल हो गए…इस मामले का दूसरा और महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि अभी तक जितने भी कालाबाजारिए पकड़ाए, उनमें छोटे कर्मचारी ज्यादा लिप्त मिले.. नर्स, वार्ड बॉय या ड्राइवर ,जो मामूली वेतन पर काम करते है , उन्हें 25-50 हजार रुपए में इंजेक्शन बेचकर आर्थिक मंदी के इस दौर में थोड़ी कमाई परिवार के भविष्य के लिए आसान लगी होगी मगर इसके बदले हम मददगारों को कठघरे में खड़ा कर मानवता का खून कर रहे है…फलस्वरूप कल से विपदा की ऐसी घड़ी में कोई किसी की मदद नहीं करेगा…!