क्यों हुई थी सती प्रथा की शुरुआत? इसके पीछे का इतिहास और विरोध

RishabhNamdev
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सती प्रथा, भारतीय समाज के इतिहास में एक महत्वपूर्ण सामाजिक प्रथा थी, जिसकी शुरुआत कई सदियों पहले हुई थी। इस प्रथा के आदिकाल में, जब किसी पुरुष की पत्नी उसके मृत्यु के बाद अपनी जीवन को आग में समाप्त कर देती थी, तो उसे सती कहा जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य था पतिव्रता स्त्री की महानता और पतिपरायणता को प्रमोट करना।

सती प्रथा की शुरुआत के पीछे विभिन्न कारण थे, जिनमें धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक प्रतिक्रिया शामिल थी:

1. धार्मिक आदर्श: सती प्रथा का आरंभ धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा था। कुछ लोग मानते थे कि सती अपने पति के साथ आग में समाहित होकर उनके साथ स्वर्ग में पहुंचती हैं और उनके लिए धार्मिक श्रेय प्राप्त करती हैं।

2. सामाजिक प्रतिष्ठा: सती प्रथा को समाज में स्त्री की महत्वपूर्ण भूमिका के प्रति एक प्रकार की प्रतिष्ठा देने का माध्यम माना जाता था। सती बनने वाली स्त्रियों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता था।

3. आर्थिक प्रतिक्रिया: कुछ बार ऐसा भी होता था कि सती बनने वाली स्त्री के परिवार को उनके पति के संपत्ति का दान या आर्थिक सहायता मिलती थी, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार होता था।

सती प्रथा के खिलाफ विरोध:

हालांकि सती प्रथा को कई लोग समर्थन देते थे, इसके खिलाफ भी बहुत सारे विचारक और समाजसेवी लोग थे। उनके विरोध कारणों में निम्नलिखित शामिल थे:

1. मानवाधिकार का उल्लंघन: सती प्रथा को मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता था। इस प्रथा में स्त्री को उसके स्वतंत्र इच्छा के खिलाफ आग में जलने के लिए मजबूर किया जाता था, जिससे उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता था।

2. समाज में नारी के स्थान के प्रति उल्लंघन: सती प्रथा के रूप में स्त्रियों को उनके पतिओं के जीवन में होने वाले परिवर्तनों से महसूस किया जाता था, जिससे समाज में स्त्री के स्थान के प्रति उल्लंघन होता था।

3. सती की बालिकाओं के साथ प्रथा: कुछ मामूली लड़कियों को भी सती बना दिया जाता था, जिससे बच्चों के साथ भी आग के बलि देने की प्रथा अधिक निराधार हो जाती थी।

सती प्रथा का अंत: आधुनिकीकरण के साथ, सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठने लगी और इसे बंद करने के लिए कई कदम उठाए गए। राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, और अन्य समाजसेवी नेता सती प्रथा के खिलाफ उत्कृष्ट योगदान किया।

इसके परिणामस्वरूप, सती प्रथा को भारत में बंद कर दिया गया और इसे विरोधियों द्वारा लाए गए कानूनों के साथ निष्क्रिय कर दिया गया। यह एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया थी जिससे समाज में स्त्री के स्थान में सुधार हुआ और मानवाधिकारों का समर्थन किया गया।