गुलशन नंदा और सुरेंद्र मोहन पाठक पाठ्यक्रम में शामिल करने का इतना विरोध क्यों ?

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अर्जुन राठौर

गोरखपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय ने नई शिक्षा नीति के तहत यह फैसला किया है कि हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों को गुलशन नंदा से लेकर जासूसी उपन्यास कार सुरेंद्र मोहन पाठक सहित अनेक लोकप्रिय लेखकों के उपन्यास कोर्स में पढ़ाए जाएंगे, इसको लेकर पूरे देश में और खासकर हिंदी जगत में हंगामा हो गया है कुछ लोग विश्वविद्यालय के इस फैसले की जमकर आलोचना कर रहे हैं और वे कह रहे हैं कि लुगदी साहित्य के नाम से प्रसिद्ध उपन्यास कारों की रचनाओं को छात्रों को पढ़ाने से क्या हासिल होगा?

उनका यह भी कहना है कि स्तरीय साहित्यकारों की रचनाओं को ही कोर्स में शामिल किया जाना चाहिए ।

 

उल्लेखनीय है की गुलशन नंदा सहित उस समय के अनेक लोकप्रिय सामाजिक और जासूसी उपन्यास लिखने वाले लेखकों को हिंदी साहित्य जगत ने कभी भी स्वीकार नहीं किया और उन्हें लुगदी साहित्यकार कहकर अपनी जमात से बाहर भी किया जाता रहा ।लेकिन गुलशन नंदा ने जिस तरह का लेखन किया उसका नतीजा यह निकला कि उनके अधिकांश उपन्यासों पर चर्चित फिल्में बनी और लाखों की संख्या में उन्हें पाठक मिले ।

 

 

गुलशन नंदा उस समय की युवा पीढ़ी के बीच खासे लोकप्रिय रहे हैं और प्रकाशकों ने उनकी खूब किताबें बेची उस दौर में भी गुलशन नंदा को हिंदी साहित्य जगत ने हमेशा हिकारत की नजर से देखा लेकिन गुलशन नंदा ने अपनी एक अलग लाइन बनाई और वे दिनों दिन लोकप्रिय होते चले गए उन्होंने कभी भी हिंदी साहित्य से यह नहीं कहा कि वे उन्हें सम्मानित करें या साहित्य का किसी भी प्रकार का पुरस्कार दें ।

 

इसी तरह से यदि जासूस उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक की बात करें तो सुरेंद्र मोहन पाठक की किताबों की बिक्री ने रिकॉर्ड तोड़ा है उनके कई उपन्यास 5 लाख की संख्या तक बिके हैं और वे आज भी नियमित लिख रहे हैं ।

 

अब सवाल इस बात का है कि क्या इन दोनों लेखकों सहित अन्य सामाजिक उपन्यास लिखने वाले लेखकों की किताबों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ? हिंदी में गंभीर लेखन करने वाले साहित्यकारों का कहना है कि लुगदी साहित्य पढ़ाने से ज्यादा बेहतर यही है कि m.a. साहित्य का कोर्स ही बंद कर दिया जाए क्योंकि वे किसी भी कीमत पर इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि गुलशन नंदा और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे लेखक पाठ्यक्रम में शामिल किए जाएं ।

 

 

पंडित दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय ने यह तय किया है कि m.a. के पाठ्यक्रम में 5 क्रेडिट और 100 अंक वाले लोकप्रिय साहित्य विषय में इब्ने सफी की जासूसी दुनिया, गुलशन नंदा के नीलकंठ, वेद प्रकाश शर्मा के वर्दी वाला गुंडा, राधेश्याम की मंचन के लिए रची गई रामायण और हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए ।

 

बताया जाता है कि पूरे पाठ्यक्रम को 5 हिस्सों में बांटा गया है पहली यूनिट में लोकप्रिय साहित्य की अवधारणा और दूसरी यूनिट में उसकी लोकप्रियता को आधार बनाया जाएगा । तीसरी यूनिट तिलिस्मी तथा जासूसी साहित्यकार देवकीनंदन खत्री, गोपाल राम गहमरी जैसे नामों की होगी चौथी यूनिट में नगरीय तथा ग्रामीण संस्कृति में लोकप्रिय साहित्य के महत्व की चर्चा की जाएगी और पांचवी तथा अंतिम यूनिट सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगी इसमें इब्ने सफी, गुलशन नंदा, वेद प्रकाश शर्मा, सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास और मधुशाला को महत्व दिया गया है ।

 

अब सवाल इस बात का है कि यदि लोकप्रियता के पैमाने पर इन लेखकों की किताबें चर्चित होती है तो फिर इन्हें पाठ्यक्रम में शामिल करने में क्या बुराई है ?जाहिर है कि वर्दी वाला गुंडा या फिर गुलशन नंदा की नीलकंठ पढ़ने वाले छात्र आसानी से परीक्षा में उत्तर दे सकेंगे क्योंकि यह उनकी रूचि के विषय है यह ठीक है ऐसा है कि दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे जैसी फिल्मों को फिल्मी पाठ्यक्रमों में शामिल कर लिया जाए ।