राज नेता इतने गैर जिम्मेदार क्यों?

Share on:

राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’

राज नेता इतने गैर जिम्मेदार क्यों?

राजनेताओं में एक हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो कोरोना की भयावहता को ध्यान में रखकर लगातार अपील कर रहे हैं कि मुंह में मास्क लगाएं, दो गज की दूरी बनाकर रखें और बार-बार हाथ धोएं। मोदी खुद इसका पालन करते भी दिखाई पड़ते हैं। मप्र में दो तरह के राजनेता हैं। पहली श्रेणी में शिवराज सिंह चौहान व भूपेंद्र सिंह, दूसरी में नरोत्तम मिश्रा एवं गोपाल भार्गव जैसे नेता आते हैं। दोनों श्रेणी के नेताओं ने गलतियां कीं। किसी ने कम, किसी ने ज्यादा। शिवराज एवं भूपेंद्र मास्क लगाए नजर आए लेकिन राजनीतिक आयोजन बंद नहीं किए। दो गज की दूरी बनाए रखने के मामले में लापरवाही बरती। नरोत्तम एवं गोपाल गाइडलाइन का पालन करते नजर नहीं आए। नतीजा यह कि ये कांग्रेसियों को तोड़कर भाजपा की सदस्यता दिला रहे थे, अब कोरोना ने ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। लिहाजा, सरकार और संगठन दोनों अस्पताल में हैं। इन्होंने अपने नेता नरेंद्र मोदी की अपील को भी नजरअंदाज किया। आखिर, महामारी के मसले पर भी ये इतने गैर जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं। खतरे की गंभीरता समझ में आई तब शिवराज के सख्त निर्देश के बाद नरोत्तम ने मास्क पहनना प्रारंभ किया। गोपाल कब पहनते हैं, कोई नहीं जानता।
‘विष्णु’ को अब ‘शिव’ की जरूरत
हिंदू परंपराओं में मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक भगवान ‘विष्णु’ विश्राम करते हैं और प्रकृति की पूरी सत्ता ‘शिव’ के हाथों में आ जाती है। प्रदेश की सत्ता की बात करें तो शिवराज सिंह चौहान अर्थात ‘शिव’ को अपनी सरकार गठित करने के लिए जितने चक्कर दिल्ली और कांग्रेस से आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के लगाना पड़े, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा अर्थात ‘विष्णु’ के उससे कम नहीं। अपनी सत्ता को स्थायित्व देने के लिए ‘शिव’ को कई पापड़ बेलने पड़े, उन्हीं के शब्दों में कहें तो ‘विषपान’ तक करना पड़ा। वे अपने खास कई विधायकों को मंत्री नहीं बना सके। उनके स्थान पर नए चेहरों को जगह देना पड़ी। अब पांसा पलट गया है। ‘विष्णु’ को अपनी टीम गठित करना है, इसके लिए उन्हें ‘शिव’ की मदद की जरूरत है। ‘शिव’ इसी शर्त पर सहमति देंगे जब उनके खास विधायकों को संगठन में महत्वपूर्ण पद मिले, जिन्हें वे मंत्री नहीं बना सके। इसलिए जैसा खेल मंत्रिमंडल के गठन में चल रहा था, वहीं प्रदेश भाजपा की कार्यकारिणी के गठन में दोहराए जाने की स्थिति है। मंत्रिमंडल के गठन में शिव को समझौता करना पड़ा था, विष्णु कितना कर पाते हैं, इस पर सबकी नजर है।
पहले नहीं बरत सकते थे यह सतर्कता?
कोरोना पॉजीटिव होने और चिरायु में भर्ती होने के बाद से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान चर्चा में हैं। एक वर्ग तारीफ कर रहा है, दूसरा आलोचना। तारीफ इस बात की कि अस्पताल में भर्ती होने के बावजूद उन्होंने छुट्टी नहीं ली। लगातार काम कर रहे हैं। कोरोना की समीक्षा के साथ अन्य विभागों पर नजर रख रहे हैं। आलोचना इसे लेकर कि अस्पताल में रहने के दौरान यह प्रचार करने की क्या जरूरत कि मैं खुद चाय बना रहा हूं, अपने कपड़े धो रहा हूं। जब एक विधायक अपनी पत्नी के साथ उनसे मिल आए, उनका फोटो जारी हो गया, इसके बाद ही उन्होंने निर्देश क्यों जारी किए कि उनसे मिलने कोई न आए। यह सतर्कता पहले ही बरती जा सकती थी। कुछ मंत्रियों द्वारा गाइडलाइन का पालन न करने और राजनीतिक कार्यक्रमों के कारण कोरोना फैलने की खबरों के बाद ही उन्होंने क्यों कहा कि अब राजनीतिक आयोजन नहीं होंगे। मंत्री मास्क लगाने के साथ गाइडलाइन का पालन करें वर्ना उनके ऊपर भी जुर्माना होगा और प्रकरण दर्ज किया जाएगा। हालांकि मंत्रियों पर जुर्माना करने एवं प्रकरण दर्ज करने की हिम्मत किसी में नहीं है। फिर भी सतर्कता बरतते हुए इस तरह के निर्देश पहले भी तो जारी किए जा सकते थे।
अजय विश्नोई की बात में दम तो है.
हो सकता है कि भाजपा के वरिष्ठ विधायक अजय विश्नोई मंत्री न बनाए जाने से नाराज हैं, इस कारण संगठन एवं सरकार पर सवाल उठा रहे हों। लेकिन यदि वे कोई पते की बात कह रहे हैं तो उस पर गौर होना चाहिए। जैसे, कोरोना को लेकर उन्होंने कहा कि चिरायु अस्पताल में ऐसा क्या है कि मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री, विधायक और अफसर कोरोना पॉजीटिव निकलने के बाद वहां ही जाकर भर्ती होना चाहते हैं। ईलाज का पूरा भार भी सरकार वहन कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि हम 15 साल से सत्ता में हैं और एक भी ऐसा मेडिकल कॉलेज क्यों नहीं बना सके जहां चिरायु जैसी सुविधाएं हों और सरकार का पैसा वहां खर्च हो। राजनीतिक चश्मे से देखें तो सरकार और संगठन के मुखिया इसे यह कह कर खारिज कर सकते हैं कि विश्नोई मंत्री न बनाए जाने से नाराज हैं, इसलिए ऐसा बोल रहे हैं। लेकिन उनकी इस बात में दम तो है कि प्रदेश में एक भी सरकारी मेडिकल कालेज ऐसा क्यों नहीं है जहां भर्ती होने के लिए उसी तरह की कतार लगे जैसी चिरायु या बंसल जैसे अस्पतालों के लिए लगती है। मुख्यमंत्री को भविष्य में कम से कम एक ऐसा मेडिकल कालेज बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।
साफ्ट हिंदुत्व के प्रतीक बन रहे कमलनाथ.
कांग्रेस के दो प्रमुख नेता कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह सनातन धर्म को मानने वाले हिंदू हैं। लोगों के बीच दोनों की इमेज में बड़ा फर्क है। दिग्विजय की छवि मुस्लिम परस्त की है जबकि कमलनाथ साफ्ट हिंदुत्व के प्रतीक के तौर पर उभर रहे हैं। कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में हनुमान जी की विशाल प्रतिमा स्थापित कराई है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने भाजपा के मुद्दों पर काम किया है। शिवराज सिंह चौहान ने राम वन गमन पथ निर्माण की घोषणा की थी, जिसे पूरा करने का संकल्प कमलनाथ सरकार ने दोहराया। भाजपा गौमाता के नाम पर राजनीति करती है, कमलनाथ ने फरमान जारी किया कि उनके राज में एक भी गौमाता सड़कों पर नहीं दिखना चाहिए। उन्होंने बड़ी तादाद में गौशालाओं के निर्माण की घोषणा की। महाकाल एवं ओंकारेश्वर के विकास की योजना पर काम किया। अब वे सत्ता से बाहर हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत होने वाली है तो उन्होंने यह कह कर सबको चौंका दिया कि ‘मैं राम मंदिर निर्माण का स्वागत करता हूं। हर भारतवासी की इच्छा और आकांक्षा थी कि राम मंदिर बने। खास बात यह है कि इस मसले पर दिग्विजय कमलनाथ के साथ खड़े हो गए हैं।