उत्तर भारत में सर्दी अपने चरम पर होती है, जहां तापमान गिरने के साथ ही सड़कों पर बर्फ की चादर बिछ जाती है। इस कड़ाके की ठंड के बीच उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला शुरू हो चुका है, जो 26 फरवरी तक चलेगा। इस मेले में नागा साधु बड़ी संख्या में पहुंचे हैं। बिना कपड़ों के तपस्वी नागा साधु ठंड की तीव्रता को सहन करते हुए अपनी अद्वितीय साधना और तपस्या से सभी को चकित कर देते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर नागा साधुओं को इतनी ठंड क्यों नहीं लगती? आइए इस रहस्य को समझते हैं।
नागा साधुओं की उत्पत्ति
आदि शंकराचार्य ने चारों मठों की स्थापना के बाद उनकी सुरक्षा के लिए निडर और सांसारिक मोह से परे एक समूह का गठन किया। यही समूह धीरे-धीरे नागा साधुओं में परिवर्तित हो गया। नागा साधु बनना एक कठिन आध्यात्मिक यात्रा है। ये साधु हठ योग का अभ्यास करते हैं और अपनी तपस्या से अपनी शारीरिक और मानसिक सीमाओं को पार करते हैं। महाकुंभ मेले में उनकी अद्वितीय साधनाओं के उदाहरण देखने को मिलते हैं, जैसे सवा लाख रुद्राक्ष धारण करना या वर्षों तक एक हाथ ऊपर उठाए रखना।
ठंड से बचने का रहस्य
नागा साधुओं के ठंड सहने की क्षमता के पीछे उनकी साधना, योग और जीवनशैली का महत्वपूर्ण योगदान है।
- अग्नि साधना
नागा साधु ध्यान के एक विशेष रूप का अभ्यास करते हैं जिसमें वे अपने शरीर के भीतर अग्नि तत्व को सक्रिय करते हैं। यह आंतरिक गर्मी उनके शरीर को कठोर ठंड में भी गर्म रखती है। - नाड़ी शोधन प्राणायाम
यह प्राचीन योग तकनीक शरीर के भीतर वायु प्रवाह को संतुलित करती है, जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है। - राख का उपयोग
नागा साधु अपने शरीर पर राख लपेटते हैं, जो एक प्राकृतिक इन्सुलेटर का काम करती है। राख में मौजूद कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम जैसे खनिज शरीर को गर्म रखने और नकारात्मक ऊर्जा से बचाने में मदद करते हैं। - मंत्रों का जाप और ऊर्जा साधना
नागा साधु मंत्रों का जाप करते हुए ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह ऊर्जा उनके शरीर को ठंडे तापमान को सहने में सक्षम बनाती है।
योग और तपस्या का प्रभाव
नागा साधु अपने कठोर अभ्यास, तपस्या और ध्यान से न केवल मन को नियंत्रित करते हैं बल्कि शरीर की सहनशक्ति को भी बढ़ाते हैं। उनकी यह जीवनशैली उन्हें ठंड, गर्मी और अन्य कठिन परिस्थितियों में भी सहज बनाए रखती है।
योग: स्वस्थ जीवन की कुंजी
नागा साधुओं की जीवनशैली यह संदेश देती है कि योग और साधना हमारे जीवन का हिस्सा होना चाहिए। यह न केवल मन को नियंत्रित करता है बल्कि शरीर को भी मजबूत बनाता है। महाकुंभ के इस अवसर पर नागा साधुओं की तपस्या और सहनशक्ति हमें जीवन के गहन रहस्यों को समझने और आत्म-अनुशासन की प्रेरणा देती है।