नवरात्रि के नौ दिन क्यों लगाए जाते है अलग अलग भोग, जानें इसका महत्त्व

Share on:

नवरात्रि का त्यौहार पूरे नौ दिनों तक मनाया जाता हैं। इस पर्व को सबसे ज्यादा पावन पर्व माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं में इस नवरात्रि का काफी महत्त्व है। इस दौरान सभी शुभ काम किए जाते हैं जो आगे जाकर हमे लाभ दें। साथ ही नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पुजा की जाती हैं। भक्त इन नौ दिनों मां के लिए व्रत भी रखते है। इस साल शारदीय नवरात्रि अक्टूबर की 17 तारीख से शुरू होने जा रही है। जो की 25 अक्टूबर तक रहेंगी।

हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष पितृपक्ष के समाप्ति के बाद अगले दिन से ही शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती है। लेकिन इस बार अधिक मास होने के कारण पितरों की विदाई के बाद नवरात्रि का त्योहार शुरू नहीं हो सका। जैसा की आप सभी जानते है नवरात्रि पर नौ दिन माता के अलग अलग स्वरूपों की पूजा करने के साथ उन्हें अलग अलग भोग लगाए जाते हैं। क्या आप जानते है अलग अलग भोग लगाने का महत्त्व।

आज हम आपको बताने जा रहे हैं नौ देवियों को 9 दिनों तक भोग लगाने का क्या महत्त्व होता है। ऐसा कहा जाता है कि नवरात्रि में भक्त मां दुर्गा के लिए भोग बनाते हैं जिनसे वह प्रसन्न होती हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। साथ ही मां भक्तों को बीमारियों से मुक्‍त करती हैं। वहीं उनकी आर्थिक समस्याओं को भी दूर हो जाती है। तो चलिए जानते है नौ दिन मां को कौन कौन से भोग लगाए जाते है।

नौ दिन नौ अलग अलग भोग –

नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री के स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन देवी के चरणों में गाय का शुद्ध घी चढ़ाया जाता है। आपको बता दे, ऐसा कहा जाता है कि इससे आरोग्य की प्राप्ति होती है। दरअसल, मनुष्य कई गंभीर बीमारियों से मुक्ति पाता है।

वहीं नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा की ब्रह्मचारिणी के रूप में पूजा होती है। इस दिन उन्हें शक्कर का भोग लगाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से घर के सभी सदस्यों की आयु बढ़ती है और घर में सुख शांति रहती है।

तीसरा दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। उन्हें दूध या दूध से बनी चीज का भोग अर्पित करनी चाहिए। क्योंकि ऐसा कहते हैं कि इस दिन दूध से बनी मिठाई का भोग लगाकर ब्राह्मणों को दान करने से दुख दूर होते हैं और खुशी की प्राप्ति होती है।

चौथे दिन माता के चौथे स्वरूप यानी देवी कुष्मांडा की पूजा होती है। उनकी उपासना करने से बड़ा से बड़ा रोग ख़त्म हो जाता है। साथ हीसभी कष्ट दूर हो जाते हैं। आपको बता दे, इस दिन माता को मालपुए का भोग लगाएं। ऐसा कहते हैं कि इस भोग को अर्पित करने और दूसरों को खिलाने से बुद्धि तेज होती है।

पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। उनकी पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बता दे, ऐसा कहा जाता हैं कि नवरात्रि के पांचवे दिन केले का नैवेद्य चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है। इस दिन माता को केले का भोग लगाना चाहिए और केले का दान भी करना चाहिए।

छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा आराधना करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। दरअसल, मां के छठे रूप को शहद और मीठा बेहद पसंद है इसलिए उन्हें खुश करने के लिए शहद और मीठे का भोग लगाएं।

नवरात्रि के सांतवे दिन कालरात्रि की पूजा की जाती है। बता दे, भूत-प्रेतों से मुक्ति दिलवाने वाली देवी कालरात्रि की उपासना करने से सभी दुख दूर होते हैं। साथ ही ऐसा कहते हैं कि इस दिन माता को गुड़ और मेवे के लड्डू का भोग लगाना चाहिए। क्योंकि मां को लड्डू चढ़ाने के बाद ब्राह्यणों को दान देने से कष्‍ट दूर होते हैं।

नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी के स्वरूप की पूजा की जाती है। ये दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है ऐसा कहते हैं कि इस दिन नारियल का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। बता दे, नारियल का भोग लगाने से संतान से जुड़ी सारी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।

नवरात्रि के आखिरी यानी नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। मां सिद्धिदात्री को जगत को संचालित करने वाली देवी माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि माता को तिल का भोग लगाना चाहिए। नवमी के दिन तिल का भोग लगाने से अनहोनी की आशंका खत्म होती है।