स्कूली बच्चों की भयावह मौत का जिम्मेदार आखिर कौन?

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निरुक्त भार्गव

जानलेवा सड़क दुर्घटनाएं बदस्तूर जारी हैं! घरों के अनगिनत चिराग बुझ रहे हैं, हर रोज़, लेकिन सिस्टम ढीट का ढीट बना हुआ है! चंद घंटों की नाटक-नौटंकी और इलाज, आर्थिक सहायता देने के नाम पर वही घिसे-पिटे ढकोसले! दोषियों के खिलाफ मुकम्मल कार्रवाई के नाम पर झिझक! आम लोगों में हर प्रकार की शिक्षा और जागरूकता का अभाव है ही, पर उन लोगों का क्या जो मोटी-मोटी तनख्वाह पाते हैं और रिश्वत भी भरपेट खाते हैं लेकिन अपने हिस्से की जिम्मेदारी नहीं निबाहते?

उज्जैन-नागदा रोड जिसे ‘यमराज मार्ग’ कहा जाता है, सोमवार की सुबह एक और भीषण हादसे का गवाह बना: उन्हेल-नागदा रोड पर एक ट्रक और 7-8 सीटर वाहन की आमने-सामने की जोरदार भिड़ंत में 4 यात्री मौके पर ही मारे गए. कोई एक दर्जन से ज्यादा लोग विभिन्न अस्पतालों में उपचार करवा रहे हैं! दुखद पहलू ये है कि जो 16 लोग इस घटना का शिकार बने हैं, वो नागदा के फातिमा कॉन्वेंट स्कूल के कक्षा 2 से 11 तक के छात्र और छात्राएं हैं! मृतकों में 3 बच्चे और 1 बच्ची शामिल हैं, जबकि घायलों में हैं इनके-ही सहपाठी!

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उक्त मार्ग पर पिछले तीन वर्षों में घटित वाहन दुर्घटनाओं का हिसाब-किताब जोड़ा जाए तो मृत्यु और स्थायी विकलांगता के इतने उदाहरण मिल जाएंगे कि बेशरम से बेशरम व्यक्ति की भी आंखें भर आएंगी! कमोबेश ऐसे ही हालात इंदौर रोड, बड़नगर रोड और आगर रोड के भी हैं! ना जाने कितने विद्यार्थियों के कटे-फटे शव और ना मालूम कितने नौजवानों के अज्ञात शरीर के हिस्से यहां-वहां बिखरे हुए देखे जा सकते हैं! देश की भावी पीढ़ी को ढोने वाली बाबा-आदम के ज़माने की बस और अन्य खटारा वाहनों की भी प्रदर्शनी लगी होती है!

येन-केन-प्रकारेण सरकारी ओहदे पा चुकने वाले कथित जिम्मेदार लोगों की नशे की आदत नहीं छूट रही है! मोटी-मोटी तनख्वाह पाने वालों का सूचना तंत्र छिन्न-भिन्न हो चुका है! भरपेट रिश्वत खाने वालों की तो पौ-बारह रहती है, हमेशा: ट्रैफिक पुलिस की नौकरी! थाने की पदस्थापना! आरटीओ की मलाई-ही-मलाई! राज्य से लेकर केंद्र सरकार के सड़क से जुड़े विभाग और एजेंसियां! सड़क-पुल-पुलिया बनाने वाले ठेकेदार! परिवहन के क्षेत्र में निजी और शासकीय सेवाओं के खिलाड़ी! चंदा वसूलने वाले राजनीतिक दल! उच्चाधिकारी.

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उन्हेल जैसे कस्बे के स्कूल के हंसते- खेलते बच्चों का इस तरह काल के गाल में समा जाना किसी भी कोने से क्षमा-योग्य नहीं है: ये किसी प्राकृतिक घटना का शिकार नहीं हुए हैं! इन्होंने आगे बढ़कर मौत को गले नहीं लगाया है! बिलाशक, इन निर्दोष मौतों और स्थायी विकलांगता के शिकार बनाए गए बच्चे इन्साफ की गुहार लगा रहे हैं:

(1) उनसे जिन्होंने उन्हें कसबे से बाहर भेजा, पढ़ने के लिए, (2) एक कचरा वाहन को किसने परमिट दिया, सरपट दौड़ने का, (3) एक लोडिंग ट्रक की स्पीड क्या होनी चाहिए रिहायशी इलाके से गुजरने की, वो भी अलसुबह, (4) क्या संबंधित स्कूल प्रबंधन को क्लीन चिट दे दी जानी चाहिए कि उसका उक्त घटना से कोई लीजो-दीजो नहीं है, (5) क्या स्वास्थ्य विभाग की प्रशंसा की जानी चाहिए कि जो उनके कारिंदे दुर्घटना-स्थल पर समय पर नहीं पहुंच पाए, (6) क्या राज्य के और केंद्र स्कूली विभाग को कोई तमगा दिया जाना चाहिए कि वो पूरे घटनाक्रम में पूंछ दबाए बैठा रहा.

जब चारों मृत बच्चों और उनके घायल साथियों को उपचार के लिए लाया गया, तो उनकी माताओं का रुदन झेल पाना असंभव था! जब चारों का सामूहिक दाह संस्कार किया गया तब भी सभी उपस्थित लोगों की चीख-पुकार नाकाबिल-ए-बर्दाश्त थी! ऐसा प्रतिध्वनित हो रहा है कि शायद “पाषाण युग” कहीं बेहतर था.