वर्षा मिर्जा
राहत इंदौरी जब नवीं कक्षा में नूतन हायर सेकंडरी स्कूल में पढ़ते थे, तब स्कूल में एक मुशायरा हुआ। राहत की ड्यूटी शायरों की खिदमत करने के लिए लगा दी गई। उस मुशायरे में जाँनिसार अख्तर भी आए थे। छात्र राहत ने उनका आटोग्राफ लिया और पूछ लिया- ‘मैं भी शेर पढ़ना चाहता हूँ, इसके लिए क्या करना होगा।’ अख्तर साहब बोले, ‘पहले कम से कम एक हजार शेर याद कर लो।’ इस पर राहत बोल पड़े, ‘इतने तो मुझे अभी याद है।’ अख्तर साहब ने जवाब दिया, ‘तो फिर इस शेर को पूरा करो।’ यह कहकर जब उन्होंने लिखा- ‘हमसे भागा न करो, दूर *गजालों की तरह’ यह पढ़कर राहत बोल दिए- ‘हमने चाहा है तुम्हें, चाहने वालों की तरह।’
मतलब स्पष्ट है कि अपने स्कूली जीवन से वे शायरी के दीवाने हो गए थे। अब दृश्य इंदौर से भोपाल आ जाता है। बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी से राहत उर्दू में एमए करते हैं और भोज यूनिवर्सिटी से पीएचडी। थोड़े समय इंदौर में अध्यापन करने के साथ ही उनकी शायरी परवान चढ़ने लगी। यह वह दौर था, जब वे शौहरत की सीढ़ियों पर अपने पांव जमाते हुए मशहूर होने की तरफ बढ़ रहे थे। वर्ष 1987 में इंदौर छोड़ने के पहले मैं तमाम तरह की कला-गतिविधियों को अंजाम देने लगा था। उसी दौरान राहत भाई के छोटे भाई रंगकर्मी आदिल कुरेशी और धाकड़ पत्रकार शाहिद मिर्जा के साथ मैंने काफी सारी रचनात्मक आवारगी भी की –