आबिद कामदार
इंदौर। पहली बार जब जेल में दाखिल हुई, तो गेट पर खड़े संतरी ने बड़े ही आश्चर्य भाव से देखा, शायद उसने यह सोंचा होगा कि पहली बार किसी बड़े पद पर कोई महिला जेल विभाग की ट्रेनिंग के लिए आई है। हमने सूचना देने को कहा इसके बाद जब पहला कदम जेल में रखा तो वह दृश्य आज भी याद है, जेल की ऊंची ऊंची दिवारे, बड़े गेट और ताले यह सब देख कर मन को एक मिनट के लिए लगा कि क्या मेरा जेल विभाग चुनने का फ़ैसला सही था, लेकीन जब आपके अंतर्मन का भाव समाज सेवा और चुनौतियों का सामना करने का हो तो सब कुछ सही होता है। यह बात इंदौर सेंट्रल जेल अधीक्षक अलका सोनकर (Alka Sonkar) ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही।
सात महीने के बच्चे की परवरिश के साथ बखूबी ट्रेनिंग पूरी की
उन्होंने बताया कि चयन होने के बाद भोपाल जेल में जब ट्रेनिंग दी उस वक्त 7 महीने का बेटा था, अपने बच्चे की परवरिश के साथ ट्रेनिंग को बखूबी अंजाम दिया। पहले दिन के बाद जीवन में इसके बाद कभी नही लगा की कोई दूसरे विभाग में जाना चाहिए, क्योंकि इससे बेहतर समाज सेवा के लिए कोई विभाग हो नही सकता। लोगों की भलाई और समाज के कल्याण के लिए अगर वाकई में कुछ करने का जज्बा मन में हो तो जेल विभाग में नौकरी से बेहतर कुछ नहीं, मध्यप्रदेश की वह पहली महिला जेल अधीक्षक बनी।
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घृणा अपराध से करे अपराधी से नही।
उन्होंने बताया कि मैने 18 साल जेल विभाग में अपनी सेवाएं दी और यह अनुभव किया कि जेल के बाहर की दुनियां के अलावा जेल की चार दिवारी के बीच भी एक अलग दुनियां है। जन्म से हर कोई बुरा या अपराधी नही होता, कुछ परिस्थितियां होती है, जो इनका कारण बनती है। उनसे घृणा करना सही नहीं। मैने हमेशा महात्मा गांधी जी की विचारधारा घृणा अपराध से करे अपराधी से नही, इस विचारधारा से अपनी सेवाएं दी है।
जेल विभाग में आने से पहले अपनों से मिली प्रेरणा
हर किसी के जीवन में उनके आइडियल होते है, जो उन्हें प्रेरित करते है, जो हमारे अच्छे बुरे वक्त में एक साए की तरह खड़े होते है, मुझे जेल विभाग में आने से पहले और उसके बाद भी मेरे पति प्रमोद सोनकर ने मोटिवेट किया, जो कि एडिशनल डीसीपी के पद पर अपनी सेवाएं शहर में दे रहे हैं, वहीं मेरे माता पिता हर परस्थिति में मेरे साथ खड़े रहे। आज में जो भी हूं सब इन लोगों की बदौलत हूं।
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18 साल में Alka Sonkar ने दी कई जगह अपनी सेवाएं।
2005 में ज्वाइनिंग के बाद जेल विभाग ट्रेनिंग के दौरान इनडोर और आउटडोर टॉपर रही। मैने हमेशा अपना बेस्ट दिया, इसी का परिणाम रहा कि 2011 में सेंट्रल जेल अधीक्षक के रूप में प्रमोशन हुआ। 2021 में इंदौर जेल में पदस्थ होने से पहले भोपाल मुख्यालय, नरसिंहपुर, सागर, जबलपुर, उज्जैन भेरूगढ़ और अन्य जगह अपनी सेवाएं दी।
18 साल के अनुभव में कई बंदी ऐसे देखे जिनकी कहानी मार्मिक होती है।
प्रदेश की कई जेलों में मैने अपनी सेवाएं दी है, 18 साल के अनुभव में ऐसे कई बंदी देखने को मिले है जिनकी कहानी बहुत दुखद होती है, मन को लगता है कि यह दूसरो की वजह से सजा काट रहे। ऐसे लोग जो अपराध एक ने किया नाम सबका आ जाता है, और सब सजा पाते है। वहीं किसी घर परिवार में बहु ने जहर खा लिया और उसकी मृत्यु का दंड पूरा परिवार भोग रहा है।