इंदौर। आमतौर पर हम देखते हैं कि, बच्चों में ब्लड कैंसर होने पर बच्चें और उनकी फैमिली काफी प्रभावित और दुखी होती हैं। इस बीमारी का इन्फेक्शन ना बढ़े इसके लिए बच्चों में रिस्ट्रिक्शन बढ़ जाते हैं। उनकी रूटीन लाइफ में कुछ बदलाव आते हैं।जब कैंसर से पीड़ित मासूम बच्चें आते हैं, तो मन थोड़ा दुखी होता हैं, क्योंकि उन बच्चों से एक अटैचमेंट हो जाता हैं। लेकिन हम डॉक्टर्स हैं हमें खुद को स्ट्रॉन्ग रखना होता हैं। यह बात डॉक्टर प्रीति मालपानी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही। डॉक्टर प्रीति मालपानी हेड ऑफ द डिपार्टमेंट पीडियाट्रिक, सुप्रिटेंडेंट चाचा नेहरू हॉस्पिटल, बोन मेरो ट्रांसप्लांट कंसलटेंट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल वह एमजीएम मेडिकल कॉलेज से संबंधित इन संस्थानों अपनी सेवाएं दे रही है।
सवाल.आपने अपना एजुकेशन में किन फील्ड में कहां से पूरा किया
जवाब. मैने अपनी एमबीबीएस और एमडी पीडियाट्रिक की पढ़ाई एमजीएम मेडिकल कॉलेज इंदौर से पूरी की, इसके बाद गोकुलदास और चोइथराम हॉस्पिटल में सिनियर रेसिडेंसी में हिस्सा लिया। इसके बाद 2001 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में ज्वाइन किया। मैने 2018 में न्यूयॉर्क के कोलंबिया यूनिवर्सिटी से बोन मेरो ट्रांसप्लांट में अपनी ट्रेनिंग पूरी की। में वर्तमान में एमजीएम में हेड ऑफ डिपार्टमेंट, सुप्रीटेंडेंट चाचा नेहरू हॉस्पिटल, और सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में बोन मेरो ट्रांसप्लांट कंसलटेंट और इंचार्ज के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हूं। हमारी टीम ने अभी तक लगभग 68 बोन मेरो ट्रांसप्लांट को सफल रूप से किया है। जिसमें 60 बच्चों के और अन्य बोन मेरो ट्रांसप्लांट हैं।
सवाल.किस वजह से बोन मेरो ट्रांसप्लांट करने की आवश्यकता होती हैं
जवाब.बोन मेरो ट्रांसप्लांट कॉम्प्लिकेटेड प्रक्रिया हैं, जिसमें पेशेंट का ब्लड सिस्टम, इम्यून सिस्टम खत्म कर डोनर से हेल्दी सैंपल लेकर पेशेंट में ट्रांसप्लांट करते हैं।जिस वजह से पेशेंट की डिजीज खत्म हो जाती हैं, और उसे पहले की तरह नॉर्मल लाइफ स्टाइल जीने में मदद मिलती हैं। ज्यादातर ब्लड डिसऑर्डर की वजह से ट्रांसप्लांट करने पड़ते हैं। जिसमें थैलेसीमिया,सिकल सेल एनीमिया, ए प्लास्टिक एनीमिया और ब्लड कैंसर शामिल हैं। हमारे यहां का सक्सेस रेट 80 प्रतिशत के आसपास हैं। बोन मेरो ट्रांसप्लांट की मदद से इन बीमारियों को खत्म किया जा सकता हैं।
सवाल. क्या इसको लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी हैं
जवाब.पीडियाट्रिक कैंसर में अब पहले के मुकाबले ट्रीटमेंट एडवांस हो गया हैं, जिससे बिमारी से ठीक होने का आंकड़ा बढ़ा हैं। वहीं इसको लेकर लोगों की जागरूकता बढ़ी हैं। शहर में कई आर्गेनाइजेशन इसको लेकर अवेयरनेस प्रोग्राम चलाते हैं। पहले लोग अवेयरनेस की कमी होने से झाड़ फूंक या कुछ भी नुस्खे इस्तेमाल कर लेते थे, जिस वजह से समय पर इलाज़ ना मिलने से यह बीमारी और ज्यादा बढ़ जाती थी। जिसमें कई बार यह लापरवाही पेशेंट की जान तक ले लेती थी।
सवाल. इलाज़ के साथ बच्चों की काउंसलिंग भी जरूरी है क्या?
जवाब.बच्चों के इलाज़ के साथ साथ बच्चों और पेरेंट्स की काउंसलिंग भी करना बेहद जरूरी हैं। जिसमें उन्हें समय पर इलाज करवाने, डॉक्टर की सलाह, बीच में इलाज़ ना रोकना, दवाईयों का इस्तेमाल और अन्य सलाह देनी होती है। ब्लड कैंसर के बाद लगभग 3 साल तक इलाज़ करना होता हैं, ताकि बच्चें स्वस्थ हो सकें। हमारे देश में 70 प्रतिशत बच्चों को ब्लड कैंसर से ठीक कर बचाया जा सकता हैं, वहीं वेस्टर्न कंट्री में यह आंकड़ा थोड़ा ज्यादा होता हैं। इसका कारण वहां लोगों में ज्यादा जागरूकता और बीच में इलाज को ना रोकना होता हैं।