बात यहां से शुरू करते हैं…
कोई कुछ भी कहे, लेकिन बिना शिवराजसिंह चौहान के जनआशीर्वाद यात्रा भीड़ नहीं खींच पा रही है। अपवाद स्वरूप कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता को छोड़ दें तो जब तक यात्रा में शिवराज रहते हैं, मजमा जमा रहता है और उनके रवाना होते ही शो फीका पड़ जाता है। पिछले एक सप्ताह में निकली पांचों जनआशीर्वाद यात्राओं का फीडबैक भी यही आ रहा है। यही कारण है कि शिवराज का कोर ग्रुप अब खम ठोककर कहने लगा है कि मध्यप्रदेश का चुनाव तो शिवराज के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। पोस्टर, बैनर और सोशल मीडिया पर भले ही मध्यप्रदेश भाजपा प्रधानमंत्री का गुणगान करती नजर आए, लेकिन मैदान में तो सल्तनत मुख्यमंत्री की ही रहेगी।
डेंजर झोन में ग्वालियर-चंबल, दांव पर त्रिमूर्ति की प्रतिष्ठा
अभी तक के जितने भी सर्वे, चाहे वह भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने करवाए हों, चाहे प्रदेश नेतृत्व ने या फिर खुफिया एजेंसी के माध्यम से, सभी में यह तो साफ हो गया है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में भाजपा डेंजर झोन में है। इससे तीन नेताओं की चिंता बढऩा स्वाभाविक है। ये तीनों दिल्ली की आंखों के तारे हैं और इसी अंचल का प्रतिनिधित्व करते हैं। यदि इस क्षेत्र में भाजपा दमदार प्रदर्शन नहीं कर पाई तो फिर इसका सीधा असर इनके राजनीतिक कद पर ही पडऩा है। मजेदार बात यह है कि इन तीनों की पटरी भी नहीं बैठ रही है और तीनों के समर्थक भी अलग-अलग दिशाओं में चल रहे हैं। जी हां, हम बात केंद्रीय मंत्रीद्वय नरेंद्रसिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की ही कर रहे हैं।
भाजपा का घोषणा-पत्र और प्रदेश में रामराज्य
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों भोपाल में भाजपा का जो घोषणा-पत्र जारी किया, उसमें शिवराज सिंह चौहान से लेकर कविता पाटीदार तक ने जो कुछ कहा है, उसका लब्बोलुआब तो यही है कि मध्यप्रदेश में इतना सबकुछ हो चुका है कि अब करने को कुछ बचा नहीं है। पिछले 18 साल में भाजपा सरकार ने लोगों की झोली भर दी है और हर मोर्चे पर खूब काम हुआ है। इतना सबकुछ होने के बाद भी यदि वोट अपने पाले में करने के लिए जनकल्याण के नाम पर रोज नई घोषणा करना पड़ रही हो, तो समझ जाइए कि दावों और हकीकत में कितना अंतर है।
कद भले ही छोटा हो, लेकिन दांव ऊंचा ही खेलते हैं डॉ. गोविंद सिंह
नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह का कद भले ही छोटा हो, लेकिन वे दांव हमेशा ऊंचा ही खेलते हैं। अपने गृह जिले भिंड की राजनीति में डॉ. सिंह की ब्राह्मण नेताओं से अदावत जग जाहिर है। चुनाव सामने है और चौधरी राकेश सिंह जैसे नेताओं का रास्ता रोकना जरूरी भी है। इसी के चलते उन्होंने अब नया दांव खेला है। वे अब सरकारी नौकरी में रहते हुए बहुत विवादास्पद्र रहे प्रोफेसर केशव सिंह यादव को कांग्रेस में ले आए हैं और भिंड से पार्टी के टिकट पर यादव का नाम आगे बढ़ा दिया है। इसके पीछे दो मकसद हैं, एक तो भिंड सीट से किसी ब्राह्मण का रास्ता रोकना और दूसरा ओबीसी की परम्परागत सीट माने जाने वाले मेहगांव विधानसभा क्षेत्र से अपने भांजे की दावेदारी को मजबूती से आगे बढ़ाना। है ना, डॉक्टर साहब का बड़ा दांव।
दिल्ली के दिग्गजों की सक्रियता और कमलनाथ का करिश्मा
कांग्रेस में टिकट की उलटी गिनती शुरू हो गई है। भोपाल की कवायद पूरी होकर मामला दिल्ली पहुंच गया है। जब तक मामला भोपाल में था, सबकी निगाहें कमलनाथ पर ही आकर ठहर जाती थी। हर कोई अपने को सबसे मजबूत बताते हुए उनसे टिकट की दरख्वास्त कर लेता था। अब दावेदार इधर-उधर भी चक्कर लगाने लगे हैं। कोई भंवर जितेंद्रसिंह के यहां दस्तक दे रहा है तो कोई रणदीप सुरजेवाला को साधने में लगा हुआ है। कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के भरोसे है। इस सबके बीच वे सारे दावेदार निश्चिंत से हैं, जिन्होंने कमलनाथ के अलावा कहीं ओर दस्तक नहीं दी। कहा जा रहा है कि करिश्मा तो कमलनाथ ही दिखाएंगे।
दिल्ली की नौकरशाही में मध्यप्रदेश का बढ़ता दबदबा
अपनी सहजता, सख्ती और ईमानदारी के लिए ख्यात मध्यप्रदेश के दो आईएएस अफसर दिल्ली में अहम भूमिका में आ गए हैं। राव दंपति यानि वी.एल. कांताराव और नीलम राव अब केंद्र में महत्वपूर्ण पद पा गए हैं। कांताराव बहुत ही महत्वपूर्ण माने जाने वाले माइनिंग विभाग के सचिव बनाए गए हैं, वहीं नीलम राव सचिव के दर्जे के साथ केंद्रीय भविष्यनिधि आयुक्त के पद पर बरकरार रहेंगी। इन दोनों की प्रशासनिक क्षमता का लोहा मध्यप्रदेश में भी माना जाता था, और अब दिल्ली में भी माना जा रहा है। आखिर काम बोलता है ना।
पुछल्ला
इंदौर चार में इस बार मालिनी गौड़ का भारी विरोध हो रहा है। विरोध का एक बड़ा कारण बेटे एकलव्य गौड़ को भी बताया जा रहा है। बात पहले भोपाल और अब दिल्ली तक पहुंच गई है। नाराजी इतनी ज्यादा है कि विरोध करने वाले यह तक कह आए कि भले ही मुकेश जैन शांतिप्रिय को टिकट दे दो, पर गौड़ परिवार स्वीकार्य नहीं। मुकेश जैन कौन? यह तो आप जानते ही होंगे ना।
चलते-चलते
पता नहीं कौन यह अफवाह फैला रहा है कि इंदौर नगर निगम के आयुक्त पद पर हर्षिका सिंह का मन नहीं लग रहा है। बार-बार यह बात सामने आ रही है कि यहां रहने की बजाय वे किसी जिले की कमान संभालना चाहती हैं। यदि यह हकीकत है तो फिर उन्हें ज्यादा मशक्कत करना नहीं पड़ेगी। क्यों… यह आप पता करो।
सुनी सुनाई
कभी अविभाजित मध्य प्रदेश के 320 विधानसभा टिकट के फैसले में अहम भूमिका निभाने वाले भाजपा के दिग्गज कृष्ण मुरारी मोघे अचानक दो-तीन दिन के लिए अज्ञातवास पर चले गए। कारण तो सिर्फ श्रीमती शुभांगी मोघे ही बता सकती हैं।
बात मीडिया की
मीडिया इंडस्ट्री में कहा जाता है कि जो दूसरे अखबार मालिक आज सोच रहे हैं, वह सुधीर अग्रवाल 10 साल पहले कर गुजरते हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में अपना आर्थिक पक्ष मजबूत करने के लिए जब दूसरे अखबारों का मैनेजमेंट सक्रिय हुआ तो पता चला कि दैनिक भास्कर पहले ही इस काम को निपटा चुका है।
राजधानी के वरिष्ठ पत्रकार गुरेन्द्र अग्निहोत्री अब राज एक्सप्रेस की टीम का हिस्सा हो गए हैं। मृगेन्द्र सिंह के दैनिक जागरण को अलविदा कहने के बाद गुरेन्द्र वहां बड़ी भूमिका में थे। वे पहले दैनिक भास्कर में भी सेवाएं दे चुके हैं।
नई दुनिया को अलविदा कहने के अपने फैसले पर युवा पत्रकार राघव तिवारी अभी भी कायम है। वे अभी संभवत नोटिस पीरियड पर है। हां सुनने में यह जरूर आ रहा है कि अखबार के व्हाट्सएप ग्रुप पर तीखे तेवर दिखाने के बाद उनके केंटिन के कूपन जरूर रोक दिए गए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार विनोद श्रीवास्तव ने प्रजातंत्र को अलविदा कह दिया है। उन्होंने अभी किसी नए संस्थान में आमद नहीं दी है। बहुत संजिदा छवि वाले श्रीवास्तव सालों तक नईदुनिया में सेवाएं दे चुके हैं।
स्वदेश की रिपोर्टिंग टीम में लम्बे समय तक महत्वपूर्ण भूमिका में रहे अजय जैन विकल्प ने संस्थान को अलविदा कह दिया है। वे अब खुद के डिजिटल प्लेटफार्म को आगे बढ़ाने में लगे हैं।
फोटो जर्नलिस्ट से वीडियो जर्नलिस्ट की भूमिका में आए अम्बर नायक अब अग्निबाण डिजिटल टीम का हिस्सा हो गए हैं। अम्बर मैदानी छवि वाले वीडियो जर्नलिस्ट हैं और खबरों पर अच्छी पकड़ रखते हैं।
शांत और शालीनता अखिल सोनी अब पीपुल्स समाचार की टीम में आ गए हैं। वे अभी तक प्रजातंत्र अखबार में सेवाएं दे रहे थे
लेखक – अरविंद तिवारी