ये कैसा मौसम, सर्द हवाओं की जगह चल रहे पंखे, बीता जाए दिसम्बर, कहा दुबकी बैठी हो ठंड रानी

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नितिनमोहन शर्मा

कहा हो तुम गुम? अब तक तुम्हे आ जाना था..!! कहा रुक गई? अटक गई? किसने रोक लिया? क्यो करवा रही हो इंतजार? हमसे रूठी तो नही हो न तुम? हम तो पलक पाँवडे बिछाए तुम्हारे आगमन की बाट जोह रहे हैं। ..और तुम हो कि नख़रे पर नख़रे दिखा रही हो। कहा तो तुम दीप पर्व के निपटते ही कार्तिक में ही आ जाती थी। पर अगहन भी गुजर गया और वो पौष माह आ गया जिसमें तुम्हारा जलवा सबसे चरम पर रहता है।

‘पूस की रात’ याद है न तुमको…’हल्कू’ के प्राण ही हर लेती तुम…इतने तीखे तेवर थे तुम्हारे। ‘जबरा’ भी तुम्हे झेल नही पा रहा था। कहा है वो तेवर? क्या इस बार तुम और तुम्हारे नाज़ो अंदाज नही देखने को मिलेंगे क्या? सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। तुम्हारे आने के इंतजार में अब तक गज़क की गर्मी अटकी हुई है। दूध का कड़ाव रोज भट्टी पर चढ़ तो रहा है…पर वैसा उबाल नही आ रहा, जैसा तुम्हारी ‘भर चक ‘मौजूदगी में आता है। कड़ाव अकेला है। उसको घेरकर खड़े रहने वाले नदारद है। क्योंकि तुम ही नदारद हो।

तिल के लड्डु भी तुम्हारी बाट जोह रहे है कि तुम आओ तो चढ़े कड़ाही ओर बने गुड़ की चाशनी। गाजर की सुर्खी हलवे का शक्ल नही ले पा रही है। शाल-दुशाले भी अब तो मुंह बिदका रहे हैं। रजाईयां आंखे तरेर रही है कि जब जरूरत नही थी तो काहे बाहर निकाल कर पटक दिया। हमे तो जोर शोर से महीनेभर पहले से ये ही बताया जा रहा था कि इस बार तो तुम ऐसे सदलबल आओगी की बरसो बरस के रिकॉर्ड टूट जाएंगे। रिकार्ड तो दूर…हमारी उम्मीद टूट गई। सब भविष्यवाणी फेल हो गई।

कुछ तो तरस खाओ…अब आ भी जाओ। हम नही जानते है ‘विक्षोभ’ वगेरह। पौष में नही आओगी तो फिर कब आओगी? कृष्ण पक्ष बीत गया है। इस माह में बस अब शुक्ल पक्ष ही शेष है। इसके बाद तो बस अब माघ ही तो शेष रह गया है। फिर तो पसीना लौट आएगा। देवालय भी पौष उत्सव का इंतजार कर रहे हैं। आ जाओ न प्रिये…अब न तरसाओ..!!

ये मान मनुहार ठंड रानी की है। इन मोहतरमा को अब तक न केवल आ जाना था बल्कि चहुओर छा जाना था। अब तो दिसम्बर के 13 दिन बीत गए। मौसम विभाग ने इस बार भविष्यवाणी की थी की सर्दी के सारे रिकॉर्ड टूट जाएंगे। लेकिन सर्द हवाओं की जगह घर मे पंखे चल रहे है। रजाइयां वापस तह कर के रखना पड़ रही है। शुरुआती रंगत दिखाने के बाद ठंड मालवा के आंगन से नदारद हो गई।

गायब भी ऐसी हुई कि रात में पसीने छुड़वा दिए। जिन दिनों में न्यूनतम तापमान 10 डिग्री से नीचे होना चाहिए, वहां रात का तापमान 18 डिग्री चल रहा है। दिन भी 27- 28 डिग्री तापमान के साथ उछल रहा है। मौसम विभाग ठंड की इस बेरुखी को विक्षोभ से जोड़ रहा है। विभाग के मुताबिक नियमित अंतराल पर एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभ के कारण ये नोबत आई है। अब ताजा विक्षोभ दक्षिणी हिस्से में बना है जिसने फिर ठंड को 20 दिसम्बर तक मुल्तवी कर दिया है। यानी 20 दिसम्बर तक पंखे चलते रहेंगे।

दिसम्बर में जो मिजाज मौसम का मुंबई और अहमदाबाद में होता है, इंदौर कुछ इसी तरह हो चला है। शाल स्वेटर बदन से दूर है। ठंड से जुड़े धंधे पानी और खाने पीने का बाजार बगेर ठंड के ठंडा पड़ा हुआ है। कड़ाके की ठंड आये तो व्यापार में गर्मी आये। मठ मन्दिर आश्रमो में इन दिनों पौष उत्सव होते है। सब तरफ ठंड का इंतजार है और ठंड है कि दुबकी पड़ी है।

मंगलवार को भी इंदौर के आसमान पर बादलों ने डेरा डाल रखा है और सूरज के दीदार…चांद जैसे हो रहे है। हवाओ ने पहाड़ों का साथ छोड़ दिया है और वो उत्तर की बजाय दक्षिण पूर्व हो चली है। जबकि उसे इन दिनों उत्तर पूर्व दिशा से चलना था।