क्या है गुरु गोबिंद सिंह की 354वीं जयंती का महत्त्व

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इस बार सिखो के 10वें धर्म गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्मदिन बुधवार 20 जनवरी को है जिस दिन गुरु गोबिंद सिंह जी की 354वीं जयंती मनाई जाएगी।सिखों के इस पर्व को गुरु गोबिंद सिंह जयंती- इसे प्रकाश पर्व या गुरु पर्व भी कहा जाता है। इस खास दिन गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना साहिब में हुआ था। बता दे कि गुरु गोबिंद सिंह ने साल 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह घटना सिखों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। सिख धर्म की मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह के लिए समर्पित कर दिया था।

गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया तह और आज भी इनके विचार और शिक्षाएं आज भी लोगों के लिए प्रेरणा बनी हुई है। इस दिन सिख़ समुदाय के लोगो द्वारा इस जयंती को बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।इस साल बुधवार, 20 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जी की 354वीं जयंती को मनाया जायेगा जिसमे देश-दुनिया में सभी लोग जो सिख समुदाय के है वो इस दिन प्रभात फेरी निकालते हैं। इतना ही नहीं इस दिन गुरुद्वारों में शबद कीर्तन का आयोजन किया जाता है और गुरबानी का पाठ किया जाता है।

गुरु गोबिंद सिंह की जयंती के दिन गुरुद्वारों को बड़ा ही सुंदर रूप से सजाया जाता है। सिख समुदाय के लोग इस दिन खालसा पंत की झांकियां भी निकलते है और गुरूद्वारे में प्रकाश पर्व पर लंगर का भी आयोजन किया जाता है। सिख़ धर्म के लोग 5 चीजों को धारण करे हुए होते है जिन्हे “पांच ककार” कहा जाता है। और इन चीजों को धारण करने का आदेश भी गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था जो की – बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा है।जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है।

गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे और उन्होंने स्वयं कई ग्रंथो की रचना भी थी। उन्होंने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही गुरु जी धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला में भी माहिर थे।गुरु गोबिंद सिंह को विद्वानों का संरक्षक माना जाता था। पौराणिक कथाओ के अनुसार उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी, जिस कारण ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था।