माफिया का शाब्दिक अर्थ क्या होता है ?

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शशिकांत गुप्ते

माफिया का शाब्दिक अर्थ होता है, गैरकानूनी कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न करने की क्षमता रखने वालो का समूह।यह समूह अंर्तराष्ट्रीय स्तर का भी होता है।अंर्तराष्ट्रीय माफिया समूह की फेंच्याईसी (frenchise) अपने देश कुछ दबंग लोगों के पास अधिकृत रूप से होती है।
माफिया संगठन राष्ट्रीय भी होते हैं। इन राष्ट्रीय माफिया समूह को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक दल में सलंग्न कुछ चुनिंदा रसूखदारों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। रसूखदारों और माफियाओं के बीच समझदारीपूर्ण अलिखित लेकिन, विश्वसनीय करार होता है।यह Reciprocal होता है।माफिया समूह में संलग्न लोग बहुत उदारवादी होते हैं।धार्मिक,सामाजिक,शिक्षा,
चकित्सा और राजनीतिक संगठनों को आर्थिक मदद देने के लिए, दिल खोलकर दान देते हैं।भारतीय दर्शनशास्त्र में दान का बहुत महत्व है,”दान देने से पुण्य प्राप्त होता है।”एक कहावत रूपी मान्यता है”दान में प्राप्त गाय के दांत नहीं गिनते हैं”,ठीक इसी तरह दान में प्राप्त धन के स्रोत को नजरअंदाज ही करना चाहिए।यदि ऐसा नहीं किया तो गुप्तदान नामक शब्द महत्वहीन हो जाएगा।
माफिया समूह ऐसा वृक्ष होता है,जिसकी जड़ें,मजबूत,गहरी और बहुत दूर तक फैली होती हैं।यह माफिया नामक वृक्ष धार्मिक,सामाजिक,सांस्कृतिक,
संगठनो में सक्रिय लोगों के करकमलों द्वारा सींचा जाता है।राजनीति इस वृक्ष का संरक्षण करती है।
हर एक क्षेत्र में माफिया नाम का समूह कार्यरत होता है।
यह व्यंग्य का विषय नहीं है,प्रसंशा का विषय है।शासन के अंतर्गत प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ बनाए रखने के लिए बनाए गए नीति नियमों की त्रुटियों का लाभ उठाना साहस पूर्ण कार्य है।इन नीति नियमो की त्रुटियों के कारण अपने अवैध कार्यो को वैध कर लेना कोई साधारण काम नहीं हैं, इसके लिए तेजतर्रार दिमाग होना चाहिए।
सामाजिक स्तर पर यह माफिया भिन्न भिन्न आकार प्रकार में पाया जाता है।सड़क छाप से लेकर उच्चस्तर तक।
धार्मिक क्षेत्र में सक्रिय माफिया समूह अतिधार्मिक लोगों के लिए बहुत सहयोगी होता है।इस माफिया समूह के कारण इन आस्थावान लोगों को किसी भी देवालय में दर्शनार्थ लंबी कतार में खड़े नहीं होना पड़ता है।इन आस्थावान लोगो को वी. वी.आई. पी.,स्तर का दर्शन लाभ प्राप्त होता है।
भू माफ़िया समूह की कार्य कुशलता की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम है कारण यह समूह, कोई भी, कैसी भी,कितनी भी, कानूनी पेंचीदा समस्याओं में उलझी जमीनों का सौदा निर्भयता पूर्वक कर लेने में निपुण होता है।”अर्थ के बिना सब व्यर्थ”वाली कहावत को चरिथार्त करते हुए,यह समूह सम्बंधित अधिकारियों को आर्थिक उपहार देने की औपचारिकता पूर्ण कर जमीन का स्वामीत्व अपने पक्ष में कर,डील फाइनल कर ही लेता है।
माफियाओं के समूह में एक भिखारियों का भी माफिया होता है।
इस समूह में सलंग्न लोग सड़क पर हाथ फैला कर भीख मांगते हैं,और छोटे बच्चों से भीख मंगवाते भी हैं।
एक माफिया समूह, धार्मिक सामाजिक,सांस्कृतिक,समारोह के लिए हाथों में रसीद कट्टे लेकर चंदे के स्वरूप में भीख मांगते हुए प्रायः देखा जाता है।इस माफिया का अघोषित व्यवसाय यही होता है।यह समूह बारह महीने सक्रिय होता है।
एक समूह आए दिन किसी न किसी बहाने भंडारे नामक अन्न दान का धार्मिक आयोजन करता रहता है।इस माफिया समूह को साईबाबा जैसे संत सहज, सरल और आसानी से मिल जाते हैं।वर्षभर में जितने भी भंडारे होते है,उनमें नब्बे फी सदी भंडारे साईं बाबा के नाम पर ही होते हैं।इस माफिया को मन या बेमन से सहयोग करने वाले व्यापारी होते हैं।यह व्यापारी बगैर आना कानी किए मुक्तहस्त से अपना दान रूपी सहयोग प्रदान करते हैं।यह सहयोग करना इनकी बाध्यता भी होती है अपने व्यापार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए।
साहित्य क्षेत्र में भी बौद्धिक स्तर का माफिया सक्रिय होता है।इस समूह के द्वारा अपने निकटम आत्मीय साहित्यकारों का ही सन्मान किया जाता है।
इंद्र देवता के दरबार में आदर के साथ पिलाए जाने वाले पेय “सोमरस” के समूह की जानबूझ कर चर्चा नहीं की है।सोमरस को साहित्यिक भाषा मे मदिरा कहते हैं।वर्तमान में इस मदिरा समूह, और सरकार के सौजन्य से ग़रीब मजदूर से लेकर मध्यमवर्गीय से लेकर उच्च वर्ग के लिए हर एक सौ मीटर पर शुद्ध देशी और विदेशी दुकानों पर सहज और सरलता से उपलब्ध है।सरकार को राजस्व की आय का मंदिर समूह सबसे बड़ा स्रोत है।
एक महत्वपूर्ण माफिया है,खनन माफिया,यह माफिया, माफी अर्थात क्षमा का अधिकारी है।यह माफिया सरिताओं में खनन कर नदियों के गहरी करण में व्यवस्था के लिए सहयोगी होता है।इस माफिया के सराहनीय कार्य के लिए इसकी प्रशंसा करनी चाहिए।
माफिया समूह के परिजनों का भी रुतबा समाज मे रहता है।व्यंग्यकार इस रुतबे नहीं मानते हैं।व्यंग्यकारों का कहना पड़ता है,भूमाफियाओं और उनके परिवार जनों के प्रति लोगो में मन में सन्मान नहीं होता,इनके प्रति,लोग “दुर्जनम प्रथम वंदे” वाली कहावत का औपचारिक निर्वाह करते हैं।
माफिया समूह की सक्रियता कब तक बनी रहेगी यह कह पाना असंभव है।
माफिया समूह की जड़े कितनी भी मजबूत हो कितनी भी फैली हो इसकी उम्र अनिश्चित होती है।साँप सीडी के खेल की तरह।जबतक भाग्य साथ देता है तबतक इस समूह के लोगों के पांसे पक्ष में पड़ते हैं,तबतक खेल में सीढ़ी- दर-सीढ़ी ही आते रहती है,लेकिन आख़री पायदान पर पहुँचने के मात्र दो कदम की दूरी पर अर्थात इठयावन पर साँप आ जाता है जो सीधे नीचे ले आता है।नीचे अर्थात जमीन आकर सब कुछ नेस्तनासबूत कर देता है।अपने देश का दर्शन शास्त्र कहता है, पाप का घड़ा एक न एक दिन फूटता ही है।
महत्वपूर्ण बात इन माफिया समूहों के जो सरपरस्त होते हैं उन्हें सम्मान से भाई या डॉन कहा जाता है।
यह जो भाई लोग होते हैं,इनका सभी राजनैतिक दलों के साथ भाई चारा होता है।
कुछ आलोचक इसे कहावत वाले मौसेरे भाई का रिश्ता बतातें हैं।
जब तक व्यवस्था में बैठे लोग माफियाओं से भेट स्वरूप
मानधन सहर्ष प्राप्त करते रहेंगे तब तक माफिया समूह रहेगा।