“कितना विचित्र किन्तु कड़वा सच- मै खुद पर कोई बंदिश नहीं चाहता लेकिन प्रशासन कोरोना पर रोक लगाए”

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हमने एक कलेक्टर उनके अधीनस्थ हजार कर्मचारी, एक एसपी उनके मातहत हजार पुलिस वालों का इंतजाम कर तो रखा है। कोरोना से वो लड़े और हम पूरी बेशर्मी से धंधा करे। जब तक पुलिस की गाड़ी सायरन बजाती, डंडा लेकर हमको बेइज्जत न करे, हम पैसा कमाने का एक सेकेंड भी अवसर चुकना नहीं चाहते।
हर रोज पॉजिटिव मरीज की संख्या पर झल्लाते है। थोड़ा व्यवस्था पर दोषारोपण भी करते है फिर खुद सोशल डिस्टेंस भूलकर बिना मास्क लगाए नोट गिनने बैठ जाते है । क्या बेहूदगी है कि हमको कोरोना से नहीं पुलिस के चालान से डर लगता है। हम मास्क लगाते भी तभी है जब पुलिस दिख जाए। साहेब, न शादियां थम रही न उठावने। न बाजार में भीड़ कम हो रही न पानी पूरी खाने वालो का जायका कम हो रहा।
हम हद दर्जे की लापरवाही करते रहेंगे मगर अस्पताल में कोविड वार्ड में अच्छा खाना, अच्छा ट्रीटमेंट, अच्छा व्यवहार हमारी प्राथमिकता रहेगी, यह ध्यान रखना। हम बिना वजह बारिश में भीगेंगे, किल कोरोना सर्वे में झल्लाएंगे मगर आप लोग कुछ कीजिए यह सलाह जरूर देंगे।
मन तो करता है की हर बार प्रशासन के ही कान मरोडू मगर क्या करू कभी कभी अपना गिरेबान भी देखकर खुद से सवाल कर बैठता हूं। ये कैसी लड़ाई लड़ रहे हम ? जीवन बचाने की जद्दोजहद में हम बेखौफ धंधा कर रहे है। हमे ठहरना होगा वर्ना… कोराना पॉजिटिव की और गंभीर संख्या देखेगा