अर्जुन राठौर
2 दिन पहले इंदौर में एक अस्पताल का उदघाटन हुआ और उस उदघाटन का विज्ञापन शहर के प्रमुख अखबार में पहले पेज पर छपा जिसमें अस्पताल ने यह ऑफर दिया कि पहले आने वाले 500 मरीजों को ऑक्सीजन मुफ्त दी जाएगी । निश्चित रूप से देशभर के ही नहीं विश्व भर के अस्पतालों के इतिहास में इस विज्ञापन को सबसे शर्मनाक विज्ञापन की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।
अस्पताल लोगों को स्वस्थ करने के लिए होते हैं और अस्पताल में आदमी मजबूरी में ही जाता है ऐसी स्थिति में क्या कोई अस्पताल मरीजों को बुलाने के लिए ऐसे विज्ञापन दे सकता है? क्या यह नैतिक है ?और इस विज्ञापन पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को कार्रवाई करना चाहिए ,यह विज्ञापन अस्पतालों के बढ़ते बाजारवाद का घटिया नमूना है ।
यह कैसे संभव है कि कोई अस्पताल अपने उदघाटन के मौके पर मरीजों को आमंत्रित करने का विज्ञापन दे कि जो मरीज जल्दी से जल्दी उनके अस्पताल में आएंगे उन्हें ऑक्सीजन की निशुल्क सुविधा मिल जाएगी , क्या लोग इस तरह की सुविधा का लाभ लेने के लिए तैयार बैठे हैं निश्चित रूप से महामारी के इस दौर में अस्पताल ने यह विज्ञापन देकर साबित कर दिया है कि आने वाले दिनों में अस्पतालों में भी अब इस तरह के विज्ञापनों की ओर शुरुआत हो जाएगी ।
अब इसी मामले में सोचिए कि किसी शहर में नया श्मशान घाट बना है तो क्या वहां पर यह सुविधा दी जाएगी कि पहले आने वाले 50 मुर्दों के लिए लकड़ी मुफ्त , यानी इस मुफ्त सुविधा का लाभ लेने के लिए पहले लोग जल्दी से जल्दी मरे ताकि वे मुफ्त लकड़ी की सुविधा का लाभ ले सकें यही स्थिति अस्पताल की है अस्पताल तो व्यक्ति मजबूरी में जाता है जिस तरह से श्मशान घाट में व्यक्ति तभी जाता है जब उसकी मृत्यु होती है ।
संभव है कि आने वाले दिनों में श्मशान घाट को निजी हाथों में सौंप दिया जाए और वहां पर ज्यादा से ज्यादा मुर्दों को बुलाने के लिए इस तरह के विज्ञापनों की शुरुआत हो जाए बढ़ते बाजारवाद में सब कुछ संभव है ।