यह पौराणिक कहानी कुछ इस तरह है कि, एक बार नील नाम का भील आखेट करने को निकला। उसे जंगल में एक शिवलिंग दिखाई दिया।

भील को शिवलिंग की पूजा करने की इच्छा हुई, तब वह पूजन साम्रगी एकत्रित करने के लिए वन गया, उसे नहीं पता था कि पूजा कैसे की जाए, तब वह एक हाथ में धनुष और दूसरे में मांस का टुकड़ा ले कर आया।

भील ने कभी पूजा नहीं की थी लेकिन उसे यह इच्छा उसे पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण उत्पन्न हुई थी।

उस शिवलिंग की पूजा एक पुजारी भी करता था, जब उसने शिवलिंग के पास मांस के टुकड़े को देखा तो उसे बहुत क्रोध आया।

उसने सच्चाई का पता लगाने के लिए दिन भर पेड़ के पीछे छिपा रहा, भील आया और उसने रोज की तरह वैसा ही किया।

लेकिन भील ने देखा उस दिन शिवलिंग में बनी आंख से रक्त बह रहा था,  उसे दुःख हुआ और उसने जड़ी बूटियों से ठीक करने की कोशिश की लेकिन रक्त नहीं रुका।

तब भील ने सोचा यदि इस जगह में अपनी आंख लगा दूं तो यह रक्त बहना बंद हो जाएगा, और इस तरह उसने अपनी एक आंख निकाल कर शिवलिंग पर अर्पित कर दी।

लेकिन शिवलिंग में बनी दूसरी आंख से भी रक्त बहने लगा तब भील दूसरे नेत्र निकालने ही बाला था कि एक ज्योर्तिमय प्रकाश उत्पन्न हुआ, उस ज्योर्तिमय प्रकाश से शिव प्रकट हुए।

वह उसकी इस भक्ति से प्रसन्न थे, उन्होंने उस भील जिसका नाम नील था, नया नाम कण्णप्प रखा, तमिल भाषा में नेत्र को कण्ण कहते हैं, पुजारी भी शिव के साक्षात् दर्शन पाकर धन्य हो गया।