प्रयागराज में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्‍पवास से एक कल्‍प का पुण्य मिलता है.

कल्‍पवास के महत्व की चर्चा वेदों से लेकर महाभारत और रामचरितमानस में भी की गई है.

आज भी कल्पवास नई और पुरानी पीढ़ी के लिए आध्यात्म की राह का एक पड़ाव माना जाता है.

इसके जरिए स्वनियंत्रण और आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता है.

चिंतात्मन  महाराज के अनुसार मिथिला और कोसी क्षेत्र का कोई घर ऐसा नहीं है जिनके पूर्वजों की आत्मा यहां ना हो.

ऐसी मान्यता है कि कल्पवास के दौरान जो लोग गंगा स्नान करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

सिमरिया के गंगा तट पर हर साल अक्टूबर या नवंबर महीने में कल्पवास का मेला लगता है, कल्पवास के दौरान लोग कुटिया में रहकर मोक्ष प्राप्ति के लिए पूजा-अर्चना करते हैं.

इसके पारंपरिक मान्यताओं और पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि भगवान राम और माता सीता ने भी इसी स्थान से अयोध्या वापस जाने का आयोजन किया था.