वेब सीरीज अर्थात नैतिकता और सामाजिक मूल्यों का पतन

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नई दिल्ली ◆एकता कपूर की फिल्म एक्स एक्स एक्स में एक दृश्य में भारतीय सेना की वर्दी को बेहद आपत्तिजनक तौर पर पेश करते हुए दिखाया गया है। हो सकता है कि एकता कपूर या उनके लेखक को यह बहुत उत्तेजनापूर्ण और रोमांचक लगा हो। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि सेना और उसकी वर्दी का अपमान, मतलब देश का अपमान है। और एक घृणित घटना है। इस मामले में एकता कपूर के खिलाफ केस भी दर्ज किया गया है ।
◆अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज पाताल लोक में जिसमें मंदिरों,देवी-देवताओं, अलग अलग समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, जाति सूचक शब्द का भरपूर उपयोग कर लोगों का भी अपमान किया गया है।
◆मशहूर निर्देशक दीपा मेहता की फिल्म लैला में भी अनावश्यक तरीके से यह दिखाने की कोशिश की गई है कि अगर भारत में वर्तमान राष्ट्रवादी सरकार अगले 30 साल तक रही तो कैसे हालात हो सकते हैं, यह सब एक अलग विचारधारा और मानसिकता तैयार करने की कोशिश की जा रही है। और इन सब विचारों को अप्रत्यक्ष तरीके से लोगों तक पहुंचाने का काम वेब सीरीज के माध्यम से किया जा रहा है।
इन सब उदाहरणों से यही लगता है कि ये सभी सिर्फ पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, और वेब सीरीज के निर्माता निर्देशक कहते हैं कि क्या करें कहानी की डिमांड है और दर्शक यही देखना चाहते हैं और विदेश में तो यह सब सामान्य है, उन्हें यह नहीं समझ में आता कि यह विदेशी कंपनियां शहरी शिक्षित दर्शक वर्ग में पहले इंग्लिश वेब सीरीज के माध्यम से आकर्षित करने के लिए आई भाषा और परिवेश की भिन्नता से इंग्लिश वेब सीरीज भारतीय बाजार में पैठ नहीं बना पाई, निश्चित अवधि में भारतीय बाजार में अपेक्षित प्रसार नहीं मिला तो भारत में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के कंटेंट से उन्होंने इंटरनेट के दर्शकों को आकर्षित किया और फिर वेब सीरीज की जन सामान्य में स्वीकृति और चर्चा के बाद तो बाढ़ सी आ गई ,अनेक निर्माता-निर्देशक की आँखे खुली और उन्होंने चार कदम आगे बढ़कर आनंद और विलासिता के सीधे संवादों , दृश्यों और चरित्र संबंधों को दिखाने में कोई गुरेज नही किया। विदेशी कंपनियों ने चार गुना अधिक पैसे देकर इस देश के बंद दरवाजे अपने लिए खोल लिए। और फिर एक बार जब बड़े स्टार और फिल्मी घराने इसमें लिप्त हो गए तो बाकी छोटों के लिए यह एक उदाहरण बन जाता है कि उन्होंने किया तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं।
◆अब जरा समझिए इनका बिजनेस मॉडल
मान लीजिए किसी एक ओटीटी और ऐप को 75 लाख लोगों ने डाउनलोड किया है और ₹300 1 साल का शुल्क मतलब 200 करोड़ से अधिक हर साल, अब इतनी बड़ी रकम कोई क्यों छोड़ेगा चाहे जमीर ही क्यों ना छोड़ना पड़े। ऐसे ही एक अन्य उदाहरण 75 लाख से ज्यादा डाउनलोड और ₹99 1 साल के तो लगभग 70 करोड़। इस समय देश में ऐसे ऐप और ओटीटी प्लेटफॉर्म की बाढ़ आ गई है, इस अंधी दौड़ में सब दौड़ रहे हैं , चाहे वह बड़े फिल्मी घराने हो या छोटे बड़े निर्माता निर्देशक हो, कोई सेंसरशिप नहीं जो मर्जी दिखाओ चाहे देश, संस्कृति ,सेना या राष्ट्रीय भावनाओं का अपमान ही क्यो न हो। क्योंकि इन्हें सिर्फ पैसे कमाने की चिंता है, समाज , संस्कृति और देश की नहीं। चाहे उससे मानसिक, नैतिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रवाद का पतन ही क्यों ना हो जाए।
लेकिन वेब सीरीज के निर्माता निर्देशक यह भूल जाते हैं कि भारत मे महापुरुषों, राष्ट्रीयता ,पारिवारिक और स्वस्थ मनोरंजन केंद्रित फिल्मों और सीरियल का हमेशा स्वागत किया जाता है। पहले फिल्में धर्म ,इतिहास और संस्कृति पर बनती थी। फिर सामाजिक विषयों पर बननी शुरू हुई ऐसे ही एक्शन ,कॉमेडी यथार्थवाद से होते हुए विलासिता पर आ गई है, और उनका प्रसारण माध्यम और प्रस्तुतीकरण बदल गया है।
◆क्या सीखेगी इससे आने वाली पीढ़ी ?
इससे नाबालिगों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। सरकार ऐसे सामग्रियों पर सेंसरशिप लागू करने को लेकर फौरन कानून बनाए। बच्चे सबसे ज्यादा स्मार्टफोन एडिक्शन के शिकार हो रहे हैं। वेब सीरीज की फिल्में देखने वालों में भी बच्चों की तादाद ज्यादा है, ऐसे में उन पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। सरकार वेब सीरीज के लिए कड़े कानून बनाये वरना हमें पता भी नहीं चलेगा बंद कमरे में घर के बच्चे क्या देख रहे हैं और क्या सीख रहे हैं? बच्चों पर पड़ते गलत प्रभाव को दूर करने के लिए कानून बनाने की सख्त आवश्यकता है।
वेब सीरीज की दुनिया में क्रांति हो रही है लेकिन यह क्रांति विषय की कम अश्लीलता की ज्यादा हो रही है।
कोई एक व्यवस्था अंदरूनी तौर पर विकसित हो जो वेब सीरीज पर नजर रखें और आगाह करें। सेंसरशिप की अनुपस्थिति में काफी लोग वेब सीरीज में बहुत कुछ ऐसा कर रहे हैं जो बहुत ही हिंसक और अश्लील है, फिलहाल ऐसा कोई तरीका नहीं है कि उन पर पाबंदी लगाई जा सके। वेब सीरीज पर उम्र की हिदायत रहती है, लेकिन सिनेमाघर की तरह अवयस्क दर्शकों के प्रवेश पर कोई रोक नहीं लगाई जा सकती है , क्योंकि घरों में बैठे किसी भी उम्र के दर्शक को आप कैसे रोक सकते हैं?
◆एक्ट क्या कहता है ?
इंटरनेट पर पेड स्‍ट्रीमिंग और विडियो ऑन डिमांड सर्विस के तहत दिखाए जाने वाले कंटेंट के लिए मिनिस्‍ट्री ऑफ इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एंड इंफॉर्मेशन टेक्‍नोलॉजी (MeitY) के तहत गठित आईटी एक्‍ट-2000 में पर्याप्‍त सुरक्षा उपाय किए गए हैं । आईटी एक्‍ट-2000 के सेक्‍शन 69ए के तहत इन इनफॉर्मेशन/वेबसाइट्स/यूआरएल को ब्‍लॉक करने का अधिकार है ।
सेक्‍शन 69 ए के तहत कुछ खास परिस्थितियों जैसे-भारत की रक्षा, भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्‍यों की सुरक्षा, विदेशी राज्‍यों से संबंध आदि के मामले में ही यूआरएल को ब्‍लॉक करने का अधिकार है। संबंधित जांच एजेंसियां वेब और सोशल मीडिया समेत इस तरह की गतिविधियों पर नजर रखती हैं और शिकायत सही मिलने पर उचित कदम उठाती हैं।
किसी भी फ़िल्म को थिएटर में रिलीज़ करने से पहले सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफ़िकेशन से प्रमाण-पत्र हासिल करना अनिवार्य है और सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफ़िकेशन को कुछ लोग बोलचाल की भाषा में सेंसर बोर्ड भी कहते हैं । लेकिन डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म अर्थात् वेब सीरीज के लिए ऐसी कोई संस्था अभी तक नहीं है।
◆ समस्या का समाधान
वर्तमान समय मे वेब सीरीज के माध्यम से हज़ारो लोगो को रोजगार भी प्राप्त हुआ, और अच्छी पारिवारिक और स्तरीय वेबसीरीज देने वाले क्रिएटर्स और निर्माता भी मौजूद है जो काफी अच्छी कहानी के साथ मनोरंजन प्रस्तुत कर रहे है।इसलिए वेब सीरीज पर प्रतिबंध लगाने के स्थान पर
अंकुश लगाने के लिए किसी शासकीय बोर्ड ,संस्थान या कमेटी का बन जाना आवश्यक है, तभी इस प्रकार के अश्लील निर्माण पर रोक लगाई जा सकती है। निर्माता निर्देशकों के संज्ञान में केवल इतना होना पर्याप्त है कि हमारे प्रत्येक निर्माण पर किसी एक संस्थान की तीखी दृष्टि है। इतने भय से ही सारे वेब सीरीज निर्माता संतुलित और स्वस्थ मनोरंजन देने पर बाध्य हो जाएंगे। लेकिन बहुत से निर्माता-निर्देशक और स्क्रिप्ट लेखक के लिए सबसे बड़ी खुशी और संतुष्टि की बात है कि किसी दृश्य को लिखते या फिल्माते समय उनके मन में कोई वैधानिक चेतावनी नहीं आती है, फिल्मों में सेंसरसिप और कुछ अनुमति के कारण निर्माता निर्देशक अपनी हदों को लांघ नही सकते है, जबकि इसके विपरीत वेब सीरीज के लिए किसी प्रकार की कोई अनुमति की आवश्यकता नहीं है। यह चिंतनीय और आपत्तिजनक स्थिति है।सरकार और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को इस विषय को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। अब सरकार को इस बारे में कोई ठोस कानून बनाना ही पड़ेगा और तुरंत अंकुश लगाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
दीपक जैन (टीनू)
पार्षद, इंदौर
[email protected]
9827060558
लेखक के व्यक्तिगत विचार।