राजेश राठौर
राहत साहब के बारे में लिखना बेहद कठिन इसलिए है कि उनके व्यक्तित्व के जो रग है किसी एक कैनवास पर समेटे जाना मुश्किल है। लाजवाब शायर तो है ही, फक्कड़ और मस्तमौला इंसान है। राहत इंदौरी कहते है – “आज भी जिस माहर में जाता हैं, वहां पर आठ-दस राहत इंदौरी तो मुझे मिल ही जाते हैं. मेरी शैली में गजल कहते हुए।
उनके फक्कड़पन से जुड़ा दिलचस्प किस्सा है कल्पना कीजिए एक प्रसिद्ध शख्सियत सैकड़ों-हजारों लोगों की मौजूदगी में मंच पर हाजिर होने के लिए क्या-क्या तैयारी करती है? संभव है प्रस्तुति के चंद घंटों पहले वह अपने एक जोड़ी कपड़े सूखने के लिए इतजार करे. शापद नहीं। लेकिन शब्दों की जादूगरी से मंचों और महफिल को लूट लेने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी के जीवन में ऐसा ही हुआ। जब उन्होंने एक मुशायरे के पहले अपने कपड़े रेलवे स्टेशन के
हैंडपंप पर धोए सुखाए और उन्हीं को पहनकर शायरी करने पहुंचे। एक जोड़ कपड़े में मुशायरे के सफर का किस्सा कुछ इस तरह से है। असल में एक बार राहत इंदौरी को मुशायरे के लिए बनारस जाना था। लखनऊ से जौनपुर होते हुए अपने सफर पर पे। परेशानी यह थी कि राहत साहब के पास एक जोड़ कपड़े ही थे। जो पहने हुए थे और गदे हो गए थे। अचानक उन्हें लगा कि कपड़े साफ दिखना चाहिए सो उतर पड़े जौनपुर से पहले जफराबाद रेलवे स्टेशन पर। स्टेशन के ही एक हैंडपंप पर उन्होंने कपड़े धोए. कपड़े सूखने तक इंतजार किया और वही कपड़े पहन कर दूसरी ट्रेन से बनारस पहुंच गए।
क़ाबिले गीर है कि उस दौरान मुशायरा में आने वाले शायरों को दिया जाने वाला भुगतान इतना अधिक नहीं होता था कि वे तुरंत नए कपड़े खरीद लें। यह किस्सा राहत साहब के संघर्षों की छोटी सी बानगी है। जीवन के जिस मुकाम पर आज आसीन हैं, वो न जाने कितने संघों के बाद नसीब हुआ है। संघर्ष की दास्तान से छनकर आए, शब्दों को राहत साहब जब शायरी के रूप में प्रस्तुत करते है. तब सुनने वाला हर माक्स उनका मुरीद हो जाता है।
दो गज़ सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है ऐ मौत! तूने मुझको ज़मींदार कर दिया