सुरेन्द्र बंसल
बीते समय से इस दफा न केवल कोरोना बदल गया है अपितु उससे संघर्ष की नियत और कर्तव्य भी बदल गए. प्रशासनिक प्रधानों की तैयारियां अब वैसी नहीं रही जैसी बीते वर्ष थी. गत वर्ष किसी एक के भी कोरोना पॉजिटिव मिलने पर उस घर को गली को सील कर दिया जाता था यह अतिरेक था अब किसी भी पॉजिटिव केस पर कोई भी ऑब्जरवेशन नहीं है. मरीजों को खुला और उनके हाल पर छोड़ दिया है. वह खुद दवा और अस्पताल के लिए भटक रहा है, अपने वाहन से (यदि हो तो) जांच करवाने की दौड़ धूप कर रहा है.
वह खुद छिपकर बैठ रहा है ,उसके पड़ोसी तक को नहीं पता वह संक्रमित है और उसके क्या हाल है. मरीजों की बढ़ती संख्या में यह संभव नहीं है कि प्रशासन सबकी देख रेख कर सके. लेकिन इतना तो किया जाना चाहिये कि उस क्षेत्र के लोगो को जानकारी हो कि किस घर मे लीग संक्रमित है और उनके क्या हालत है, उन्हें क्या मदद चाहिए. प्रशासन को यह दायित्व मोहल्ला समितियों, इलाके के सेवा संगठनों आदि को सौंप कर उन्हें हरसंभव मदद करना चाहिए.
अस्पतालों में बेड का किराया किसी अच्छे होटल से अधिक क्यों वसूल किया जा रहा है इस पर भी ध्यान देना चाहिए. आम दिनों से अफ़हीक वसूली यदि इन दिनों में हो रही है तो उसे कौन देखेगा ,रोकेगा. क्राइसिस मैनेजमेंट समितियां यदि नकारा है तो उसमें परिवर्तन कीजिये. लोगो को सुलभ उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित किजिये. मतलब ऑब्जरवेशन पूरा रखिये माननीय जिला प्रशासन, बहुत कुछ किया जा सकता है बिना पैसे और बिना आवश्यक स्टाफ के, जागिये और लोगो के नसीब से सबेरा मत छीनिये. लॉक डाउन तोड़ने वालों को जेल भेजने में अपनी ऊर्जा व्यर्थ मत कीजिये..अंग्रेजियत नहीं हिंदुस्तानी किरदार कीजिये.