भोपाल. दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में आज उपस्थित श्रोताओं ने माखनलाल चतुर्वेदी की आवाज़ में उनकी अमर रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ सुनकर गौरव की अनुभूति की. इस कविता के लेखन का शताब्दी वर्ष आरम्भ होने के पर संग्रहालय ने यह आयोजन किया.
समारोह के मुख्य अतिथि राजेश बादल ने कहा -सौ वर्ष बाद भी यह रचना हमारे ह्रदय में धड़क रही है तो निश्चित ही यह रचना कालजयी है हम अपने पूर्वजों के संघर्षों को स्मृतियों को नहीं सहेज पा रहे हैं ,देश को लेकर त्याग समर्पण का भाव पहले जैसा अब नहीं रहा | देश प्रेम का संस्कार हम बच्चों में कईं नही दे पा रहे हैं ,पहले वतन के लेकर जो प्रेम था वह गायब होता जा रहा है यह कविताएं आज पाठ्यक्रम से क्यों गायब हो गयी हैं आज जरूरत है ऐंसी रचनाओं को विद्यालयों विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना अनिवार्य किया जाए |
बादल ने कहा कि गांधी जी से दादा की असहमतियां थी असहयोग आंदोलन अहिंसा के सिद्धांत मानने के बाद भी वे क्रांतिकारियों के समर्थक थे उनका हर सम्भव सहयोग करते थे | आज हम पक्ष में हैं अथवा विपक्ष में है निष्पक्ष नहीं हैं दबाब मुक्त भारत का निर्माण करना होगा.
विशिष्ट अतिथि अजय कुमार तिवारी माखन लाल चतुर्वेदी के नाती ने अपने बचपन के संस्मरण साझा करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री भगवंत राव मंडलोई जब दादा से मिलने आये तो उन्हें कैसे आम आदमी की तरह बाहर तख्त पर बैठा दिया था ,और वह दादा का इंतज़ार करते रहे |
आरम्भ में निदेशक राजुरकर राज ने इस कविता की प्रष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया कि इस कविता के रचनाकाल को लेकर भ्रम की स्थिति है, जो माखनलालजी स्वयम स्पष्ट करते हैं की यह कविता मार्च 1922 में लिखी गई है. उन्होंने कहा कि यह शताब्दी पर्व दुष्यंत संग्रहालय पूरे वर्ष आयोजित करेगा.
स्वागत उदबोधन संग्राहलय के अध्यक्ष रामराव वामनकर ने दिया तथा अतिथियों का स्वागत अशोक निर्मल एवम घनश्याम मैथिल ‘अमृत” ने पुष्प एवम पुस्तक भेंट कर किया |
राजुरकर राज