वेलेंटाईन-डे और मानव संस्कृति

Ayushi
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एक पुरानी कथा है कि रोमन साम्राज्य का अति महत्वाकांक्षी सम्राट क्लाउडियस गोथिकस द्वितीय एक शक्तिशाली राज्य का अधिपति था और उसे अपना साम्राज्य फैलाने के लिए बड़ी संख्या में सैनिको की आवश्यकता थी लेकिन उसकी सेना को जरूरत अनुसार युवा सैनिक नही मिल पा रहे थे, इसका कारण पता चला कि वो लोग जिनके परिवार है, जिनकी पत्नि और बच्चे हैं, या जो प्यार मे पड़े होकर शादी करना चाहते है वह युवा पुरुष सेना मे भर्ती नही होना चाहते हैं, यह जानकर क्लॉडियस ने विवाह पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि उसकी सोच थी कि प्रेम-संबंध या विवाह करने से पुरुषो की बुद्धि और शक्ति दोनो क्षीण हो जाती है और सैनिक अपने लक्ष्य से विमुख होकर युद्ध हार जाते हैं।

क्रिश्चियन सभ्यता में विवाह को एक पवित्र कर्म माना जाता है और यह कर्म गिजाघर में संत/सेंट (पादरी) सम्पन्न करवाते है, क्लॉडियस के राज्य में “सेंट वेलेंटाईन” नाम के एक संत थे उन्हें राजा का यह बेतुका फरमान कतई पसंद नहीं आया, दरअसल सैंट-वैलेंटाइन संसार में प्यार को बढ़ावा देने के समर्थक थे, उनका मानना था कि इंसान ईश्वर की मर्जी से प्रेम में पड़ता है और विवाह संपन्न करवाना एक सेंट का ईश्वरीय कर्तव्य होता है तो उन्होने राजाज्ञा के विरुद्ध गुप्त रूप से विवाह करवाना जारी रखा, लेकिन यह बात अधिक समय तक छुपी ना रह सकी और जैसे ही सम्राट तक यह खबर पहुंची उसने सेंट-वैलेंटाइन को कैद कर लिया और सजा-ऐ-मौत का ऐलान कर दिया, 14 फरवरी 269 ईस्वी को सेंट-वैलेंटाइन को फांसी पर चढ़ा दिया गया । खुशी और प्यार के नाम पर अपना जीवन समर्पित कर देने के लिए सेंट-वेलेंटाइन को याद किया जाने लगा और उनके निर्वाण दिवस 14 फरवरी को प्यार-दिवस या वेलेंटाईन-डे के नाम से समारोह पूर्वक मनाया जाने लगा ।

हमारे देश में वेलेंटाईन-डे को लेकर दो परस्पर विरोधी विचारधाराएँ काम करती है, एक वो जो इस प्रेम-दिवस को मनाने के समर्थन में है और दूसरी तरफ वो लोग है जो पाश्चात्य संस्कृति के नाम पर इसका विरोध करते है उनका कहना है कि ये हमारी संस्कृती नही है इसलिए ये पर्व सार्वजनिक स्थलों पर नही मनाया जाना चाहिये, दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही यह मानते है कि प्रेम या प्यार एक निजी मसला है, लेकिन एक पक्ष का कहना है कि इसमें दूसरों को दखल नही देना चाहिए और विरोधियो का कहना है कि इस निजी व्यवहार को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित नही करना चाहिए, दोनों के अपने अपने तर्क है और अपने अपने नजरिए से दोनों सही प्रतीत होते है। रही बात कानून या सरकार की तो हमारे देश में सरकार इस दिवस को ना तो अधिकारिक रूप से प्रतिबंधित करती है और ना ही विरोध करने वालो के विरुद्ध कोई कार्यवाही करती है, यानि सरकार ने इसे लोगो के स्व-विवेक पर छोड़ दिया है, कुछ लोग यह आरोप भी लगाते है कि सरकार ने बाजार की ताकतों के आगे समर्पण कर दिया है।

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अगर सेंट-वैलेंटाइन आज जीवीत होते, तो वह आज के जमाने के विवाहित जोड़ों के आपसी व्यवहार को देखकर यही कहते कि मेरे बच्चों जीवन में एक समय ऐसा भी आता है, जब आपको लगता है कि विवाह संबंध में आपसी सामंजस्य, प्रतिबद्धता और अपनी प्रतिज्ञाओं को बनाए रखना आसान नहीं रहता और आपको यह जानकार आश्चर्य होता है कि किसी के लिए आपके मन में जो असीमित प्यार था वह कुछ कम हो रहा है लेकिन शायद वो प्यार अब अधिक परिपक्व हो रहा है, असल सवाल यह है कि क्या आप इसे महसूस करने और इसके साथ जुड़ी जिम्मेदारियां निभाने के लिए तैयार है?

वेलेंटाइन-डे तो केवल एक प्रतीकात्मक दिन है जिसे प्यार के लिए जाना जाता है लेकिन असल में प्यार करने वालों को ना किसी विशेष दिन की आवश्यकता है ना किसी विशेष अवसर की और ना ही किसी विशेष जगह की क्योंकि प्यार एक ऐसा शब्द है जो हर किसी को कभी ना कभी किसी ना किसी से होता है। वस्तुतः हमें अपने प्रियजनो के लिए समय निकालना चाहिए क्योंकि इस समय चक्र में जो पल बीत जाते है वो कभी लौट कर नहीं आते, एक खुशहाल जीवन जीने के लिए इन पलों को आपको अपने परिवार, दोस्तो, और परिजनो के साथ हंसी खुशी गुजारना चाहिए इसीमें इस प्रेम-दिवस की सार्थकता है।

संत वेलेंटाइन के नाम पर की जाने वाली फूहड़ता और उच्छृंखलता की बजाय, सेंट वेलेंटाइन द्वारा बताए गए विवाह और आपसी प्रेम के महत्व को रेखांकित कर पूरब या पाश्चात्य संस्कृति से हटकर मानव संस्कृति में पवित्र प्रेम और वैवाहिक बंधन को निभाने के बारे में जानकारी देता राजकुमार जैन द्वारा लिखा यह लेख वेलेंटाइन के बारे में वो सच बता रहा है जो बाजारी ताकतों ने सप्रयास आपसे छुपाकर रखा है ।

राजकुमार जैन
स्वतंत्र विचारक