ईश्वर दुनिया के हर कण में व्याप्त है और वे हमेशा सबका कल्याण ही करेंगे .सभी दिशाओं के स्वामी भी भगवान ही है और सब दिशाओं का अपना अपना एक महत्व है. और हम अगर उसके अनुसार कुछ बदलाव करते है तो जीवन में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त कर सकते है. अत: आवश्यक है कि पूजा स्थल बनवाते समय भी वास्तु के कुछ नियमों का ध्यान रखा जाए.

1 . भूल से भी भगवान की तस्वीर या मूर्ति आदि नैऋत्य कोण में न रखें. इससे बनते कार्यों में रुकावटें आती हैं.
2 . मंदिर की ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दुगुनी होनी चाहिए.पूजा स्थल के लिए भवन का उत्तर पूर्व कोना सबसे उत्तम होता है.

3. घर में एक हाथ से अधिक बड़ी पत्थर की मूर्ति की स्थापित करने से गृहस्वामी की संतान नही होती .
4. आश्विन माह में माँ दुर्गा की स्थापना मंदिर में करना शुभ माना गया है ,इसका बहुत पुण्यफल मिलता है .
5. पूजा घर शयनकक्ष में न बनाए .
6.पूजा घर शौचालय के ठीक ऊपर या नीचे न हो. पूजा घर का रंग स़फेद या हल्का क्रीम होना चाहिए.
7. घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य-प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो द्वारका के गोमती चक्र और दो शालिग्राम का पूजन करने से गृहस्वामी को अशान्ति प्राप्त होती है.

8. घर में कुलदेवता का चित्र होना अत्यंत शुभ है. इसे पूर्व या उत्तर की दीवार पर लगाना श्रेष्ठकर है .
9. पूजा घर का द्वार टिन या लोहे की ग्रिल का नहीं होना चाहिए .
10.शयनकक्ष में पूजा स्थल होना ही नहीं चाहिए. अगर जगह की कमी के कारण मंदिर शयनकक्ष में बना हो तो मंदिर के चारों ओर पर्दे लगा दें. इसके अलावा शयनकक्ष के उत्तर पूर्व दिशा में पूजास्थल होना चाहिए.

11. ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य और कार्तिकेय, गणेश, दुर्गा की मूर्तियों का मुंह पश्चिाम दिशा की ओर होना चाहिए कुबेर, भैरव का मुंह दक्षिण की तरफ़ हो, हनुमान का मुंह दक्षिण या नैऋत्य की तरफ़ हो और हा उग्र देवता जैसे माँ काली की स्थापना घर में न करे .