Tulsi Vivah 2024 : जानें क्यों करवाया जाता हैं माता तुलसी का शालिग्राम से विवाह? जानें पूरी कथा

Meghraj
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Tulsi Vivah 2024: तुलसी विवाह 13 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा, जो विशेष रूप से भारत में एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है। यह दिन खास तौर पर देवउठनी एकादशी के दिन मनाया जाता है, जब भगवान विष्णु और तुलसी माता का विवाह विधिपूर्वक शालिग्राम जी के साथ कराया जाता है। इस दिन गन्ने से मंडप बनाकर पूरे विधि विधान से तुलसी माता और शालिग्राम (विष्णु भगवान के रूप) का विवाह संपन्न कराया जाता है। इस शुभ अवसर पर मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त करने की मान्यता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान विष्णु को तुलसी से विवाह क्यों करना पड़ा? इस प्रश्न का उत्तर पौराणिक कथाओं में मिलता है, जिसमें एक दिलचस्प और शिक्षाप्रद कहानी है।

Tulsi Vivah 2024: कथा 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, दैत्यराज कालनेमी की कन्या वृंदा का विवाह जालंधर नामक राक्षस से हुआ था। जालंधर बहुत ही शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस था, जो अपनी शक्ति और सत्ता के मद में चूर था। उसने अपनी शक्ति का उपयोग करके माता लक्ष्मी को प्राप्त करने की इच्छा जाहिर की और युद्ध की चुनौती दी। हालांकि, समुद्र से उत्पन्न होने के कारण, माता लक्ष्मी ने उसे अपने भाई के रूप में स्वीकार किया और उसे पराजित किया। जालंधर इस हार को सहन नहीं कर पाया और माता पार्वती को पाने के लिए कैलाश पर्वत पर चला गया।

वहां जाकर उसने भगवान शिव का रूप धारण किया और देवी पार्वती को पाने के लिए उनके पास गया, लेकिन माता पार्वती ने अपनी दिव्य शक्ति से उसे पहचान लिया और वह तुरंत अंतर्ध्यान हो गईं।

वृंदा का पतिव्रता धर्म

वहीं दूसरी ओर, जालंधर की पत्नी वृंदा अत्यंत पतिव्रता और पवित्र स्त्री थी, और उसके पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण ही जालंधर कभी भी पराजित नहीं हो पाता था। जालंधर के नाश के लिए उसके पतिव्रता धर्म को तोड़ना बहुत जरूरी था। इसलिए भगवान विष्णु ने ऋषि का रूप धारण कर वृंदा से मिलने का निश्चय किया।

भगवान विष्णु का छल

भगवान विष्णु ऋषि के रूप में वृंदा से मिले और उसके सामने अपने साथ दो राक्षसों को भस्म कर दिया। यह देखकर वृंदा भयभीत हो गई। ऋषि ने वृंदा से पूछा कि वह अपने पति जालंधर के बारे में क्या जानती है, जो कैलाश पर्वत पर महादेव से युद्ध कर रहा था। भगवान ने माया से दो वानर प्रकट किए—एक वानर के हाथ में जालंधर का सिर था, और दूसरे के हाथ में उसका धड़। जब वृंदा ने यह देखा, तो वह बेहोश हो गई।

होश में आने पर वृंदा ने ऋषि से विनती की कि वह जालंधर को जीवित करें। भगवान ने अपनी माया से जालंधर का सिर और धड़ जोड़ दिया और स्वयं उसी शरीर में प्रवेश कर गए। वृंदा को इस छल का आभास नहीं हुआ और उसने भगवान विष्णु (जालंधर के रूप में) के साथ पतिव्रता का धर्म निभाया। इस प्रकार, वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग हो गया और जालंधर युद्ध में हार गया।

वृंदा का शाप और भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप

जब वृंदा को इस छल का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को गुस्से में आकर शाप दे दिया कि वह ह्रदयहीन शिला बन जाएं। भगवान विष्णु ने इस शाप को स्वीकार किया और शालिग्राम रूप में परिणत हो गए।

शालिग्राम रूप में भगवान विष्णु के पत्थर बनने से ब्रह्मांड में असंतुलन उत्पन्न हो गया। इस संकट को देखकर सभी देवी-देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को शाप से मुक्त करें। इसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप से मुक्त किया और स्वयं आत्मदाह कर लिया।

तुलसी का उत्पत्ति

जहां वृंदा ने आत्मदाह किया, वहां तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा: “हे वृंदा, तुम्हारे सतीत्व के कारण तुम मुझे लक्ष्मी से भी प्रिय हो गई हो। अब तुम तुलसी के रूप में हमेशा मेरे साथ रहोगी।” भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि जो कोई भी शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह करेगा, उसे इस लोक और परलोक में विपुल यश प्राप्त होगा।

तुलसी और शालिग्राम का विवाह: एक शाश्वत संबंध

तुलसी विवाह के दिन, विशेष रूप से शालिग्राम जी के साथ तुलसी माता का विवाह करके श्रद्धालु भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह पूजा घर में सुख-शांति, समृद्धि और लक्ष्मी का वास करती है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां यम के दूत भी नहीं पहुंच सकते। तुलसी विवाह का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि भगवान विष्णु और तुलसी माता के बीच के शाश्वत संबंध का प्रतीक है। तुलसी विवाह करने से न केवल घर में सुख-शांति का वास होता है, बल्कि यह हमें सच्चे प्रेम, समर्पण और धर्म के पालन की शिक्षा भी देता है।