अर्जुन राठौर
जमाना टीआरपी का है टीआरपी के बिना सब सूना है ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि किसी भी तरह से टीआरपी को हड़पो टीआरपी को पाने के लिए कुछ भी हथकंडे अपनाओ ताकि चैनल की जय जयकार होती रहे यदि टीआरपी नहीं मिली तो विज्ञापन नहीं मिलेंगे और विज्ञापन नहीं मिलेंगे तो चैनल चलेगा कैसे ? विज्ञापन दाताओं की आंखों में धूल झोंकने के लिए जरूरी है कि टीआरपी बढ़ती रहे ।
अब सोचिए इस देश में 84 करोड़ लोग टीवी देखते हैं लेकिन टीआरपी मापने के लिए पूरे देश में मात्र 44000 मीटर लगे हुए हैं इनमें से 54% मीटर हिंदी के लिए हैं और बाकी अन्य भाषाओं के लिए अब ऐसी स्थिति में जिन घरों में मीटर लगे हुए हैं उन्हें मैनेज करना कितना आसान है इसका भंडाफोड़ तो पुलिस ने कर ही दिया है इस भंडाफोड़ के साथ ही लोगों को भी यह समझ में आ गया है कि टीआरपी का खेल वास्तव में है क्या ? और इसे कैसे मैनेज किया जाता है आम दर्शक बेचारे क्या जाने की टीआरपी की आड़ में उन्हें कैसे बरगलाया जाता है वे तो सिर्फ इतना समझते हैं कि यह चैनल श्रेष्ठ है क्योंकि इसकी टीआरपी बहुत ज्यादा है और इस चैनल की टीआरपी कम है इसलिए इसे बहुत कम देखा जाता है जिस तरह से अखबारों की प्रसार संख्या फर्जी तरीके से बताई जा सकती है उसी तरह से टीआरपी का खेल भी चलता है । कुल मिलाकर मकसद यही है कि दर्शकों के साथ-साथ विज्ञापन दाताओं को भी भ्रमित किया जाए अब यह अलग बात है कि कुछ चैनल इसमें जल्द ही महारत हासिल कर लेते हैं और कुछ चैनल बेचारे पीछे रह जाते हैं लेकिन कुल मिलाकर उद्देश्य यही रहता है कि किसी भी तरीके से येन केन प्रकारेण टीआरपी हड़पी जाए टीआरपी के खेल में सभी तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं जिन घरों में मीटर लगे हैं उन्हें मैनेज करने से लेकर और भी जो धंधे संभव है यह सब होते हैं अब जबकि इस पूरे खेल का भंडाफोड़ पुलिस कुछ कर चुकी है इसलिए टेलीविजन मीडिया में भगदड़ की स्थिति बन गई है, जो टीआरपी का खेल खेल रहे थे वे बेनकाब हो रहे और जो टीआरपी में पिछड़ गए थे वे बढ़-चढ़कर इस पूरे मामले को एक्सपोज कर रहे हैं देखने वाली बात यही है कि आने वाले समय में टीआरपी के इस खेल पर कितनी रोक लगती है ?