भोपाल: डा. केके श्रीवास्तव, डिप्टी कमिश्नर ( ट्राइवल ) उज्जैन संभाग, आज महाप्रयाण कर गए…केके हमारे बचपन का सहपाठी था और मैं हमेशा उसे केके ही कहता था…अभी कुछ दिन पहले ही मेरी उससे बात हुई थी… फोन उठाते ही…और पत्रकार कैसे हो…भाभी बच्चे कैसे हैं…इसके साथ एक हिदायत कि, अरे भाई बदल जा… जरा संभलकर लिखाकर …अब वो पुराना ज़माना नहीं रहा…इसके साथ एक सवाल कि कैसे फोन किया…मेरे लायक कोई काम बता भाई…कोई दिक्कत तो नहीं…केके से जब भी बात करो, तो इतनी बातें हमेशा होती…और फिर इसके साथ उज्जैन कब आ रहे हो…कुल मिलाकर केके के होंठों पर हमेशा तैरती मुस्कान के भीतर अपनों दोस्तों के प्रति एक गैर जरूरी चिंता हमेशा रहती थी…हम मिले न मिले, लेकिन जब बात होती तो ऐसा लगता जैसे कल ही मिले थे…कल ही तो बात हुई थी…मैं कितनी ठसक बताऊं, पर केके हमेशा विनम्र और सहज ही रहा…हमेशा उसने ही यही जताने की कोशिश की कि, तुम सबसे खास हो…सचमुच केके तुमने देह त्यागी है, लेकिन जिस तरह से तुम मुस्कराते थे, मृत्यु एक बार तुम्हारे पास आने में डरी जरूर होगी…तुम मृत्यु से महामिलन के वक्त भी मुस्कराए जरूर होगे…तुमको नमन…विनम्र श्रद्धाजंलि….।
महेश दीक्षित