इस देश में कोरोना का इलाज ‘पापड़’ से या ‘वैक्सीन’ से?’

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अजय बोकिल

चाहे तो इसे ‘सदी का सबसे बड़ा कन्फ्यूजन’ कह लें। ‘कन्फ्यूजन’ ये कि जब देश में कोरोना इलाज के इतने देसी नुस्खे तैयार हैं तो फिर मोदी सरकार कोरोना वैक्सीन तैयार करवाने में वक्त और पैसा क्यों ‘बर्बाद’ करने में लगी है ? हमारे वैज्ञानिक क्यों अपना पसीना बहा रहे हैं? गोमूत्र से लेकर पापड़ तक की इस ‘वाइड मेडिसिनल रेंज’ के होते हुए नरेन्द्र पीएम मोदी ने सोमवार को वीडियो कांन्फ्रेंसिंग के जरिए देश में तीन कोरोना टेस्टिंग सेंटरों का फीता काटा। उन्होंने कहा कि नोएडा, मुंबई और कोलकाता में बनी ये हाईटेक लैब न केवल कोरोना से बल्कि दूसरी बीमारियों के खिलाफ जंग में भी मददगार साबित होंगी। मोदी ने देश को भरोसा दिलाया कि हमारे वैज्ञानिक कोरोना की असरदार वैक्सीिन बनाने पर तेजी से काम कर रहे हैं।

कोविड 19 के बारे में मुझ जैसे अल्पज्ञानी लोगों को समझ नहीं आया कि जब ऑलरेडी देश में तरह-तरह के कोरोना नुस्खे सुझाए और जारी किए जा रहे हैं, तब वैज्ञानिक तरीके से दवाइयां बनाने में वक्त जाया करने का क्या औचित्य? क्योंकि हमारे यहां बिना किसी प्रामाणिक शोध, अध्ययन के मात्र अंतर्ज्ञान से ही कोरोना के इतने सारे रामबाण उपाय हमारी झोली में हैं कि लगता है दुनिया भर के कोरोना दवाकांक्षी भारत में डेरा डाले होंगे। इस आस की बुनियाद में वो गांरटीड बयान और देसी उपचार प्रणालियां हैं, जिनके असर को पहले ही जान लिया गया है।

जरा इन कोरोना उपायों पर एक नजर डालें। इस फेहरिस्त में पहला नाम हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी का है। स्वामीजी ने जनता कर्फ्यू लागू होने के पहले ही ‘गोमूत्र पार्टी’ आयोजित कर हमे बता दिया था कि कोरोना वायरस केवल इसी से डरता और मरता है। स्वामीजी ने यह भी निरूपित किया कि वायरस दरअसल एक अवतार है और नाॅन वेजीटेरियनों को दंड देने के लिए प्रकट हुआ है। इस ‘वायरसासुर’ को मारने कई श्रद्धालुओं ने गोमूत्रपान भी किया, लेकिन ‘असुर’ मुआ ज्यादा शक्तिशाली साबित हुआ।

लाॅक डाउन अनलाॅक के दूसरे चरण में योग गुरू बाबा रामदेव ने कोरोनिल दवा जारी कर हमे बताया कि कोरोना की देसी दवा आ गई है। हालांकि मोदी सरकार ने इस दवा पर रोक लगा दी। इस झटके के बाद बाबा ने इसे ‘इम्युनिटी बूस्टर’ के रूप में बाजार में उतारा। अपनी प्रतिरोधक क्षमता पर संशकित लोग इसे इस्तेमाल कर भी रहे हैं। इसके पहले बाबा ने एक उपाय और बताया था कि अगर कोई अपनी नाक में सरसों का तेल डाल ले तो अति सूक्ष्म कोरोना उसके पेट में चला जाएगा। पेट में मौजूद एसिड कोरोना का एनकाउंटर कर देंगे। किस्सा खत्म ।

हमारे देसी उपायों की खूबी यह है ‍कि ये जरूरी नहीं कि वो दवा ही हो। यानी कोरोना वायरस के दमन के लिए हमे ‘भक्ति रस’ से लेकर पापड़ और आमलेट सेवन तक के खानदानी इलाज बताए गए हैं। सबसे हैरान करने वाला कोरोना ‘पापड़ोपचार’ है। मोदी सरकार में केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल का हाल में एक वीडियो वायरल हुआ। जिसमें मंत्रीजी एक निजी कंपनी के पापड़ को यह कहकर प्रमोट करते दिखे कि इस गुणकारी पापड़ को खाने से कोरोनारोधी एंटीबाॅडीज तैयार होते हैं। यानी पापड़ में डले हल्दी, काली मिर्च, दाल इत्यादि। जिस पापड़ का मंत्रीजी प्रचार कर रहे थे, वह कोरोना काल में खुद को ‘इम्युनिटी बूस्टर पापड़’ के रूप में पेश कर रहा है। वैसे भी देश में पापड़ का मार्केट करीब 1 हजार करोड़ रू. का है और हर साल पापड़ की तरह बढ़ रहा है। उधर कर्नाटक में एक कांग्रेस नेता और बेंगलुरू उल्लाल म्युनिसिपल कार्पोरेशन के काउंसलर राघवेन्द्र गट्टी ने कोरोना का ‘नशीला’ उपाय बताया।

गट्टी ने कहा कि 90 एमएल रम में एक चम्मच काली मिर्च मिलाकर अपनी उंगली से इसे हिलाएं और गटक जाएं। साथ ही इस ‘रम’ युक्त दवा के साथ दो हाफ फ्राई ऑमलेट खा लिए जाएं तो कोरोना तो क्या उसके बाप की हिम्मत नहीं है कि आपको पाॅजिटिव निकलने दे। यह बात अलग है कि डब्ल्यूएचओ पहले ही चेता चुका है कि कोई भी खाद्य पदार्थ या आहार कोरोना संक्रमण न तो रोक सकता है और न ही इसे ठीक कर सकता है। केवल इम्यून सिस्टम मजबूत कर सकता है।

मानो इतना ही काफी नहीं था। भोपाल की भाजपा सांसद सुश्री प्रज्ञा ठाकुर और प्रदेश के मंत्री विश्वास सारंग ने कोरोना का आध्यात्मिक उपाय बताया कि 10 दिन तक रोजाना शाम सात बजे से हनुमान चालीसा का पाठ करें, कोरोना निकट नहीं आएगा। जब हनुमत जाप कोरोना को मार रहा हो तो महाबली के आराध्य राम का जिक्र अनिवार्य ही है। मप्र विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने पूरी गंभीरता से बताया कि इधर अयोध्या में राम मंदिर की नींव रखी, उधर कोरोना जड़ के साथ उखड़ना शुरू। लेकिन कोरोना भगाने का सरलतम सांगीतिक उपाय हमे केन्द्रीय मंत्री और अंबेडकरवादी रामदास आठवले ने बताया। आशु कवि आठवले ने कहा कि बस आपको ‘गो कोरोना गो’ गुनगुनाना है। सरगम सुनकर ही कोरोना चलता बनेगा। यूं कोरोना प्रकोप के शैशवकाल में में खुद मोदीजी ने भी ताली-थाली पीटने जैसे मनोबलवर्द्धक उपाय बताए थे। लगता है बाद में उनका भी ‘मोहभंग’ हो गया। उधर कोरोना है कि सुरसा की तरह फैलता ही जा रहा है।

तर्क ‍िदया जा सकता है कि ये तमाम नुस्खे केवल लोगों में विश्वास जगाने, महामारी के आत्मनिर्भर इलाज को बढ़ावा देने, जो ‍िमले उसी को दवा मान लेने के मकसद से सुझाए गए हैं। इन्हें हिकारत से देखना ‘देशद्रोह’ है। केवल इसके पीछे की पवित्र भावना देखें। इनसे कोई फायदा हो न हो तो नुकसान भी क्या है?

बात सही है। ये दवा भले न हो, पर दुआ तो है। औषधिक भी और आर्थिक भी। लेकिन पेंच ये है कि कोरोना निदान के इतने बहुविध उपायों के रहते सरकार कोरोना के वैक्सीन और दवा की खोज के पीछे क्यों पड़ी हुई है? क्यों मोदीजी थालियां छोड़ ‍कोरोना टेस्टिंग सेंटर खुलवाने में लग गए हैं?
इधर जमीनी हकीकत यह है कि कोरोना रक्तबीज राक्षस की माफिक हर किसी को अपना शिकार बना रहा है। आज देश में कोरोना संक्रमितों की संख्याा करीब 15 लाख पहुंच गई है और कोरोना मौतों का आंकड़ा 33 हजार को छू रहा है। हो सकता है इन लोगों ने गोमूत्र पान न किया हो, हनुमान चालीसा पाठ में कोताही की हो फिर ‘रम’ युक्त नुस्खे के साथ आमलेट न खाया हो।

पूरी दुनिया ‘मूर्ख’ है, जो कोविड 19 की दवा और वैक्सीन की खोज में पागल हुई जा रही है। हमारी सरकार भी बार-बार बता रही है कि देसी वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ अब ट्रायल के अंतिम दौर में है। उधर विश्व स्वास्थ्यम संगठन का ध्यान हमारे देसी नुस्खों पर नहीं जा रहा है तो यह उसकी अज्ञानता और दुराग्रह है। इधर लोग भी बेचैनी के साथ यही सवाल कर रहे हैं कि कोरोना का टीका कब आएगा? गारंटीड दवा कब आएगी ? इस बारे में आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक कुमार गांगुली को उम्मीद है ‍कि कोरोना वैक्सीन साल के अंत तक आ सकती है, लेकिन इसकी पहुंच सीमित होगी। और केवल आपात प्रयोग के लिए होगी। उधर प्रधानमंत्री देश में कोरोना नियंत्रण के लिए उठाए कदमों को गिना रहे हैं। सोमवार को उन्होंने कहा कि कोरोना प्रकोप की शुरूआत में देश में जहां मात्र एक टेस्टिंग सेंटर था, वहीं आज 1300 टेस्टिंग लैब्स काम कर रही हैं। देश में पांच लाख से ज्यादा टेस्ट प्रतिदिन हो रहे हैं। मोदी ने कहा कि हमे मिलकर देश में नया हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना है। ताकि गांवों में कोरोना से लड़ाई कमजोर न पड़े। आज हमारे पास जागरूकता और साइंटिफिक डेटा की कमी नहीं है, वगैरह।

यही असल ‘कन्फ्यूजन’ है। जब पहले से हमारे पास इतने सारे देसी उपाय मौजूद हों तो यह सारी मशक्कत‍ किसलिए ? और अगर ये सब महज टोटके हैं तो इनको खाद-पानी किसलिए ?