उपचुनाव में गद्दार-गद्दार का खेल…और गद्दारों पर दांव

Akanksha
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महेश दीक्षित

मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं…तारीख की दुदुंभि भले न बजी हो…उपचुनाव का रण जीतने के लिए रण बांकुरे और सेनाएं तैनात हो चुकी हैं… और सत्ता हाथों से खिसकने से खिसियाई कांग्रेस हो या सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा दोनों गद्दार-गद्दार का दांव खेल रहे है…दोनों ओर से गद्दारों पर दांव लगाए जा रहे हैं…उपचुनाव वाले क्षेत्रों में सब तरफ गद्दार-गद्दार की गूंज सुनाई दे रही है… श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा के दामाद बने जिन 22 नेताओं को भाजपा उपचुनाव के मैदान में उतारने जा रही है, कांग्रेस और प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ उन्हें गद्दार बता रहे हैं…कहने का मतलब है कि कांग्रेस जिन नेताओं को गद्दार कह रही है… वो उपचुनाव में सत्ता बचाने के लिए भाजपा के हीरो हो गए हैं…और जो भाजपा के चाल, चरित्र और चेहरे पर थूंक रहे हैं…भाजपा से गद्दारी कर कांग्रेस से ब्याह रचा रहे हैं…कांग्रेस और कमलनाथ उन पर उपचुनाव की सवारी कर दोबारा सत्ता में लौटने का लक्ष्य साध रहे हैं…। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सहित कांग्रेस के सभी छोटे-बड़े नेता खासतौर से ग्वालियर-चंबल संभाग के 16 विधानसभा क्षेत्रों में जा-जाकर जनता के गले में यही घुट्टी उतारने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं कि श्रीमंत और उनके साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए विधायकों ने कांग्रेस और प्रदेश की जनता के साथ गद्दारी की है…कांग्रेस ने तो महाराज गद्दार हैं-को अपना चुनावी नारा, जुमला और चुनावी जयकारा ही बना लिया है…कांग्रेस की पूरी चुनावी रणनीति ‘गद्दार’ के आसपास ही आकर टिक गई है…एक ओर कांग्रेस ‘गद्दार’ को लेकर भाजपा पर आक्रामक हो रही है….तो दूसरी ओर उपचुनावी रण में श्रीमंत समर्थकों को चुनौती देने के लिए ‘गद्दारों’ पर ही भरोसा कर रही है…

कांग्रेस ने अब तक जिन 15 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं उनमें प्रेमचंद्र गुड्डू, कन्हैयालाल अग्रवाल, सुरेश राजे ऐसे नाम हैं, जो कुछ दिन पहले ही भाजपा का दामन अब निरमा सुपर जैसा सुपर और चमकीला नहीं रहा कहकर यानी भाजपा से गद्दारी करके कांग्रेस में शामिल हुए हैं…इसके साथ सत्यप्रकाश सिकरवार और फूल सिंह बरैया सहित चार नाम और ऐसे है, जिन्होंने पहले बसपा से मोहब्बत की पींगे लड़ाई और अब कांग्रेस से इलू-इलू कर रहे हैं…इन्हें कांग्रेस की भाषा में गद्दार परिभाषित नहीं करेंगे, तो फिर क्या कहेंगे…कांग्रेस को अपना हम सफर बनाने वालों में भाजपा का एक खूबसूरत चेहरा पूर्व विधायक पारूल साहू का और जुड़ गया है…बुंदेलखंड की सियासत का यह दमकीला-चमकीला चेहरा कमलनाथ की मौजदूगी में भाजपा को कोसते हुए ( गद्दारी कर) कांग्रेस का हो गया…कांग्रेस अब भाजपा के इस (गद्दार) खूबसूरत चेहरे को उपचुनाव के रण में सुरखी से श्रीमंत समर्थक (कांग्रेस के गद्दार) गोविंद राजपूत से आंखें लड़वाएगी…ऐसा लगभग सुनिश्चित है…यहां गद्दार और गद्दार के बीच चुनावी द्वंद होगा…। कहने के निहितार्थ यह हैं कि, कांग्रेस कमलनाथ की सरकार को गिराकर भाजपा के भगवा झंडे के नीचे खड़े होने वाले श्रीमंत और उनके समर्थक नेताओं को तो गद्दार की संज्ञा दे रही है…उन्हें उपचुनाव के कैंपेन में गद्दार कहकर प्रचारित कर रही है…और खुद भाजपा छोड़कर आए कई नेताओं (गद्दारों) को दोबारा सत्ता में लौटने के स्वप्न को सच करने अपना हीरो बना रही है…हालांकि राजनीति की किताबों में अपने राजनीतिक शुभ-लाभ के लिए किए जाने वाले कृत्य को चतुर सुजान की राजनीति…चाणक्य राजनीति व्याख्यायित किया गया है…खैर जो भी हो, राजनीति और युद्ध में कुछ भी नाजायज नहीं, उपचुनाव होने तक…हार-जीत का फैसला आने तक, तुम हमें गद्दार कहो…हम तुमको गद्दार कहें, क्या फर्क पड़ता है…विधानभवन पहुंचकर तो हम-तुम भाई-भाई…और हमारा-तुम्हारा कुर्ता सफेद झक हो ही जाना है…ठगाई जानी है तो भाग्य विधाता जनता…गद्दारों और गद्दारी को झेलना…नेताओं द्वारा नारों-वादों से छला जाना जनता का प्रारब्ध है…नियति है…राजनीति का प्रथम और अंतिम सत्य है…।