कल्याण जैन जुझारू और संघर्षशील राजनेता थे

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अर्जुन राठौर

इंदौर की राजनीति का इतिहास संघर्ष और जुझारू राजनेताओं से भरा रहा है ,होमी दाजी से लेकर सुरेश सेठ और यज्ञदत्त शर्मा से लेकर कल्याण जैन सहित अनेक नेताओं के चेहरे हमारे सामने आते हैं । पिछले 5 दशक में इंदौर की राजनीति का इतिहास बेहद रोचक रहा है ,और कल्याण जैन भी इंदौर की संघर्षशील राजनीति के योद्धा माने जाते थे । सड़क पर उतर कर जनता के साथ आंदोलन करने का जमाना जरूर चला गया है लेकिन कल्याण जैन सड़क की राजनीति ही करते रहे हैं उन्होंने व्यापारियों से लेकर ऑटो रिक्शा चालकों मजदूरों और फुटपाथ पर काम करने वाले लोगों तक के लिए कई बार आंदोलन किए हैं वे इंदौर से सांसद भी रहे और इसके साथ ही विधायक भी ।

इंदौर के पूर्व सांसद जुझारू समाजवादी नेता तथा देश में पहली बार छोटे दुकानदारों को संगठित कर कानूनी जंजाल से मुक्ति दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले कल्याण जैन ने आज 13 जुलाई को 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली।  89 साल की उम्र में पूर्व सांसद व समाजवादी नेता कल्याण जैन ने दुनिया को अलविदा कह दिया । हालांकि लंबे समय से दादा अस्वस्थ भी चल रहे थे इसके बावजूद वे कभी कभार सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखाई दे जाते थे पिछले दिनों अभ्यास मंडल की व्याख्यानमाला में वे आए थे और स्वस्थ भी दिखाई दे रहे थे । कोरोना काल के पहले कल्याण दादा घमासान डॉट कॉम के प्रेस कंपलेक्स स्थित कार्यालय के स्टूडियो में एक इंटरव्यू के लिए आए थे इसमें मैंने उनका लंबा साक्षात्कार लिया था जिसमें उन्होंने अपने जीवन की कई घटनाओं का उल्लेख किया था वे मुलायम सिंह यादव के अत्यंत करीबी माने जाते थे ।

किसी ने उनके बारे में यह पंक्तियां बहुत सही लिखी है समाजवादी विचारधारा में अटूट निष्ठा, गैर बराबरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ असीम गुस्सा और अत्यंत गरीब को भी न्याय दिलाने की भरसक कोशिश के गुण कल्याण जैन को एक अलग राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं, 89 साल की उम्र के करीब पहुंच रहे कल्याण दादा के राजनीतिक जीवन की आधी सदी से ज्यादा बीत चुकी है। सतत धारावाहिकता के चलते उन्होने अपने संघर्षों में ना कभी साधनों की चिंता की और ना संख्या बल की।

गांधी जी के इस वाक्य को कि समाज परिवर्तन की लड़ाई लड़ने वालों को मान, अपमान और तिरस्कार की चिंता किए बगैर अपनी राह पर चलते रहना चाहिए। इसी को उन्होंने अपना ध्येय वाक्य बनाकर 1960 में संघर्ष की जो राह पकड़ी तो वह आजीवन जारी रही। दादा इंदौर की राजनीति में एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे जिन्होंने नगरनिगम से लेकर संसद तक इंदौर का प्रतिनिधित्व किया ।