अदिति सिंह भदौरिया।
इस कठिन समय में जब हर कोई एक दूसरे का साथ देना चाहता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सच में अपने समय को हमारे लिए निछावर करना चाहते हैं और वह हमारे शिक्षक आजकल जब बच्चे स्कूल से , शिक्षा से थोड़े हैं तो शैक्षणिक संस्थाओं ने यह बहुत ही अच्छा विकल्प निकाला है ऑनलाइन क्लासेस का परंतु न जाने क्यों ऑनलाइन क्लासेज बंद हो गए हैं मैं सोच रही थी कि आखिर क्या कारण हो सकता है कि ऑनलाइन क्लासेस बंद हुई तो पता चला कि कुछ अभिभावकों को थोड़ी सी दिक्कत है कि उनके बच्चे काफी घंटे तक मोबाइल या लैपटॉप के सामने बैठे रहे जो उनकी सोच है वह बिल्कुल सही भी है कि छोटे बच्चों के लिए कितने ज्यादा समय तक मोबाइल , टैबलेट या लैपटॉप के सामने बैठना उनकी आंखों के लिए हानिकारक हो सकता है परंतु क्या यह इतनी बड़ी समस्या है जिसका हम हल न ढूँढ पाए ? क्यों न इस समस्या का हल कुछ इस तरह ढूंढा जाए जिसमें कि अभिभावक बच्चे और शिक्षक तीनों की खुशी हो तो क्या ऐसा नहीं हो सकता इस समय की अवधि थोड़ा सी कम किया जाए ?
हां छोटे बच्चे जो कि प्रथम एवं फर्स्ट स्टैंडर्ड कहते हैं उन बच्चों से छोटी क्लासेस के जो छोटे बच्चे हैं उनकी क्लास बंद भी कर दी जाए तो समझा जा सकता है, क्योंकि वह बच्चे सच में बहुत छोटे हैं उनके लिए ज्यादा मोबाइल का उपयोग हानिकारक है, परन्तु हमें उससे बड़े बच्चों के बारे में भी सोचना चाहिए । हर क्लास की समय अवधि कम किया जाए और हर एक दो कक्षाओं के बीच में थोड़ा 20 मिनट तक हो सके शिक्षक और बच्चे दोनों ही अपने आप को थोड़ा सा संतुलन बना कर रख सके शिक्षकों को भी समय मिले और जो बच्चे कुछ सिखाना चाहते हैं कि वह भी सीख सकें ।
खास तौर से सबसे ज्यादा परेशानी अगर किसी को उठानी पड़ रही है तो वह है बच्चे ना तो फिर बाहर जा पा रहे हैं और ना ही उनको घर में ऐसा माहौल नहीं पा रहा है जिसमें वह ऐसे अपने मनोरंजन ओर पढ़ाई दोंनो में तालमेल रख सकें । मैं पूरी तरह से इस पक्ष में हूं कि बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस में पड़ना चाहिए क्योंकि अध्यापक अपना समय इतनी मुश्किल समय में अपने लिए अपना समय काट कर हमारे बच्चों के भविष्य के लिए समय निकाल रहे हैं तो सोचे कितना बड़ा बलिदान वो लोग दे रहे हैं ऐसा नहीं है कि बच्चे खुश नहीं हैं बच्चे भी ऑनलाइन थे उतने ही संतुष्ट हैं जितने कि अध्यापक तो फिर समस्या कहाँ आ रही है ?
क्या हम बच्चों को उचित समय,दें पा रहे है, हम क्या कर रहे है उनके विकास के लिए, हम सब इस बात,का जवाब जानते है, लेकिन इसमें अभिभावकों का दोष नहीं है, बस समय ही ऐसा चल रहा है, ओर नुकसान हो रहा है बच्चों का ।अभिभावक लोगों के लिए जो यह सोचते हैं कितने घंटे बचे मोबाइल पर या लैपटॉप पर कैसे मानती हूं कि बच्चों की आंखों के लिए उनके मानसिक विकास के लिए कहीं ना कहीं थोड़ा कठिन है परंतु इसके बीच का रास्ता नहीं क्यों नहीं हम मिल कर निकालें कैसे चेंज जिससे कि बच्चों के लिए भी आसानी हो और शिक्षकों का भी मान रखा जा सकें। मैं शिक्षकों का बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहती हूं जो कि इतनी कठिन समय में हमारे बच्चों के बारे में सोच कर आगे बढ़ना चाहते हैं।
हर अभिभावक अपने बच्चों का भला चाहता है, मैं आशा करती हूं कि मेरे इस लेख से कुछ जागरुकता आएगी और कहीं ना कहीं समय को थोड़ा सा हम तबदील करते हुए ऑनलाइन क्लासेज को बच्चों के लिए शुरू कर पाएँ ।आशा है करती जो कदम उठाया जाए उसमें शिक्षक, बच्चों एवं अभिभावकों की भलाई ओर तालमेल भी हो।