आज है देवशयनी एकादशी आज से नारायण 4 महीने तक विश्राम करेंगे

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10 जुलाई रविवार के दिन देव शयनी एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। यहीं से ज्योतिष के समस्त मंगल मुहूर्त समाप्त होंगे, सन्यासियों का चातुर्मास प्रारंभ होगा और भगवान विष्णु शयन के लिए पाताल गमन करेंगे। हरि शयनी एकादशी 10 जुलाई से लेकर कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी 4 नवंबर पर्यंत भगवान का शयन काल रहेगा। इस 4 माह की अवधि में चातुर्मास आदि व्रत नियमों का पालन करते हुए नित्य विष्णु स्त्रोत सहित विष्णु उपासना का विधान माना गया है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर २६ हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। ज्योतिष की गणना के अनुसार सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये महत्वपूर्ण एकादशी आती है।इसी दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं ,और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

आज से शुभमुहूर्त होंगे समाप्त

पुराणों में वर्णन है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यंत (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को ‘देवशयनी’ तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, ग्रहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। इस प्रकार से इस वर्ष 10 जुलाई रविवार के दिन से सभी प्रकार के मंगल मुहूर्त समाप्त हो जाएंगे जो 4 माह बाद देवउठनी एकादशी के पश्चात पुनः प्रारंभ होंगे। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है।

मान्यताएं हैं कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से विष्णु भगवान चार मास तक क्षीरसागर में शयन करते हैं, और कार्तिक शुक्ल एकादशी को अपनी शक्तियों सहित जागृत होते हैं। पौराणिक मत हैं कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस महा दान से भगवान ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने वर माँगा कि प्रभु आप मेरे महल में नित्य रहें।एकादशी से भगवान विष्णु जी द्वारा प्रदत्त वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह पाताल में निवास करते हैं,ऐसी मान्यताएं हैं।

विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन मिलता है।उल्लेख हैं कि इस व्रत से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष साधन चतुष्टय की प्राप्ति होती है।

देवशयनी एकादशी शुभ मुहूर्त

देवशयनी एकादशी तिथि 09 जुलाई को शाम 04 बजकर 39 मिनट से होकर 10 जुलाई को दोपहर 02 बजकर 13 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी का व्रत 10 जुलाई को रखा जाएगा। वहीं इस व्रत के पारण का समय 11 जुलाई को सुबह 5 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 36 मिनट तक है।

ऐसे करवाएं हरि शयन

देवशयनी एकादशी को अन्य एकादशीयों की भांति कृत्य करने के पश्चात देव शयन नामक पावन कृत्य भी करना चाहिए।देवशयनी एकादशी के दिन प्रातः नित्य कर्मों से निवर्त होकर, स्नान कर पवित्र गंगा जल से घर वेष्टित करें। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थल पर प्रभु श्री हरि विष्णु की सोने, चाँदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात उसका षोड्शोपचार सहित पूजन करें। इसके अंतर्गत भगवान विष्णु के विग्रह को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीतांबर आदि से विभूषित करें।एकादशी व्रत कथा का श्रवण करे या स्वयं ही यथाशक्ति द्वादशक्षरी मन्त्र का जप करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद आरती कर प्रसाद वितरण करें। अंत में रेश्मी पीत वस्त्रों से ढँके गद्दे-तकिए वाली शैया पर श्री विष्णु को शयन कराना चाहिए।

10 जुलाई से चातुर्मास भी

देवशयनी एकादशी के दिन से चातुर्मास का भी प्रारंभ हो जाता है जो देवप्रबोधिनी एकादशी तक 4 माह का कालखंड माना गया है। ईश वंदना का विशेष पर्व है- चातुर्मास। हिंदू धर्म के अलावा जैन धर्म में भी चातुर्मास विशिष्ट पर्व माना गया है। यह चार माह साधना एवं उपासना की दृष्टि से महत्वपूर्ण माने गए हैं, जिसमें संकल्प लेकर और एक स्थान पर रुक कर विशिष्ट साधना की जाती है। चातुर्मास में उपवास का विशेष महत्व है। जो व्यक्ति इन 4 माह में उपवास रखता है उसके समस्त मनोरथ श्री हरि की कृपा से पूर्ण होते हैं। प्राचीन काल में जब वर्षा का अतिरेक होता था तब इस अवधि में साधु संत एक स्थान पर एकत्रित होकर इस समयावधि का लाभ उठाते हुए साधना उपासना संपन्न करते थे ,यह अवधि चातुर्मास कहलाती थी। उपवास के अतिरिक्त, पृथ्वी पर शयन करना, ब्रम्हचर्य का पालन करना, तेल का त्याग करना, दूध – दही का त्याग करना, मांस – मदिरा का सेवन नहीं करना चातुर्मास में अत्यंत आवश्यक है।

चातुर्मास के माह

आषाढ़ माह में देवशयनी एकादशी से लेकर आषाढ़ पूर्णिमा तक 6 तिथियां, श्रावण माह में पूरा महीना यानी 30 तिथियां, भाद्रपद माह में पूरा महीना यानी 30 तिथियां, अश्विन माह: पूरा महीना यानी 30 तिथियां, कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी तक, उक्त तिथियां चातुर्मास के अंतर्गत आती हैं।