बांग्लादेश में हिन्दुओं की दुर्दशा पर भारत ने क्यों कड़ा कदम नहीं उठाया…अभिनन्दन को सुरसा के मुंह से निकाल लाने वाली सियासत ने क्यों नहीं कुछ फरमाया…चुनाव बाद कि परिस्थिति का नतीजा कुछ समझ आया…आपके मतों ने किस स्तर पर किसको कितना कितना जिताया…कभी पाक में घुसकर एयर स्ट्राइक करने वाला भारत अपनी कूटनीतिक व्यूहरचना पर अब मौन है…जानते हो इस सारे घटनाक्रमों की वजह कौन है…हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा , बहन – बेटियों का शील भंग हो रहा , घर – गृहस्थी का सामान आग के हवाले हो रहा , अपनी जान बचाने के लिए हिन्दू इधर उधर खो रहा…दुनिया में अपनी बड़ी ताकत रखने वालों के साथ ये क्या हो रहा…
दुनिया भर से प्रतिक्रियाएं आ रही मगर हम फूँक फूँक कर कदम रख रहे हैं…नफरत की इस परोसगारी में कड़वापन घुल गया जिसका स्वाद चख रहे हैं…मोदी फेक्टर यदि पूरी ताकत के साथ स्वतन्त्र होता न तो बांग्लादेश में भी तिरंगा लहराता और उग्रवादी उसको सेल्यूट करके जाता…जैसे यूक्रेन में रूस जैसे शक्तिशाली ने भी भारत को सम्मान दिया वैसा ही इधर भी हो जाता…हमारा मुखिया दुनिया में तो आज भी बादशाह है मगर घर के मतों से परास्त हो गया…अपनी ताकत पर भरोसा तो खूब है मगर शिखर पर पहुँचने के पहले ही सूर्यास्त हो गया…जिम्मेदार कोई और नहीं वो विभाजित मतदाता है जिसने जाति – धर्म और निजी सोच के आधार पर फैसला किया…परिणाम के नाम पर विखण्डित बहुमत का ढकोसला दिया…जब अपने देश का बंगाल ही अपना नहीं हो पा रहा तो फिर उसकी कैसे सोचें जो धार्मिक कट्टरता का हिस्सा है…
पाक व बांग्लादेश हमारे ऐसे दो पड़ौसी दुष्ट हैं जो कभी न खत्म होने वाला किस्सा है…जब भी देश को अस्थिर करना हो तो कश्मीर में आतंक मचाया जाता है…बांग्लादेश की सीमा पर घुसपैठ के जरिये भारत में लँगूर नचाया जाता है…जिनका दाना पानी तक हमारी कृपा का मोहताज है वो धर्म की अंधी आंधी में बह रहे हैं…वर्षों से मुल्क की तरक्की के सहभागियों से वतन छोड़ने हेतु कह रहे हैं…मंदिरों को क्षतिग्रस्त करके अपने साफ मंसूबे बताने वाले कौन हैं ये तो जान ही गए…ईद पर गले लगाने और दुआ पहुँचाने वाले ही दुश्मन बने है अब ये मान ही गए…सिर्फ दंगों से ही मुल्क नहीं चलता इसको स्वीकारो…विकास के सहयोगियों को जेहादी मानकर लगातार मत मारो…पाक ने दुश्मनी की आग में वतन फूंका तो आटे – दाल के भाव याद आ गए…हिंसक वारदातों को अंजाम देने वालों को उनके ही हथियार खा गए…जिनको पनाह देते रहे तुम मुल्क में वो किसी के वफादार नही हो पाते हैं…
बारूद के ढेर पर बैठकर एक चिंगारी से वो जिस्म उड़ाते हैं…जिस किसी ने भी नफरत के माध्यम से हिंसा को अपनाया…उसी हिंसकवृत्ति के आगोश में आकर वो कहीं का नहीं रह पाया…अतीत के इतिहास को उठाकर देखो ये आंधियां किसी का इंतजार नहीं करती…जो चपेट में आ जाता है इसके वो उसकी मौत का भी श्रृंगार नहीं करती…हिन्दुओं की सहिष्णुता को कायरता मत मानना…राम के धनुष और परशुराम के फरसे की ताकत को पहचानना…वक्त किसी का एक सा नहीं होता…हंसते हुए जाने वाला आता है जब रोता… अपनो के गम में अपना ही आंखे भिगोता…स्वयं भस्म हो जाता है वो जो नफरत के बीज बोता…बांग्लादेश में हिंदुओं की हालत पर कुछ नहीं कर पाने वाले की विवशता को समझो उसका भी मन दुखता है…पानी की तलप में मौत का आलिंगन हो जाता है प्यासे का कण्ठ हरदम सुखता है…सत्ता के गलियारे में सलीके की राह नहीं होती…बहुत कम होते हैं जिनकी कुर्सी पर बैठकर वतनपरस्त चाह नहीं होती…अंकुश की बेड़ियों से बांधने वाले भी हम ही हैं इसलिए दर्द को महसूस करो…जो काम की लगन से तरक्की का बीजारोपण करे उसको गद्दी से कभी मत महफ़ूज करो ।