जिनको गोद में खेलते हुए देखा, उनके पैर नहीं पड़ सकता…!

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अजय राठौर को अगर इंदौर की राजनीति का संत कहें तो कोई बड़ी बात नहीं। वो राजनीति में नहीं आना चाहते थे, उनकी खेलों में रुचि थी। दोस्तों के कहने पर छात्र राजनीति में आए। पहले क्रिश्चियन कॉलेज के अध्यक्ष बने इसके बाद जब देवी अहल्या विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष चुनाव लडऩे की बात आई, तो 26 मई 1977 को केजी मिश्रा और चमकोरसिंह उनके सियागंज स्थित निवास पर पहुंचे। पहले वे चुनाव लडऩे से मना करने लगे। फिर कहने लगे कि मैं खेल संगठनों में सक्रिय होना चाहता हूं। जैसे-तैसे वे चुनाव लडऩे को तैयार हुए। केके मिश्रा उनको लेकर कोठारी मार्केट के मालवा स्टूडियो पर पहुंचे, जहां रघुनाथ शिवनेकर ने उनका फोटो सेशन किया। चुनाव लड़े, जीत गए। इसके बाद 1983 में महेश जोशी ने उन्हें पार्षद का चुनाव लड़वाया। पूरी ईमानदारी के साथ काम किया। राजनीतिक जीवन में माधवराव सिंधिया उनके राजनीतिक गुरु बने। सिंधिया उन्हें अजय भाई कहकर पुकारते थे। सिंधिया की तरह ही वे सादगी के साथ काला चश्मा पहनकर अपने सफेद स्कूटर पर पूरा शहर नाप लेते थे।
विधानसभा दो से कैलाश विजयवर्गीय के सामने चुनाव लड़े। उनको हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने धन बल और बाहुबल का इस्तेमाल करने से साफ मना कर दिया। मेरे कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं, मैं उनके भरोसे ही चुनाव लड़ रहा हूं। इसके बाद खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष बने। एक बार इंदौर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष भी बने। माधवराव सिंधिया की मौत के बाद वे लम्बे समय तक गुमसुम रहने लगे थे। ज्योति सिंधिया राजनीति में सक्रिय हुए। अजय एक बार उनसे मिलने भी पहुंचे। जब देखा कि ज्योति सिंधिया से बड़ी उम्र के नेता उनके पैर पड़ रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि मुझसे ऐसा नहीं हो पाएगा। मैंने तो कभी किसी नेता के पैर नहीं पड़े। दोस्तों, शुभचिंतकों में वो अ”ाू भैया के रूप में प्रसिद्ध रहे। गोविंद खादीवाला के रीगल तिराहे स्थित पेट्रोल पंप पर उनकी बैठक हुआ करती थी। वहां मिलने आने वाले हर किसी शख्स से कहते थे- कैसे हो भाई, क्या चल रहा है, आधा कप चाय जरूर पीते हैं। सादगी पसंद अजय राठौर ने अपनी शादी में भी किसी को नहीं बुलाया। जब उनसे पूछा कि हमें क्यों नहीं बुलाया, तो कहने लगे ये मेरा निजी मामला है। मैं दिखावे में विश्वास नहीं करता। चाहता तो हजारों लोगों को बुला लेता।

अप्सरा होटल की जगह मैं किसी बड़े मैदान में शादी समारोह कर सकता था, लेकिन मैंने रिश्तेदार भी गिनती के बुलाए। ज्योति सिंधिया के सक्रिय होने के बाद अजय ने राजनीति का तरीका बदला। वो शहर कांग्रेस के कार्यक्रम में जाते थे। सबके सुख-दु:ख में शामिल होते थे। जिसकी जितनी मदद हो पाती थी, करते थे। वे दिग्विजयसिंह से लेकर किसी भी दूसरे गुट के नेता का पल्लू पकड़ सकते थे, लेकिन माधवराव सिंधिया के बाद उनके दिमाग में कोई और नेता नहीं घुस पाया। बोलने लगे थे कि मेरी राजनीति का तरीका मैं नहीं बदलूंगा। दिल्ली, भोपाल जाकर नेताओं के पैर पड़कर कोई पद नहीं लेना चाहता। उनके राजू चौहान जैसे सहित कई कट्टर समर्थकों को साफ कह दिया कि आप अपनी राजनीति अपने हिसाब से कर सकते हो। मेरे भरोसे मत रहना। सैकड़ों बार उनसे खादीवाला पंप पर मुलाकात होती थी। एक बार उनसे भाजपा ज्वाइन करने को लेकर बात हुई, तो कहने लगे ऐसा कभी नहीं करूंगा। माधवराव सिंधिया ने मुझे काफी इ”ात दिलाई। कांग्रेस के विचारों की राजनीति करना मुझे पसंद है। भाजपा के नेता भी उनसे मिलते थे और कहते थे कि आप तो जो सादगी पसंद राजनीति करते हो, आपकी जगह कांग्रेस में नहीं भाजपा में है, तो वे साफ मना कर देते थे। ऐसा कोई समारोह नहीं होता था, जहां अजय राठौर का सुंदर और मुस्कुराता चेहरा न दिखाई दे। कांग्रेस के हर कार्यक्रम में जाते थे और एक-एक कार्यकर्ता से हाथ मिलाते थे। बड़े नेताओं के हाथ जोड़ लेते थे, लेकिन पैर किसी के नहीं पड़ते थे। राठौर समाज के समाजसेवी रतनसिंह राठौर के सगे साले अजय ने कभी समाज में भी कोई दखलंदाजी नहीं की। हां, मदद जरूर की है। माधवराव सिंधिया के साथ राजनीति करते वक्त कभी बैनर, पोस्टर, और होर्डिंग्स लगाकर शक्ति प्रदर्शन नहीं किया। कोरोना काल में भी लोगों से फोन पर बात करते थे।

अजय राठौर के भतीजे अजीत और जीत राठौर के इलाज के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन दोनों का बीस दिन के अंतराल में ही कोरोना से निधन हो गया। उसी दौरान वे खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए। एक बार भर्ती हुए, ठीक होकर घर चले गए। दूसरी बार भर्ती हुए, तो उनके फेफड़ों में नब्बे फीसदी इंफेक्शन था। डीएनएस अस्पताल के डॉ. राजेश जैन बताते हैं कि उनको बचाने के तमाम प्रयास किए गए, लेकिन वे नहीं बच सके। कल दोपहर में भी जब उनके निधन की खबर सोशल मीडिया पर चली, तब अस्पताल के डॉक्टर एक बार पंपिंग करके उनकी सांसें ले आए थे, लेकिन कुछ देर बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया। अजय राठौर यानी सबके अ”ाू भैया का वो चेहरा और सादगी हमेशा याद रहेगी। आज के समय में यदि ये कह दें कि उनके जैसा नेता अब कोई नहीं बचा, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। उनकी ईमानदारी पर कभी किसी नेता ने शक नहीं किया। वो संयुक्त परिवार में रहते थे और हमेशा एक बात और कहते थे कि जीवन में जरूरतें कितनी होती हैं, क्यों गलत काम करके नेता खुश होते हैं। लाखों-करोड़ों रुपए लगाकर चुनाव लड़ते हैं, इसलिए अब मैं सिर्फ कार्यकर्ता के तौर पर काम करता रहूंगा। अजय राठौर हमेशा इस बात के लिए भी याद रखे जाएंगे कि उनके सिद्धांतों के कारण वे आगे राजनीति नहीं कर पाए, पर खुश रहते थे कि मैं जैसा हूं, वैसा हूं। मेरे शुभचिंतकों में कभी कोई कमी नहीं आई है।

राजेश राठौर