-जयराम शुक्ल
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने अखबारों के पहले पन्ने पर इश्तहार न दिए होते तो अपन भी इस परम विद्वान राजपुरुष को भूले ही हुए थे। यह पीव्ही नरसिंह राव साहब की जन्मशताब्दी का वर्ष है।
वैश्विक क्षितिज के जिस मुकाम पर आज हम पहुँचे हैं उसके मानचित्र का रेखांकन बतौर प्रधानमंत्री राव साहब ने ही किया था..। वे कांग्रेस के योग्यतम व विद्वान नेताओं में से एक थे। यह बात अलग है कि जीवन के उत्तरार्द्ध में वे ‘अपनों’ के बीच में भी गैरों की भाँति रहे।
उम्मीद थी कि कांग्रेस पार्टी अपने इस महान नेता को उनकी जन्मशती पर याद करेगी, लेकिन जिस नेतृत्व के प्रकोप के चलते राव साहब को दिल्ली में यमुना तीरे दो गज जमीन भी मयस्सर नहीं हुई उस नेतृत्व के रहते पार्टी के भीतर यह सोचना भी अपराध ही समझिए।
बहरहाल ‘वो लोग’ तो याद करेंगे नहीं,चलो अपन ही नमन कर लें..।
अब जबकि राममंदिर निर्माण का पथ प्रशस्त हो चुका है तो यह भी जान लें कि..
अयोध्या में राममंदिर बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए विवादित ढ़ाचा ढहाने को यदि “श्रेय” माना जाए तो इसके असली हकदार स्वर्गीय पीवी नरसिंहाराव हैं।
पत्रकार कुलदीप नैय्यर ‘बियांड द लाइन्स’ में लिखते हैं- “तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीराव को कारसेवकों के अयोध्या प्रस्थान और उनकी योजना की न सिर्फ पल-पल की जानकारी थी, इस विध्वंस में उनकी मिली भगत भी थी।
कारसेवक मस्जिद गिराने लगे तो वे पूजा-पाठ करने लगे और ढाँचे के पूरा ढह जाने के बाद ही पूजा से उठे। नैय्यर लिखते हैं कि सोशलिस्ट नेता मधु लिमए ने मुझे बताया था कि पूजा के दौरान राव के एक सहयोगी ने उनके कान में फुस-फुसाकर कहा था कि ढाँचा गिराया जा चुका है। इसके बाद जल्दी ही पूजा खत्म हो गई।”
अपनी आटोबायोग्राफी में नैय्यर साहब यह बात दर्ज करते हैं कि राव सरकार के गृहमंत्री बूटा सिंह ने मुझसे कहा था कि- अगर वे विवादित जगह पर राम मंदिर नहीं बनवा पाए तो वे सच्चे सिख हो ही नहीं सकते।
भगवान राम की जन्मभूमि से कलंकित ढ़ांचे को सदैव के लिए धूलधूसरित करने की कामना रखने वाले प्रधानमंत्री नरसिंह राव की इच्छाशक्ति और उनके गृहमंत्री बूटा सिंह का संकल्प प्रणम्य और स्मरणीय है..।
28 जून से देश के इस महान नेता का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हुआ है आइए उन्हें नमन करें..।