घुमक्कड़ गिरीश सारस्वत तथा श्रीकांत कलमकर द्वारा
तीसरी किश्त (पाचंवा-छठा दिन)
यमुनोत्री मंदिर दर्शन के लिए जाने को रद्द करके,नीचे से ही दर्शन करके, आगे बढने का निर्णय लिया हमने। दरअसल अभी बहुत यात्रा बाकी थी और हम अब अपनी उर्जा को बचा कर रखना चाहते थे। गंगोत्री-यमुनोत्री के ख़तरनाक रास्तो की यात्रा के बाद, हम निश्चित थे की, कठिन रास्ते अब खत्म हो गए,कम से कम,साथ साथ चलती गहरी खाई और गंगा-यमुना के खतरनाक बहाव से,तो अब मुक्त हो गए परंतु यह खुशफहमी,कुछ ही देर रही। उतराखण्ड से हिमाचल का यह रास्ता बढा ही खुबसूरत है ,चीड देवदार के सुंदर पेड़ और उनके बीच में हरी हरी घास के खुबसूरत मैदान और खेत,सबसे बढ कर इन पहाड़ी पेडो और वनस्पतियों से आती भीनी भीनी खुशबु का जादू ही कुछ और था।
शिमला से करीब १०० किमी दूर से, निकलते हुए,हम पहुचे उतरी हिमाचल के,एक खुबसूरत और बड़े शहर रामपुर,परंतु इस रामपुर की यात्रा के,आखरी २६ km ने,हमें दादी नानी याद् करा दी,उस पथरीले कच्चे रास्ते पर,हम दो ही यात्री थे।आगे पीछे दूर दूर तक,कोई नहीं, समझ ही नहीं आ रहा था,की हम सही रास्ते पर है भी या नहीं,क्योकि इस बार भी हम गूगल के बताये रास्ते पर ही थे।पीछे आ रही बस भी,पता नहीं कब रास्ता बदल कर गायब हो गई,कुछ पता ही नहीं चला,बड़ी मुश्किल से राम राम करते हुए,हमे एक छोटा सा गाव मिला,जहा लोगो ने बताया की बस चलते रहो, रामपुर पहुच ही जाओगे,और हम शाम होते होते पहुच ही गए,आज के सफर का,यह पडाव,ताउम्र याद रहेगा।इस दौरान जिन गांवों से,हम निकले वह थे,पुरोला,मोरी,हनोल,तिउनी,सोलंग, स्नैल,हाटकोटी,रोहडू,सुम्मेकोट,दलोग,कुर्नु,……आदि।
रामपुर के पास ही सतलुज नदी पर,बहुत बढा बांध बना हुआ है,पावर प्रोजेक्ट भी है,अतः हिमाचल का यह एक बडा व्यापारिक शहर है,वैसी ही चहलपहल भी यहां है।
रामपुर की भीडभाड हम सुनसान रास्तो पर, भटकने वालो को कुछ रास नहीं आई,सो थकान के बावजूद हमने आगे बढने का निर्णय लिया यद्यपि यह काफी रिस्की था, क्योकि आगे का रास्ता भी कुछ क्लियर नहीं था,परंतु हम बढ चले और अँधेरा घिरते घिरते पहुच ही गए,एक छोटे से खुबसूरत गांव में,नाम था सरहन सेवफल,आडू ,खुबानी के बगीचों से घिरा छोटा सा गाँव,जिसकी जन और पहचान था माँ काली का भव्य शानदार और विशाल मंदिर।यह हिमाचल प्रदेश के,पुर्व मुख्यमंत्री, पुर्व राजा और कांग्रेस के बडे नेता, वीरभद्र सिंग की कुलदेवी का मंदिर है। अतः हिमाचल की पहाड़ी वास्तुकला,सम्पन्नता,लकडी की कारीगरी की अद्भुत कला का शानदार नमूना है यह मंदिर।देवदार ,की लकड़ी और स्लेट की दीवारों और छतो वाला यह मंदिर पहाडी वास्तुकला और सादगी का खुबसूरत नमूना था हिमाचल में देखे मंदिरों में सबसे भव्य है।
सारी थकान भूल कर हमने अँधेरा घिरने से पहले, मंदिर का एक चक्कर लगाना जरुरी समझा।
मंदिर में प्रार्थना,शांति पूर्वक बैठ कर माता के दर्शन,आरती,ओह क्या आनंद है,दिन भर की वो कमर तोडू यात्रा तो हम भूल ही चुके थे,पट बंद होने तक हम मंदिर के प्रांगण में ही डटे रहे।उठकर जाने का दिल ही नहीं कर रहा था ।मंदिर से बाहर आ कर उस छोटे से गावं में,जहा के छोटे से बाजार में,हम दोनों के अलावा,कुछ बंगाली पर्यटक थे और थे ढेर सारे विदेशी पर्यटक,पता नहीं ये विदेशी लोग कहा से,ऐसे सारी अच्छी जगह पहुच जाते है | पर यहाँ सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हम उस ढाबा चलाने वाली महिला से,रात के ९ बजे रहे थे ,कड़ाके की ठण्ड में भी वो, इतनी फुर्ती से काम कर थी थी की पूछो मत,वह हमारा आर्डर पूरा कर रही थी,बर्तन साफ कर रही थी,बर्तन जमा रही थी,अपने परिवार का शाम का खाना बना रही थी,अगले दिन के लिए सब्जीया काट रही थी,और उसका पति बाहर आराम से बैठा हुक्का गुढगुढ़ा रहा था ।बडा अजीब लगा, उस से बातचीत में पता लगा की,यह उसका रोज का रूटीन था।वह सुबह 5 से रात 11 तक,यु ही लगातार काम में लगी रहती हे। महिलाओ की यह स्थिति,कमोबेश हमने पुरे हिमाचल और उत्तराखंड में देखी।
अगली सुबह फिर एक बार माता के दर्शन कर के हम चल पड़े,चितकुल के लिए,आज हम बड़े रिलेक्स थे क्योंकि.. हमे आज सिर्फ 135km चलना था, पर यह 135 km इतने भारी पड़े की हम शाम तक चलने के बाद भी चितकुल नहीं पहुच सके,उन उबड़ खाबड़ और खतरनक रास्तो पर हमारे सारे टूल्स और तकनिकी ज्ञान की परीक्षा हो गई,लगातार दो..तीन बार के पंक्चर,जो की हमने ही बनाये,उस जंगल और पहाड़ों के बीच, इस कारण हमें चितकुल से 10 km पहले एक छोटे से गांव रकछिम में एक किसान के घर में रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा।किसान ने हमें अपना एक कमरा दे दिया,एक बाइक वही छोड़ कर हम चितकुल पहुचे गये।भारत-चीन सीमा का,यह आखिरी गांव था,बड़ी ही सुंदर घाटी में बसा,एक छोटा सा गांव,जितने घर उतने ही होटल।एक घंटा यहां बिता कर,बढती ठण्ड से घबरा कर,हम सुनसान हो चले, इस गांव से अपने ठिकाने तक आ गए,खाने के लिए, हमें संयोग से एक बड़ा अच्छा होटल मिल गया,वर्ना हम तो अपने सेव और बिस्कुट खा कर सोने की तेयारी में थे।