ये है बंगाली चौराहा की IIT की तकनीकी रिपोर्ट, ऐसी है पिपलियाहाना से तुलना

Ayushi
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bangali square

आईआईटी ने तीन ऑप्शन दिए हैं। उसमें दो रोटरी के ऑप्शन है और एक बगैर रोटरी के लंबे स्पान का विकल्प है। इसमें बड़ी रोटरी का स्थान ही हमारे पास में चौराहे पर उपलब्ध नहीं है और वह प्रयोग बनते बनते में ही फेल हुआ। दूसरे दिन ही हमें उस रोटरी को हटाना पड़ा। दूसरी रोटरी जो 47 – 50 फुट व्यास की गोलाइ की है। वह रोटरी भी काम की नहीं रही। क्योंकि उसके अंदर भी टर्निंग के अंदर, वाहनों को मोड़ने में बहुत तकलीफ हुई। जबकि अभी स्कूल की बसों का आवागमन शहर मे शुरू ही नहीं हुआ है।(इस स्थान से 500 के लगभग)

तीसरा विकल्प लोगों को पुर्ण बताया ही नहीं। उन्होंने उसमें केवल जो एक लाइन लिखी है कि,रात को जब सिग्नल नहीं चलेग, तब खतरा रहेगा। और उस खतरे को ही उन्होंने लोगों को और शायद जनप्रतीनीधीयो को भी यही बताया की तीसरा विकल्प खतरनाक है।तीसरा विकल्प खतरनाक क्यों है यह नहीं बताया और यह बात तो दुनिया के सारे चौराहे पर रहती है कि जब रात को सिंगन्ल नहीं चलता है तब यलो लाइट ब्लिंक होती रहती है।

अगर वहां चालक दोनों दिशाओं से तेज गति से आएगे और दाएं बाएं देखे बगैर रोड क्रॉस कर, तो दुर्घटना की संभावना रहती है और रहेगी। इसके लिए वह जो विकल्प है उसको खतरनाक बता देना ,उसकी बात ही नहीं करना ,यह बहुत ही गलत है। ओरतथ्यो से खिलवाड़ हे। और मुझे लगता है कि विभाग ने तीसरे विकल्प को जनता के सामने और राजनीतिक नेतृत्व के सामने रखा ही नहीं। केवल खतरा है, खतरा है करके ,उसको छुपाए रखा।

पिपल्याहाना से जहां तक तुलना का सवाल है –

१ पिपल्याहाना पुल में, पिलर से पीलर की दूरी 30 मीटर से ज्यादा होकर ,जो जगह पुरी उपलब्ध है वह 30 -30 मीटर की दोनों तरफ खुली है।और उसकी वजह से मोड, टर्निंग सुगम बना हे, इसलिए उन्होंने रोटरी को बनाया है जो छोटी रोटरी आईआइटी ने विकल्प 2 मे कही थी, वैसी रोटरी उन्होंने बनाई है।जबकि बंगाली पिलर 60-60फुट पर है ओर खुली जगह मुश्किल से 50 50 फुट दोनों ओर।अगर बिच मे पिलर या रोटरी कैसुली देते हे तो मुड़े मे टर्निगरेडीयस ही नही मिलेगा ओर वाहन को बहुत मुश्किल होगी।

2 इसी प्रकार ट्राफिक का जो स्वरूप है वह दोनों चौराहे पर बहुत अलग-अलग है। बंगाली चौराहे पर साइकिल से लेकर ऑटो रिक्शा ,हाथ ठेले से लेकर सभी वाहन वहां मौजूद रहते हैं। जबकि पिपल्याहाना पर आमतौर पर साइकिल बहुत कम है, टू व्हीलर की संख्या भी कम हे, कार की तुलना में।ज्यादातर कार आदी हे इसलिए वहां ट्राफिक बहुत आसानी से पास हो जाता है, एक ओर का सिंगन्ल बंद होने के बाद।और बंगाली चौराहे पर सिंगल बंद होने के बाद में भी छोटे वहांन साइकिल आदी यह बड़ी मुश्किल से कॉस कर पाते हैं ,और इससै हमेशा ट्रैफिक कंजेक्शन बना रहता है इस चौराहे पर।

इन सब बातों पर गौर करने के बाद में भी अगर किसी भी प्रकार का पिलर बनाता है और नाम मात्र की रोटरी बनती है तो यह ट्रैफिक में बहुत व्यवधान पैदा करेंगे, क्योंकि अभी स्कूलों की बसों का आगमन चालू ही नहीं हुआ है अगर स्कूलों की बसे का आगमन शुरू हो गया तो आज जो हालत बदतर है वह और ज्यादा बदतर होग और यदी रोटरी का विकल्प आज काम के नहीं है तो, समय के साथ में जो मेट्रो का स्टेशन बनेगा और जो आज का ट्रैफिक 80,000/-मेट्रो ने ढाई गुना 214000/-लोगों के आने-जाने का आकलन करा है

2041 में क्योंकि इंदौर का विकास इसी और बहुत ज्यादा हो रहा है। इसके अलावा रोटरी का तीसरा कोई शेप नहीं हो सकता है, जैसे अभी ओवल रोटरी कैप्सूल रोटरी कहां जा रहा है, गोलाई के अलावा। और भी कोई शेप गोलाई के अलावा लिया तो वाहनों को मोड़ने में, वाहन चालकों को बहुत तकलीफ होती है,दुर्घटना होगी। दुनिया में कहीं भी यह बनता नहीं,ना होता है।