पाकिस्तान की ये देवी शक्तिपीठ है बहुत शक्तिशाली, दुनियाभर से आए भक्तों का लगा रहता है तांता

Ayushi
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आज से चैत्र नवरात्रि शुरू हो चुकी हैं। देवी मां को सभी रूपों में सजा कर उनकी पूजा की जा रही हैं। दरअसल, नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की आराधना की जाती है साथ ही व्रत रख कर भक्त नौ दिन मां की उपासना करते हैं। हालांकि इस साल कोरोना के चलते भक्त मंदिर नहीं जा पाएंगे। लेकिन कुछ जगह है जहां अभी भी भक्त जा रहे हैं। दरअसल, आज हम आपको एक ऐसे शक्तिपीठ के बारे में बताने जा रहे है जहां दुनियाभर के लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।

 इस मंदिर की कहानी बहुत प्राचीन है. भगवान शिव और देवी सती का विवाह हो चुका था. लेकिन देवी सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर का अपमान किया तो देवी सती ने आत्मदाह कर लिया. जब शंकर जी को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो गुस्से में भर उठे. आत्मदाह के बाद देवी के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जहां जहां ये गिरे वहां शक्तिपीठ बनी.

आपको बता दे, देवी की ये शक्तिपीठ भारत में नहीं पाकिस्तान में है। हम बात रकर रहे हैं पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता मंदिर की। जी हां इसे हिंगलाज भवानी मंदिर भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यह मंदिर 2000 साल से भी अधिक पुराना है। मान्यताओं के अनुसार, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर चंद्रकूप पर्वत पर बसा यह मंदिर बहुत सिद्ध माना जाता है।

 यहां पर हिंदू-मुसलमान की एकता साफ नजर आती है. मुसलमान भी देवी के सामने सिर झुकाए नजर आते हैं. पाकिस्तानियों के लिए यह मंदिर नानी का मंदिर है. नानी के इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तिभाव से आते हैं. मंदिर की प्रबंधक कमेटी में हिंदू और मुसलमान दोनों हैं. 

नवरात्रों के दौरान यहां मेला लगता है जहां हजारों की संख्या में हिंदू और मुसलमान दुनियाभर से आते हैं। यहां पहुंचने का रास्ता जितना मुश्किल है, उतना ही सुन्दर भी। यह मंदिर बहुत बड़ा नहीं है लेकिन प्राचीन बहुत है। ये गुफा के अंदर है।

 यह शक्तिपीठ बहुत सिद्ध है. दुनियाभर के हिन्दुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. यह भी मान्यता है कि जो भी भक्त 10 फीट लंबी अंगारों की एक सड़क पर चलते हुए माता के दर्शन करने पहुंचे, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. 

पौराणिक कथा के अनुसार यहां की कहानी बहुत प्राचीन है। दरअसल, भगवान शिव और देवी सती का विवाह हो चुका था। देवी सती के पिता दक्ष ने भगवान शंकर का अपमान किया तो देवी सती ने आत्मदाह कर लिया था। लेकिन जब शंकर जी को अपनी पत्नी की मृत्यु का समाचार मिला तो वो गुस्से में भर उठे। वहीं कहा जाता है कि आत्मदाह के बाद देवी के शरीर के 51 हिस्से अलग-अलग स्थानों पर गिरे, जहां जहां ये गिरे वहां शक्तिपीठ बनी।