इस दिन है विनायक चतुर्थी व्रत, जानें महत्त्व और पूजा करने की विधि 

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सनातन हिन्दू धर्म में सबसे पहले भगवान गणेश जी को माना जाता है। इसलिए प्रमुख दिनों में चतुर्थी तिथि का काफी ज्यादा महत्त्व भी माना जाता है। जैसा की आप सभी को पता है हर शुभ कार्य से पहले भगवन गणेश की पूजा अर्चना की जाती है उसके बाद ही काम का शुभारंभ किया जाता है। फिर चाहे वो शादी हो या कुछ और भगवन गणेश को सबसे पहले पूजा जाता है। ऐसा ही हिन्दू मान्यताओं में उनकी तिथियों का भी काफी महत्त्व माना गया है।

कहा जाता है कि उनकी इन तिथियों में पूजा अर्चना करने से सारे संकट खत्म हो जाते हैं और घर में सुख-समृद्धि होने के साथ साथ यश की प्राप्ति भी होती है। इसके अलावा हिन्दू धर्म के अनुसार, हर महीने 2 चतुर्थी आती है। जो भगवान गणेश की तिथि मानी जाती है। जिसमें से अमावस्या के बाद आने वाली  कृष्णपक्ष की तिथि संकष्टी चतुर्थी कहलाती है।

वहीं इस बार ये चतुर्थी मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की 18 दिसंबर को पड़ रही है। यानी की कल है। इस चतुर्थी में व्रत भी रखा जाता है। आपको बता दे, गणेश जी का नाम विनायक होने के कारण इसे विनायक चतुर्थी व्रत भी कहा जाता है। वहीं कई लोग इसे वरद विनायक चतुर्थी के रूप में भी मनाते हैं। आज हम आपको इस चतुर्थी का महत्त्व और पूजा करने की विधि बताने जा रहे हैं। तो चलिए जानते है –

 महत्व –

आपको बता दे, उस चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा दिन में दो बार की जाती है। दरअसल, एक बार दोपहर में और एक बार शाम को पूजा की जाती है। वहीं मान्यता है कि इस चतुर्थी के दिन व्रत करने से सभी कार्य सिद्ध होते हैं। सभी मनुष्यों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

 ऐसे करें पूजा –

ब्रह्म मूहर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। उसके बाद लाल रंग के वस्त्र धारण करें। फिर दोपहर में पूजन के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा व मिट्टी से निर्मित गणेश प्रतिमा स्थापित करें। उसके बाद संकल्प के बाद षोडशोपचार पूजन कर श्री गणेश की आरती करें। इसके बरद श्री गणेश की मूर्ति पर सिन्दूर चढ़ाएं। ‘ॐ गं गणपतयै नम:’ का जाप करें। प्रतिमा पर 21 दूर्वा दल चढ़ाएं

दूर्वा एक प्रकार की घास का नाम है, जो श्रीगणेश को अति प्रिय है। श्री गणेश को बूंदी के 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें। ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। शाम के समय गणेश चतुर्थी कथा, श्रद्धानुसार गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश चालीसा, गणेश पुराण आदि का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्री गणेश की आरती करें। उसके बाद शाम के समय भोजन ग्रहण करें।