देश की सोचो रे

Mohit
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बाकलम- नितेश पाल

भैया, ये कोरोना के चलते सब मुहाल पड़ा हुआ है। न खाना है न खाने की व्यवस्था करने वाले। जो पल्ले में चार पैसे थे, वो भी खर्चा हो गए। नौकरी तो चल रही है, लेकिन तन्खवाह आधी भी नहीं मिल रही, महीने में 13 दिन का पैसा मिलता है। अब क्या करें। चाय की दुकान पर चेहरा लटकाए चेतन, अर्धचेतन अवस्था में चाय की चुस्की लेते हुए जब बोला तो, अपनी तो हंसी निकल गई। अपने मजे को भाई ज्यादा ही सीरियस ले बैठा।

चिल्लाते हुए बोला तुम्हें हंसी छूट रही है, यहां बच्चों का भूखा चेहरा नहीं देखा जाता, त्यौहार हैं, लेकिन बच्चों को घर से बाहर नहीं आने दे रहे, कोरोना के चलते नहीं, बल्कि इसलिए की कुछ मांग न लें। मांगेंगे तो दिलाने की हालत नहीं है। अपनी हंसी और बढ़ गई। चेतन को झल्लाते देख, चाय वाला ही बोल पड़ा, भाई क्यों हंस रहे हो, बात को समझो। बहुमत दूसरी तरफ देख हमें अब मोर्चा संभालना ही पड़ा। भाई देख, तु ठहरा छोटी मानसिकतावाला, तुझे देश की सोचना चाहिए, ओर तु बस पेट की चिंता में बिलबिला रहा है। देश बड़ा या तु। मैं देश को देख रहा हूं। देश कितना आगे बढ़ रहा है। देश की जितनी आबादी है, उसके हिसाब से कोरोना फैला क्या हमारे यहां, दुनिया के देश के देश बर्बाद हो गए। हम बचे गप्पे मार रहे हैं। भारत ने आपदा को अवसर में तब्दिल किया।

दुनिया के खत्म होते पर्यावरण को बचाने में दुनिया के लिऐ तीन माह का लॉकडाउन लगाया, जिसमें पूरी दुनिया में कार्बन कम हो गया। देश की धाक पूरी दुनिया ने मानी, दवाई तक तो हम से मांगते फिर रहे थे। मुंडी गाडे बैठा चेतन चिल्ला पड़ा। दुनिया की बात मत करो, हम भी कोरोना से लड़े थे, थाली बजाई थी हमने भी। तुम्हे क्या पता, जेब में पैसा नहीं था, लेकिन 350 रुपए वाला सेनेटाइजर ला रहा हूं। कल भूल से भूल हो गई और मास्क घर पर रह गया और मैं घर के बाहर सड़क पर बेटे को घर में रहने के लिए बोल रहा था, पीछे से पीली गाड़ी आई और थमा गई, 200 की पर्ची।

अबे तुम जैसे लोग ही दुश्मन हो देश के, सरकार बीमारी काबू करने की कोशिश कर रही है, लेकिन तुम जैसे लोगों के कारण ही बढ़ रही है। बगैर मास्क के निकले क्यों। देखो सारे अफसर चिल्लाकर बोल रहे हैं ठेलेवाले, गुमटी वालों से कोरोना पैल रहा है। अपना इतना बोलते ही चाय उबाल रहे दुकानदार का गुस्सा देखते बना, ये क्या बोल रहे हो, शकरहराम हो रहे हो तुम। चौंकते हुए अपन बोले, तुझे क्या हुआ। बोले गुमटी वालों से कैसे फैल रहा है कोरोना, झूठ मत बोलो, कमाएंगे नहीं तो बच्चों को खिलाएंगे कैसे। जिन अफसरों को बोल रहे हो, उनके घर में तो हर महीने लाखों की तन्खवाह आ जाती है, दिनभर एसी मेें बैठो, एसी में घूमो, चार नौकर आगे पीछे लेकर। यहां धूप में भट्टी के सामनेे चाय उकालो तो पता चलेगा मेहनत क्या होती है। वो तो बस बोल देते हैं, हम गलत हैं, तो क्या बच्चों को जहर दे दें। अपने से भी नहीं रहते बना, बोल दिए तुम, इतना पढ़ लेते तो तुम्हें भी ये सब मिलता। एक तो पढ़ते लिखते नहीं हो फिर कुछ भी बोलते हो।

कुछ नहीं तो नेता ही बन जाते, तो अफसर तुम्हारी सुनते, लेकिन तुम वो भी नहीं बन सकते तुम्हारी तो बीवी भी तुम्हारी नहीं सुनती, जनता क्या खाक सुनती। इस बार चाय के साथ ही भाई का भी खून उबल गया, ओर बोल पड़ा मुझे नहीं बनना नेता। मेरा स्वाभिमान है। मैं किसी को धोखा नहीं देता। चाय बेचता हूं, जितना पैसा होता है उतना लेता हूं। मेहनत करता हूं, बिकता नहीं हूं। तुम हमें तो बोल रहे हो, लेकिन कभी 8 किलोमीटर दूर गांव में गए हो, नहीं ना तो बोलो मत। यहां 10 ठेले-गुमटी लग रहे हैं वो तुमको दिख रहे हैं, वो कोरोना फैला रहे हैं, लेकिन वहां जो बगैर दुल्हन की बारातें निकल रही हैं, वो तुम्हें नहीं दिखती। हम मरें तो 20 लोग ही इकट्ठा हो सकते हैं, लेकिन 50 नेता जाने कहां-कहां से घूमकर आकर इकट्ठा हो जाएं और पौधे-भगवान जाने क्या-क्या बांट रहे हैं वो तुम्हें नहीं दिखता।

हमने बोला वहां के लोगों के पास अभी अपना नेता नहीं है, उन्हें नेता देना है। चेतन चिल्लाया, वो जिंदा बचेंगे तो नेता चुनेंगे। नेताओ की हरकत दबाने के लिए यहां हमारे उपर सारे नियम टांग दिए हैं। सारे नियम हम ही पालेंगे क्योंकि हम गरीब हैं और हम ही से तो कोरोना फैल रहा है..। चेतन की हालत ये थी कि उसकी चाय ठंडी लेकिन चेहरा गरम था। अपने मुंह से निकला अबे तुम देश की सोचो कहां छोटी बातों पर आ गए। देश मंगल पर पहुंच गया है, तुम अभी भी रोटी, कपड़ा, मकान को लेकर ही रोते रहो, देखो धारा 370, ट्रिपल तलाक जैसी गंदगी देश से साफ हुए सालभर हो गए हैं, उसका जश्न मनाना है ये सुन लो।

दोनों भड़क गए सालभर के त्यौहार नहीं मनाएंगे, लेकिन ये दोनों त्यौहार जरूर मनाएंगे। उन्हें समझाया की देखो त्यौहार हर साल आता है, लेकिन इन दोनों राष्ट्रीय गंदगियों के हटने का सालभर पहली बार आ रहा है, ये ज्यादा जरूरी है। जेब से चाय के पैसे निकाले ओर आखिर में दोनों को ये बोलते हुए हम वहां से निकल गए देखो, तुम दोनों को इसे मनाना ही है समझ गए वरना दुकान पर बोर्ड लगा दूंगा की ये दोनों देशद्रोही हैं। पीछे से चायवाला और चेतन चिल्लाते रहे दुकान पर नहीं हमारे माथे पर ही लिख दो ना..।